पटना 24 जुलाई : निषाद विकास संघ द्वारा 25 जुलाई को पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में वीरांगना फूलन देवी शहादत दिवस समारोह का आयोजन किया गया है| शहादत दिवस के मौके पर निषाद विकास संघ से जुड़ी हजारों की तादाद में महिला पदाधिकारी राजधानी पटना की सड़कों पर पैदल मार्च करेंगी| इस पैदल मार्च में लाल परिधान में सजी महिलायें अभियंता भवन से सड़क मार्च करते हुए श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल पहुंचकर शहादत दिवस समारोह में हिस्सा लेंगी| ज्ञात हो कि समय.समय पर निषाद विकास संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश सहनी के नेतृत्व में जनहित एवं निषाद समाज से जुड़े ज्वलंत मुद्दों को लेकर आन्दोलन किया जाता रहा है|
निषाद विकास संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी ने कहा है कि निषाद समाज का सर्वांगीण विकास सामाजिक एकता, महिला एवं पुरूष के कुशल एवं उच्च स्तरीय नेतृत्व के बल पर ही हासिल किया जा सकता है। लोकतंत्र में महिला एवं पुरूष के वोट की शक्ति के द्वारा विकास के सभी बन्द दरवाजे को खोला जा सकता है। उन्होंने कहा कि विगत चार सालों से बिहार की जनता से मिले भरपूर सहयोग की बदौलत ही निषाद समाज के हक और अधिकार के लिए संघर्ष कर रहा हूँ। आप सभी जानते हैं कि पहले बिहार, बंगाल, उड़ीसा और झारखण्ड एक ही राज्य था लेकिन 1912 में अलग-अलग राज्य बना और 1950 में पूरे भारत के लिए एक ही संविधान बना, बंगाल, उड़ीसा एवं दिल्ली के निषाद समाज को आरक्षण का लाभ मिला, पर राजनीतिज्ञों के साजिश के कारण बिहार के निषाद समाज को अनुसूचित जाति/जनजाति आरक्षण का लाभ नही मिला। सन ऑफ़ मल्लाह ने कहा कि अगर निषाद समाज को भारत सरकार के द्वारा अविलम्ब अनुसूचित जाति/जनजाति आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है, तो आपकी अपनी राजनीतिक पार्टी की घोषणा 07 अक्टूबर 2018 को गांधी मैदान पटना में रैली में की जाएगी। जिसके संचालक/मालिक आप खुद होंगे। तदुपरांत निषादों के लिए बन्द राजनीतिक दरवाजों को खोलकर शासन-सत्ता पर कब्जा किया जाएगा। अब वोट हमारा राज तुम्हारा की राजनीति सफल नहीं होने दी जाएगी|
गौरतलब है कि चुनावी मौसम करीब आते ही तमाम राजनैतिक पार्टियों के साथ ही राजनीति में रूचि रखनेवाले सभी संगठन भी सक्रिय हो गये हैं ताकि आबादी के अनुपात में सत्ता में उनके समाज की भागीदारी सुनिश्चित हो सके| माना जा रहा है कि निषाद समाज की ताकत का एहसास कराने के साथ ही राजनैतिक दलों का ध्यान आकृष्ट कराने के मकसद से निषाद विकास संघ द्वारा फूलन देवी के शहादत दिवस समारोह को भव्य स्वरूप प्रदान करने की पूरजोर कोशिश की गयी है|
निषाद विकास संघ के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव छोटे सहनी ने कहा कि आप सभी इस बात से भलीभांति अवगत हैं कि वीरांगना फूलन देवी की शहादत दिवस नारी-सम्मान एवं दुनिया के इतिहास में सबसे विद्रोही महिला की सूची में चैथे स्थान पर रखा गया है। अपने कार्यकाल में अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व का राष्ट्र स्तर पर लोहा मनवा लिया था और पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुई थी। उनकी कर्मठता, योग्यता एवं बलिदान को बेकार नहीं जाने देना है और नारी सशक्तिकरण एवं सम्मान तभी होगा जब उन्हें उनका वाजिब हक मिलेगा। शहादत दिवस के अवसर पर हमलोग फूलन देवी के इतिहास को अपने घर की बेटी-बहन-मौसी-बुआ, सास-बहू को बतायेंगे और पढ़ायेगें|
उल्लेखनीय है कि 10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गोरहा गाँव के निषाद (मल्लाह) परिवार में फूलन देवी का जन्म हुआ था। आर्थिक तंगी एवं सामाजिक भेद-भाव के कारण बचपन बहुत ही कष्टदायक रहा, जिसके कारण वे शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकीं। अशिक्षा एवं पारिवारिक परेशानियों के कारण जबरदस्ती 11 साल की उम्र में ही अयोग्य लड़के से उनकी शादी कर दी गई। ससुराल में पारिवारिक प्रताड़ना के कारण वे कुछ ही दिनों के बाद अपने पिता के घर वापस आ गई। तदुपरान्त पिता के साथ मजदूरी करने लगी। इसी बीच 15 साल की उम्र में गाँव के ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक दुराचार किया, वह न्याय के लिए दर-दर भटकती रहीं, पर न्याय कहीं नहीं मिला, इसी क्रम में डकैत लोग फूलन देवी को उठाकर जंगल, पहाड़ की तरफ ले गए। वहीं पर उनकी मुलाकात विक्रम मल्लाह से हुई, फिर अपने ऊपर हुए अत्याचार के बदले की भावना से दोनों ने मिलकर अलग डाकुओं का गैंग बनाकर, 22 (ठाकुरो) को एक लाईन में खड़ाकर गोलियों से छलनी कर दिया। तदुपरान्त सरकार ने उनको पकड़ने का आदेश दिया लेकिन पुलिस प्रशासन नाकाम रहीं, इसी क्रम में पुलिस मुठभेड़ में विक्रम मल्लाह मारे गए। तब जाकर वर्ष 1983 में इन्दिरा गाँधी की सरकार ने उनसे सशर्त समझौता किया तब जाकर उन्होंने अपने हजारों समर्थकों के समक्ष आत्मसमर्पण किया। फिर वह 11 साल तक जेल में रहीं। अंततः वर्ष 1994 में उत्तर प्रदेश की सरकार ने वीरांगना फूलन देवी को रिहा किया। तदुपरान्त उन्होने समाज में धार्मिक क्रांति एवं सामाजिक क्रांति लाने हेतु मानवता का धर्म, बौद्ध धर्म अपना कर समतामूलक समाज बनाने का संकल्प लिया। उसके बाद उन्होंने मिर्जापुर लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बनी। सांसद बनने के बाद उनके द्वारा किये गए क्रिया-कलाप एवं देश स्तर पर बढ़ती लोकप्रियता, व्यक्तित्व को देखकर राजनीतिक गलियारे में द्वेष की भावना प्रबल हो गई, तदुपरान्त एक सोची-समझी रणनीति , साजिश एवं राजनीतिक षड़यंत्र के तहत 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में उनके आवास के निकट उनकी हत्या करा दी गई।