शख्सीयत: 10 हजार की पूंजी से किया चमत्कार

रिपोर्ट: साभार

बात 1983 की है. 27 साल का एक लड़का अपने पिता से 10 हजार रु पये लेकर अपने सपने पूरे करने के लिए कोलकाता से मुंबई जाता है. उन पैसों से वह फार्मास्यूटिकल कंपनी शुरू करता है और आज वह भारत का सबसे अमीर आदमी बन चुका है. हम बात कर रहे हैं सन फार्मा के मालिक दिलीप संघवी की. आइए जानें कैसे पाया उन्होंने यह मुकाम. सेंट्रल डेस्क ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स की हालिया सूची के अनुसार सन फार्मास्यूटिकल्स के संस्थापक सह प्रबंध निदेशक दिलीप संघवी, रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुकेश अंबानी को पीछे छोड़ते हुए देश के सबसे अमीर आदमी बन गये हैं. संघवी की कुल संपत्ति एक लाख 35 हजार करोड़ रुपये बतायी गयी है, जबकि मुकेश की कुल संपत्ति एक लाख 23 हजार करोड़ रुपये है. यहां खास बात यह है कि जहां मुकेश अंबानी पिता धीरूभाई अंबानी की विरासत संभालते हुए इतने दौलतमंद बने हैं, वहीं संघवी अपने बलबूते अरबपति बने हैं. उन्होंने 32 साल पहले अपना बिजनेस महज 10 हजार रु पये की पूंजी और सिर्फ पांच लोगों के साथ शुरू किया था. जैन धर्म को माननेवाले दिलीप संघवी शुद्ध शाकाहारी हैं और दक्षिण भारतीय खाना उन्हें बेहद भाता है. वह खाली समय में हैरी पॉटर के नॉवेल पढ़ने के शौकीन हैं. हाल ही में जानी-मानी दवा कंपनी रैनबैक्सी फार्मास्यूटिकल्स का अधिग्रहण कर उन्होंने सन फार्मा को देश की सबसे बड़ी और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी दवा निर्माता कंपनी का दरजा दिला दिया है. सन फार्मा ग्रुप की तीन कंपनियों सन फार्मा, सन फार्मा एडवांस्ड रिसर्च और रैनबैक्सी लैब्स में बतौर प्रमोटर 63 प्रतिशत हिस्सेदारी अपने पास रखनेवाले संघवी का यह सफर आसान नहीं था. उस दौर के देश के फार्मा उद्योग के बड़े खिलाड़ियों की तरह न तो उनके पास विज्ञान की डिग्री थी और न ही व्यापार को रफ्तार देने के लिए जरूरी भारी-भरकम पूंजी. एक अक्तूबर 1955 को गुजरात के अमरेली जिले में जन्मे दिलीप का परिवार बाद में कोलकाता चला गया था, जहां उनके पिता दवाइयों के डीलर थे. कोलकाता के भवानीपुर एजुकेशनल सोसाइटी कॉलेज से वाणज्यि में स्नातक संघवी ने कुछ बड़ा करने की सोची और पिता से 10 हजार रु पये उधार लेकर 1983 में मुंबई चले गये. शुरु आती दिनों में उन्होंने मनोचिकित्सा की दवाइयों की मार्केटिंग का काम किया. थोड़े दिनों बाद गुजरात के औद्योगिक शहर वापी में उन्होंने दवा बनाने की एक फैक्ट्री लगायी. नाम दिया सन फार्मास्यूटिकल्स. उस समय सिर्फ पांच दवाएं बनानेवाली इस कंपनी के माल को दुकानों तक पहुंचाने की जिम्मेवारी दो लोगों की छोटी सी टीम पर थी. लेकिन, महज चार साल के भीतर इस कंपनी के उत्पाद देश भर में बिकने लगे. 1989 में दिल की बीमारियों के इलाज से जुड़ी कुछ दवाएं लांच करने के बाद संघवी अपने उत्पाद पड़ोसी देशों में निर्यात करने लगे. और फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखा. उनका कारोबार चल निकला था और इसे नया आयाम देने के उद्देश्य से उन्होंने 1991 में देश का पहला फार्मा रिसर्च ऐंड डेवेलपमेंट सेंटर शुरू किया. तीन साल बाद वह सन फार्मा के लिए आइपीओ लेकर आये. दिलीप संघवी की सफलता का श्रेय सही मौके को भांपने की उनकी कुशलता को जाता है. वह संकट में फंसी कंपनियों और उनकी परिसंपत्तियों को सही समय पर खरीदना बखूबी जानते हैं. इसकी शुरु आत उन्होंने 1996 में महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित नॉल फार्मा के प्लांट का अधिग्रहण कर की थी. तब संघवी का व्यापार 24 देशों तक फैल चुका था. तब से लेकर अब तक सन फार्मा ने 19 अधिग्रहण और संयुक्त उद्यमों पर काम किया है. और इन सबको संघवी फायदे का सौदा साबित करने में कामयाब हुए. 2010 में इजरायल की दवा निर्माता कंपनी टारो फार्मास्यूटिकल्स इंडस्ट्री का अधिग्रहण सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ, जिससे सन फार्मा को अमेरिका, इजरायल और कनाडा में अपनी जड़ें जमाने में मदद मिली. इसके बाद शांघवी ने काराको फार्मा का अधिग्रहण किया, जो एक घाटे में चल रही अमेरिकी कंपनी थी. हाल में सन फार्मा की सबसे चर्चित डील रैनबैक्सी की रही, जिस पर 25 हजार 237 करोड़ रु पये का खर्च बैठा. जिस रफ्तार से सन फार्मा के कदम बढ़ रहे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है कि आनेवाले कुछ दिनों में वह दुनिया की सबसे बड़ी दवा निर्माता कंपनी बन जायेगी. लेकिन मानव-प्रबंधन को अपनी सबसे बड़ी संपदा माननेवाले संघवी इससे संतुष्ट नहीं दिखते. फार्मा सेक्टर के अलावा, वह अन्य क्षेत्रों में कारोबार की भी संभावनाएं तलाश रहे हैं. इस दिशा में उन्होंने 1800 करोड़ रुपये के निवेश के साथ सुजलॉन नामक गैर पारंपरिक ऊर्जा कंपनी में 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी खरीदने के प्रयास तेज कर दिये हैं. उनकी एक पेमेंट बैंक खोलने की भी योजना है.


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