पटना : बिहार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जयसवाल ने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह को नसीहत दी है| उन्होंने अपने ब्लॉग के शीर्षक में लिखा है कि आम लोगों के भरोसे को मत तोड़िए, मनमोहन सिंह जी !! दरअसल, मनमोहन सिंह ने एक आलेख लिखा है जिसमे मोदी सरकार की नाकामियों का जिक्र किया है| संजय जायसवाल ने अपने ब्लॉग में लिखा है ...
आदरणीय मनमोहन सिंह जी
सादर नमन
कांग्रेसी एजेंडे के तहत मोदी सरकार की अंधी आलोचना करता आपका आलेख पढ़ा.
आलेख की कुछ पंक्तियों से मन को थोड़ा सुकून मिला लेकिन प्रोपगैंडे से भरी बाकी पंक्तियों को देख निराशा हाथ लगी. भारत की आत्मा को झकझोर कर रख देने वाले प्रपंचों और कुकृत्यों से आप आहत हैं, यह जान कर ख़ुशी हुई, थोड़ी राहत मिली कि आपकी पारिवारिक पार्टी में अभी भी कुछ लोग हैं, जिनमें लोकतंत्र और सामाजिक मूल्यों की थोड़ी परवाह बची हुई है. नहीं तो जिस तरह सोनिया जी, राहुल जी और प्रियंका जी लोगों को एक झूठे मुद्दे के बिनाह पर सड़क पर उतर कर ‘आर या पार’ कर लेने की सलाह दे रहे थे, उससे लोग पूरी और पूरी कांग्रेस को दंगाइयों के साथ समझने लगे थे.
आपने अपने आलेख में तीन मुद्दों को उठाया ‘सामाजिक सौहार्द का विघटन, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य समस्या’. आपके आलेख के मुताबिक इन मुद्दों ने आपके मन को भारी कर दिया और आप अपने भावोद्गार प्रकट करने को विवश हो गये. आपको यह जान कर हर्ष होगा कि पिछले छह वर्षों में सरकार द्वारा किये गये अथक प्रयासों से अर्थव्यवस्था के मामले में भारत ब्रिटेन और फ़्रांस सरीखे देशों से भी आगे निकल चुका है और आज हम पांचवे स्थान पर काबिज हैं. इसके अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर आइएमएफ, ब्रुकिंग्स और वर्ल्ड बैंक आदि की रिपोर्टों पर आप अगर एक सरसरी निगाह भी डालेंगे तो आर्थिक मामलों पर उठ रही आपकी शंकाएं स्वत: शांत हो जायेंगीं. इसके अतिरिक्त कोरोना वायरस पर सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदम सबके सामने हैं, जिन्हें किसी के प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं है.
बहरहाल समाजिक सौहार्द पर जतायी आपकी चिंता सबसे वाजिब है, क्योंकि इससे सभी चीजें जुड़ी होती हैं. भाजपा का कार्यकर्ता होने के नाते इस मसले पर आपके मन में उठे प्रश्नों का जवाब देकर आपके बोझिल मन को थोड़ा हल्का करने का प्रयास करने के साथ-साथ कुछ खुद के प्रश्न भी आपके समक्ष रखना चाहूँगा, जिसके जवाब हिंदुस्तान के अधिकांश नागरिकों के मन के ‘भारीपन’ को हल्का करने में सहायता कर सकते हैं.
देश के समाजिक सौहार्द् के विघटन से हम सभी चिंतित हैं. सरकार हरसंभव प्रयास भी कर रही है. दंगो और अफवाहों को रोकने के लिए लगातार कदम उठाये जा रहे हैं. यहाँ तक कि देश पहली बार सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुँचाने वालों से सरकार को हर्जाना वसूलते भी देख रहा है. राजनीतिक प्रतिबद्धिता के कारण शायद आपने इन खबरों को अनदेखा कर दिया हो, लेकिन लोगों को इसकी खबर है. किसी भी आम नागरिक से पूछिए वह आपकी शंकाओं का समाधान कर देगा.
याद कीजिए कि आपके मन को ‘भारी’ कर देने वाले इस सारे मामले की शुरुआत सीएए को लागू करने से हुई थी, जिसकी मांग आपने खुद 2003 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार से की थी. जो कानून आपकी खुद की निगाह में बिना देर किये लाना चाहिए था, उसे लागू करते ही आपकी पार्टी उसकी खिलाफत पर उतर आयी, लेकिन आप मौन रहे. आपके नेता झूठ पर झूठ बोलते रहे, लेकिन आपका मौन टूटा नहीं. काश! कि अगर आपने शुरुआत में ही एक बार भी अपने नेताओं को झूठ बोलने के लिए मना किया होता, उन्हें इसके दुष्परिणामों से आगाह किया होता तो आज कई माताओं की गोद सूनी न होती, कईयों के सर से बाप का साया न हटा होता. लोग अपनी औलादों को बिलखते न देख रहे होते. उनके जीवन का आसरा उनसे न छीना गया होता.
आपको नहीं लगता कि इस समाजिक सौहार्द के विघटन में आपकी पार्टी, शीर्ष नेताओं के साथ-साथ कहीं न कहीं आपका मौन भी जिम्मेवार है! क्या एक परिवार के प्रति आपकी प्रतिबद्धिता आम जनता के जान-माल से ज्यादा महत्वपूर्ण है?आपने अपने आलेख में नागरिकता संशोधन कानून में बदलाव भी मांग की है जिसे देख काफी आश्चर्य हुआ. जिस कानून का कभी आप खुद समर्थन कर रहे थे, आज आप उसे बदलना चाहते हैं, वह भी बिना कारण बताए. क्या आपकी निगाह में पॉलीथीन की टेंट में जीवन घसीट रहे धार्मिक प्रताड़ितों का कोई मानवाधिकार नहीं! क्या उन्हें आपकी राजमाता की महत्वकांक्षा और वोटबैंक की घृणित राजनीति की बलि चढ़ने के लिए छोड़ देना चाहिए? आश्चर्य लगा यह देख कर कि आप अब ऐसा सोचने लगे हैं.
अपनी सज्जनता के कारण शायद आप न जानते हों कि आप कांग्रेस के उन गिनती के नेताओं में से एक है, जिनकी इज्जत आज भी पूरा देश करता है. वह भी जब आपके राज में इतने घोटाले हुए कि उनकी गिनती करना भी मुश्किल है, ‘ए से जेड’ तक वर्णमाला का ऐसा कोई भी अक्षर नहीं बचा जिससे किसी घोटाले का नाम न शुरू होता हो. इसके बावजूद आपकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर किसी को कोई शंका नहीं हुई.
लेकिन आपके मौन ने हमेशा देश को क्षति पहुंचाई इससे शायद आप भी इंकार नहीं कर सकते. देश की आर्थिक प्रगति में आपका योगदान निर्विवादित रूप से हमेशा याद किया जाएगा, लेकिन पीवी नरसिम्हा राव जिन्होंने आपको बतौर वितमंत्री अपने सपनों को जमीन पर उतारने का मौका और हरसंभव सहयोग दिया, आप उनके अपमान पर भी चुप रहे. उनका पार्थिव शरीर को तालाबंद कांग्रेस मुख्यालय के सामने आधे घंटे तक रोके रखा गया, आप मौन रहे! उनकी समाधि दिल्ली में नहीं बनने दी गयी, लेकिन आप मौन रहें! आपके सामने देश की अर्थव्यवस्था को नोचा-खसोटा गया, आप मौन रहें! आज आपकी ही पार्टी नागरिकता संशोधन कानून पर झूठ की खेती कर रही है, आपके नेता दंगे भड़काने के लिए देश के टुकड़े करने वालों को शह दे रहे हैं, लेकिन आप उस पर भी मौन है! क्यों? उम्र, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा के जिस मुकाम पर आप खड़े हैं, वहां बिरले ही पहुँच पाते हैं. सोचिये कि जिस देश ने आपको वहां पहुँचाया, आपके मौन से उसे क्या हासिल हुआ!
माना कि उस समय कुछ मजबूरियां रहीं हों, लेकिन आज वर्तमान समय में आपके समक्ष ऐसी कौन सी मजबूरियां हैं जो आपको सत्य बोलने से रोक रही हैं. आखिर गाँधी परिवार के प्रति आपकी प्रतिबद्धिता हर बार देश और देशवासियों के हितों पर क्यों हावी होने लगती है? आपने कभी कहा था कि 'हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी'. क्या आपको नहीं लगता कि आज वक्त कांग्रेस के कुकर्मों पर उठने वाले सवालों को ‘मौन’ रह कर रोकने का नहीं, बल्कि मुखर हो कर उन कुकर्मों से देश की आबरू को सुरक्षित रखने का है.
अंत में, आपसे विनम्र निवेदन है कि कांग्रेस के जाल से बचिए, इस तरह के एकपक्षीय लेखन से राजपरिवार के सदस्य जरुर आनंदित होंगे लेकिन इससे आम देशवासी के मन में आपके प्रति टिके विश्वास को धक्का लगता है. लोगों की निगाह में आपका महत्व सत्तालोलुप नेताओं का जमावड़ा बन चुकी कांग्रेस पार्टी से कहीं ज्यादा ऊँचा है राजमाता, युवराज और युवराज्ञी के स्वार्थों की पूर्ति के लिए, आम लोगों के भरोसे को मत तोड़िए
बहरहाल दिनकर की इन पंक्तियों पर एक बार चिंतन-मनन जरुर कीजिएगा
“समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध”
इसकी उम्मीद तो नहीं है कि आप इसका जवाब देंगे
फिर भी आपके जवाब के इन्तजार में हूँ
आपका
संजय जयसवाल