पटना : “विसंगतियां समाज का अंग होती हैं और संवेदनशील रचनाकार का गुण निश्चय ही संवेदनशीलता सृजन का आधार है, किंतु एक रचनाकार को यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि वह साहित्य के रूप में समाज का दर्पण जरूर प्रस्तुत करता है किंतु दर्पण प्रत्येक पक्ष को सदैव सीधा नहीं दिखता”। उक्त बातें प्रो. डॉ. अनीता राकेश ने साहित्यक संस्था के चतुर्थ वार्षिकोत्सव के आयोजन में उनसे पूछे गए प्रश्नों को जवाब देते हुए कहा।
कोरोना को ध्यान में रखते हुए सोशल डिस्टनसिंग और तमाम एहतियातन को ध्यान में रखते हुए आज के कार्यक्रम में डॉ. पूनम देवा द्वारा पूछे गए सवाल, “लेखक में इतनी संवेदनशीलता हैं कि विसंगतियों की वीभत्सता को ज्यों का त्यों परोस देना वे अपना दायित्व है समझते हैं… क्या निदान हेतु पाठक खुद तलाश करें”..? पर अनीता राकेश ने बताया कि विसंगतियां समाज का अंग है किंतु उनका वीभत्स स्वरूप सर्वत्र प्रेय नहीं।
वहीं प्रियंका श्रीवास्तव जी द्वारा पूछे गए इसी सवाल पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. भावना शेखर ने कहा कि ज्यादातर साहित्यकार यथार्थ दिखाने के बहाने समाज की विद्रूपता, विसंगतियों को दिखा रहे हैं पर सीखा कुछ नहीं रहे हैं। ऐसा कर के साहित्यकार अपना आधा कर्तव्य पूरा कर रहे हैं। कीचड़ दिखाना और कीचड़ साफ करना दोनों जरूरी है।
वहीं वरिष्ठ साहित्यकार गोरख प्रसाद मस्ताना ने सीमा रानी द्वारा पूछे गए सवाल का प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि लेखक न केवल साहित्यिक ज्ञान का परिचायक होता है, बल्कि संवेदनशीलता का भी परिचायक होता है। इसके बिना तो हर तरह का साहित्य अधूरा है।
अंत में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद दिवेदी जी ने डॉ. रब्बान अली के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि सामाजिक विसंगतियां और विद्रूपताएं समकालीन जीवन की कड़वी सच्चाई है जिससे मुँह फेरना लेखकीय ईमानदारी नहीं कही जा सकती है। इसलिए इन विडंबनाओं के मार्मिक चित्र उकेरकर गहरी संवेदना जगाना लेखक का दायित्व है।
वहीं आज कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए संस्था के तत्कालीन सचिव रवि श्रीवास्तव ने करते हुए सभी को लेख्य-मंजूषा के चौथे वार्षिकोत्सव की बधाई देते हुए शुभकामनाएं दी। उसके बाद उन्होंने मंच संचालन की जिम्मेदारी कार्यकारी अध्यक्ष मो. नसीम अख़्तर और उनके सहयोगी उपाध्यक्ष मधुरेश नारायण को मंच संचालन के लिए आमंत्रित किया।
कार्यक्रम की शुरुआत अतिथीयों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर के किया गया। उसके बाद सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए स्मृति चिन्ह दिया गया। उसके बाद संस्था लेख्य-मंजूषा की त्रैमासिक पत्रिका “साहित्यक स्पंदन” का लोकार्पण किया गया।
उसके बाद सदस्यों द्वारा गद्य रचनाओं का पाठ किया गया।
वहीं चौथे वार्षिकोत्सव के साथ - साथ आज हाइकू दिवस पर पटना से बाहर के सदस्यों के लिए ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन लेख्य-मंजूषा के फेसबुक पेज पर किया गया। जिसमें अस्थानिय सदस्यों और कई वरिष्ठ साहित्यकारों ने हिस्सा लिया।
धन्यवाद ज्ञापन कार्यकारी अध्यक्ष रंजना सिंह ने किया।