उस दिन मैं लखनऊ से दिल्ली आ रही थी। ट्रेन में अच्छी-खासी भीड़ थी। यह ट्रेन का जनरल डिब्बा था। हमारी ट्रेन बरेली से गुजर रही थी। अचानक कुछ बदमाशों ने डिब्बे में धावा बोल दिया। वे यात्रियों से लूटपाट करने लगे। सब चुपचाप उन्हें अपनी चेन, घड़ी और पैसे दे रहे थे, कोई उनका विरोध नहीं कर रहा था। तभी बदमाश मेरी ओर लपके। उन्होंने मेरी चेन छीनने की कोशिश की। मेरे अंदर का खिलाड़ी जाग गया। आखिरकार मैं नेशनल वॉलीबॉल चैंपियन थी। मैंने उनका कड़ा विरोध किया। छीना-झपटी के बीच बदमाशों ने मुझे चलती ट्रेन से धक्का दे दिया। जिस समय उन्होंने मुझे ट्रेन से बाहर धकेला, ठीक उसी समय सामने वाले ट्रैक पर दूसरी ट्रेन आ रही थी। मैं हवा में दूसरी ट्रेन से टकराने के बाद पटरियों पर गिर गई। यह वाकया 12 अप्रैल, 2011 का है