पूंजीपतियों के आगे नतमस्तक केंद्र सरकार किसानों की आवाज दबाने में जुटी है : देवेन्द्र सिंह यादव

रिपोर्ट: शिलनिधि

पटना : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर की 94 वीं जयंती के अवसर पर समाजवादी पार्टी (बिहार) प्रदेश कार्यालय में आयोजित समारोह में पार्टी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने स्वú कर्पूरी ठाकुर के तैलचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया| सपा प्रदेश महासचिव देवेन्द्र सिंह यादव के नेतृत्व में आयोजित जयंती समारोह के अवसर पर पार्टी कार्यालय प्रांगण में भोज का आयोजन भी किया गया|

गौरतलब है कि जननायक कर्पुरी ठाकुर  का जन्म 24 जनवरी 1924  को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया ग्राम में नाई जाति में हुआ था जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है|  उनका पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा| इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे तथा अपने पारंपरिक पेशा नाई का काम करते थे। स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तथा 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे।

जयंती समारोह को संबोधित करते हुए देवेन्द्र सिंह यादव ने कहा कि स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर अपने दूरदर्शी सोच, सादगीपूर्ण जीवन-स्तर, मिलनसार छवि और कार्यों के बदौलत इतने लोकप्रिय हुए कि वे जनता के नायक बन गये और उन्हें जननायक की उपाधि दी गयी| वे भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं।  कर्पूरी ठाकुर ने 1952 में बिहार विधान सभा का पहली बार चुनाव जीता और आजीवन वे अजेय रहें| कर्पूरी ठाकुर इतने ईमानदार थें कि दो बार मुख्यमंत्री रहने के बाद भी निधन के समय उनके बैंक खाते में पांच सौ से भी कम रूपए बचे थे और जायदाद की बात करें तो एक खपरैला पुराना मकान था| लेकिन आज चहुओर पूंजीवाद का बोलबाला है, ऐसी स्थिति में समाजवादी व्यवस्था स्थापित होना अतिआवश्यक है| समाजवादी विचारक जननायक कर्पूरी ठाकुर आजीवन समाजवादी व्यवस्था लागू करने के लिए पूंजीवादी और साम्यवादी व्यवस्था का मुकाबला करते रहें| उनका मानना था कि समाजवादी व्यवस्था का कोई जोड़ नही है|

श्री यादव ने कहा कि गरीबों, दलितों, वंचितो, शोषितो, पीड़ितों को समान अधिकार दिलाने की लड़ाई जननायक कर्पूरी ठाकुर अंत तक लड़ते रहें| आज पूरे भारत में पूंजीवादी व्यवस्था हावी हो रहा है और गरीबों, दलितों, वंचितो, शोषितो, पीड़ितों, किसानों और आम आवाम का दमन हो रहा है| नये कृषि कानून के खिलाफ देशभर के किसानों में आक्रोश है| लेकिन पूंजीपतियों के आगे नतमस्तक केंद्र की मोदी सरकार किसानों की आवाज को दबाने में जुटी है जो कतई संभव नही है|

 


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