पेट्रोलियम मंत्रालय से गोपनीय दस्तावेज की चोरी होना न केवल अत्यंत गंभीर मसला है, बल्कि हमारी व्यवस्था के शीर्ष तक लगे खतरनाक घुन की ओर भी संकेत करता है. एक तो जहां कुछ लोग बड़ी आसानी से अति गोपनीय सरकारी दस्तावेज महत्वपूर्ण कार्यालयों से गायब कर सकते हैं, वहीं सरकार और जांच एजेंसियों के लिए मामले की तह तक पहुंच पाना असंभव जैसा दिखता है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इस भयावह गड़बड़ी को कौन और कैसे दुरुस्त करेगा. ऐसी वारदात पहले भी हुई हैं, लेकिन जांच किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंची. प्यादे तो अकसर पकड़ में आ जाते हैं, लेकिन उनके पीछे खड़ी ताकतों तक कभी पहुंचा नहीं जाता है. इस संदर्भ में तात्कालिक खुलासों के उलङो सिरों को समझने की एक कोशिश आज के विशेष में.. राजधानी में वर्षों से जारी है जासूसी पेट्रोलियम मंत्रालय से जुड़े अहम दस्तावेज लीक होने का मामला अपने तरह की पहली घटना नहीं है. केंद्र सरकार के अहम मंत्रालयों की जासूसी की खबरें पहले भी सुर्खियां बटोरती रही हैं. आइए, नजर डालते हैं भारत की राजधानी के केंद्र में पसरे जासूसों के जाल से जुड़े कुछ बहुचर्चित मामलों पर- केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के घर में जासूसी के उपकरण केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण ओहदा रखने वाले सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के घर में हाइ पावर लॉयजनिंग डिवाइस लगाये जाने की खबर पिछले साल चर्चा में थी. यह मामला जुलाई, 2014 का है, जब गडकरी के पास ग्रामीण विकास मंत्रालय जैसा अहम विभाग भी था. पूर्व भाजपा अध्यक्ष के घर में वैसे उपकरणों के पाये जाने से सनसनी फैल गयी थी क्योंकि इस तरह के डिवाइस का उपयोग अमेरिका की खुफिया एजेंसी करती है. नवगठित मोदी सरकार इस वजह से विवादों में फंस गयी थी. कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले की फाइल हुई थी गायब कोयला ब्लॉक आवंटन से जुड़े अहम दस्तावेजों के लीक और गायब होने की खबर से 2013 में केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार विवादों के घेरे में आ गयी थी. इस मसले पर विपक्षी दलों ने सरकार को आड़े हाथों लिया था. मामला इतना बढ़ गया था कि प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को स्पष्टीकरण देना पड़ा. अरुण जेटली की फोन टेपिंग की चर्चा बनीं सुर्खियां भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अरूण जेटली के फोन टेपिंग का मामला जनवरी, 2013 में चर्चा में था. जेटली उस समय राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे. भाजपा के बड़े कद के नेता के फोन टेप करने के आरोप में करीब दस लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था. तब भाजपा ने तत्कालीन केंद्र सरकार पर ऐसा करवाने का आरोप लगाया था. एके एंटनी के कार्यालय में भी जासूसी की खबरें आयी थीं 16 फरवरी, 2012 को तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी के कार्यालय में जासूसी की खबरें आई थी. साउथ ब्लॉक के कमरा नंबर 104 स्थित एंटनी के कार्यालय में बीप की आवाज आने के बाद रक्षा मंत्रालय में हड़कंप मच गया. बीप की आवाज उस समय आने लगी थी, जब सैन्य गुप्तचर शाखा के सदस्य एंटनी के कार्यालय की जांच कर रहे थे. तत्काल इस मसले की जांच की जिम्मेदारी गृह मंत्रालय को सौंप दी गयी. साउथ ब्लॉक के रक्षा मंत्रालय जैसे संवेदनशील स्थान पर ऐसी घटना होने से कई सवाल खड़े हो गये थे. पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के कार्यालय में जासूसी साउथ ब्लॉक स्थित रक्षा मंत्री के कार्यालय में जासूसी के लगभग छह महीने पहले ऐसा ही मामला तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के नार्थ ब्लॉक स्थित कार्यालय में भी हुआ था. कथित रूप से वित्त मंत्री के दफ्तर में ‘स्नूपिंग डिवाइस’ पाये जाने की चर्चा थी. प्रणब मुखर्जी के कार्यालय में करीब 16 स्थानों पर चिपकाने वाली चीजें पायी गयी थी. राजीव गांधी के कार्यकाल में भी पीएमओ में जासूसी भारत में इस तरह की जासूसी का पहला चर्चित मामला 1985 में प्रकाश में आया. यह हाइ प्रोफाइल मामला प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़ा था. इस अति संवेदनशील मामले में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दफ्तर में जासूसी की खबर आयी थी. इसके बाद पूरे देश में जमकर हंगामा हुआ. कई तरह के सवाल खड़े किये गये. प्राथमिक तौर पर 10 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार तो किया गया, लेकिन बाद में इस मामले का क्या हुआ, इसके बारे में किसी को कोई सूचना नहीं है. मेनका गांधी के घर में जासूसी सीबीआइ के एक दिवंगत वरिष्ठ अधिकारी एमके धर ने यह माना था कि इंदिरा गांधी के कहने पर उन्होंने मेनका गांधी की जासूसी की थी. इंदिरा गांधी द्वारा अपनी बहू के घर में जासूसी करवाने की खबर पर तब बड़ी चर्चा हुई थी. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल के इशारे पर जाल बिछाया गया था! रिपोटरें की मानें तो पेट्रोलियम मंत्रालय से महत्वपूर्ण दस्तावेजों की चोरी के मामले में धर-पकड़ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की सक्रियता के कारण संभव हो सकी है. भारत सरकार ने दिसंबर के महीने में ही यह इरादा कर लिया था कि आधिकारिक गोपनीयता कानून का उल्लंघन अब बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. पिछले वर्ष अक्तूबर की 13 तारीख को डोभाल ने एक टेलीविजन चैनल पर इस कानून के विरुद्ध आचरण का आरोप लगाते हुए कैबिनेट सचिव को कठोर पत्र भी लिखा था. हालिया घटना में भी सरकार और पुलिस ने कहा है कि जांच आगे बढ़ने के साथ गोपनीयता कानून के अंतर्गत मामला दर्ज किया जा सकता है. कार्यभार संभालने के समय से ही डोभाल की ओर से यह संकेत दिये जा रहे हैं कि ‘गोपनीय’ श्रेणी के दस्तावेजों को प्रकाशित करना सही नहीं है तथा यह मीडिया की जिम्मेवारी है कि वह ऐसे दस्तावेजों को सार्वजनिक न करे. निश्चित रूप से सरकार के लिए यह मसला एक अवसर है, जहां कड़ा रवैया अपना कर वह एक गंभीर संकेत दे सकती है कि ऐसे मामलों में कोई नरमी नहीं बरती जायेगी. अक्तूबर के अपने पत्र में डोभाल ने उक्त चैनल द्वारा भारत के परमाणु पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत से जुड़े गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का आरोप लगाया था. उस पत्र में उन्होंने लिखा था कि पिछले कुछ वर्षों से मीडिया में गोपनीय दस्तावेजों को लापरवाह ढंग से प्रकाशित-प्रसारित करने का आम चलन बन गया है तथा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों में ऐसी कारगुजारियों पर कठोर कार्रवाई करने की आवश्यकता है. सरकारी सूत्रों के हवाले से खबरों में कहा गया है कि गोपनीयता कानून के उल्लंघन के पूर्ववर्ती मामलों का ठीक से निपटारा नहीं हुआ है, इससे इन गतिविधियों में शामिल लोगों में डर कम हो गया है, लेकिन अब सरकार किसी भी तरह की नरमी बरतने के लिए तैयार नहीं है. पेट्रोलियम मंत्रालय के मामले में ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां इसी सक्रियता की ओर इशारा करती हैं. जानकारों के अनुसार, गुप्तचर संस्थाओं से लंबे समय से जुड़े होने के कारण डोभाल मंत्रालयों में हो रही जासूसी, कॉरपोरेट सेक्टर की हरकतों और मीडिया के तौर-तरीकों से भली-भांति परिचित हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होने के कारण अब उनकी जिम्मेवारी भी काफी बड़ी है. ऐसे में उनके पास समझ के साथ संसाधन और सामर्थ्य भी हैं. देखना यह है कि इस मामले का हश्र भी पिछली घटनाओं की ही तरह बिना किसी नतीजे के होता है या फिर जांच उन लोगों की हद तक पहुंचती है, जिनके इशारों पर यह खेल खेला जाता रहा है. जासूसी के आरोप में पकड़े लोग शांतनु सैकिया : पत्रकार एवं एनर्जी कंसल्टेंट शांतनु सैकिया पेट्रो डॉट कॉम व इंडियन फर्टीलाइजर डॉट कॉम नामक वेबसाइटें भी चलाता है. प्रयास जैन : ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी मेडिट का मुखिया प्रयास जैन भी एनर्जी कंसल्टेंट है. ललिता प्रसाद : ललिता प्रसाद केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय में ही अस्थायी कर्मचारी के तौर पर काम करता था. राकेश कुमार : गिरफ्तार ललिता प्रसाद का सगा भाई राकेश कुमार भी मंत्रालय में कर्मचारी था. आशाराम : यह भी पेट्रोलियम मंत्रालय में कार्यरत है. आशाराम पर आरोप है कि वह अपने दो सहयोगियों के साथ ललिता प्रसाद व राकेश कुमार को अहम दस्तावेज मुहैया कराता था. ईश्वर सिंह : मंत्रालय में ही कार्यरत ईश्वर सिंह सीधे तौर पर राकेश व ललिता प्रसाद से जुड़ा हुआ था. वीरेंद्र : रक्षा मंत्रालय के ऑडिट विभाग में कार्यरत अस्थायी कर्मचारी वीरेंद्र पर ललिता प्रसाद और राजकुमार चौबे को फर्जी पहचान पत्र उपलब्ध कराने का आरोप है. राजकुमार चौबे : इसे कथित रूप से पेट्रोलियम मंत्रालय से दस्तावेज चोरी करते हुए गिरफ्तार किया गया था. शैलेश सक्सेना : सक्सेना रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड में कॉरपोरेट मामलों का प्रबंधक है. विनय कुमार : एस्सार के उप-महाप्रबंधक विनय कुमार को भी कंपनी के हित में सरकारी दस्तावेजों के गलत तरीके से चोरी करने व प्रयोग करने के आरोप में हिरासत में लिया गया है. केके नायक : यह केयर्न्स इंडिया में महाप्रबंधक है. सुभाष चंद्रा : जुबीलैंट एनर्जी में कॉरपोरेट एग्जीक्यूटिव के पद पर कार्यरत चंद्रा कभी पेट्रोलियम मंत्रालय में टाइपिस्ट था. इसकी गिरफ्तारी को इस मामले में काफी अहम माना जा रहा है. ¬षि आनंद : रिलायंस एडीएजी में उप-महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत ¬षि आनंद से भी पूछताछ की जा रही है. लोकेश शर्मा : एक एनर्जी कंसल्टेंसी फर्म के कर्मचारी लोकेश शर्मा के पास पेट्रोलियम मंत्रालय से जुड़े कई अहम दस्तावेज बरामद हुए हैं. पुलिस इसकी जांच कर रही है. मोहन गुरुस्वामी वित्त मंत्रालय के पूर्व सलाहकार सत्ता के गलियारों में जासूसी का यह खेल पुराना है मैंने उनसे पूछा कि उन्हें इस नोट की जानकारी कैसे मिली, तो उन्होंने बताया कि एक महत्वपूर्ण और कुछ हद तक कुख्यात पत्रकार ने उन्हें यह जानकारी दी है जो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का पूर्व कार्यकर्ता था तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री के कार्यालय और उनके ‘दत्तक दामाद’ का करीबी था. खैर, उस नोट ने इस सौदे को नहीं होने दिया. मुङो इस बात से आश्चर्य है कि इस घटना से हम सभी इतने अचरज में क्यों दिख रहे हैं. इस तरह की कारगुजारियां नयी दिल्ली में एक बड़ा कारोबार हैं और ‘स्वतंत्र’ सलाहकारों, व्यक्तियों एवं संस्थाओं की बड़ी संख्या तथा जन-संपर्क एजेंसियों के शानदार कार्यालय और कारें इस कारोबार की सफलता और व्यापकता का प्रमाण हैं. जब भी इनमें से कोई पकड़ा जाता है, तो मीडिया शोर मचाता है, पर फिर स्थिति पहले की तरह ही हो जाती है. बहुत सारे संवाददाता असल में निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए जासूस का काम करते हैं. यह नहीं भूलना चाहिए कि घाटे में चलनेवाले अखबारों के संपादक कैसे दक्षिण दिल्ली के आलीशान मकानों और फार्म हाउस के मालिक बन बैठते हैं. वे सूचनाओं के लेन-देन का व्यापार करते हैं और ढेर सारी सूचनाएं पाठकों तक पहुंचने के बजाय उनके कॉपोरेट ग्राहकों और फाइनेंसरों के पास चली जाती हैं. सभी सरकारी दस्तावेज बिक्री के लिए उपलब्ध हैं. बहुत समय नहीं हुआ है, जब देश के सबसे बड़े रक्षा ठेके से संबंधित नियमों और योग्यताओं के दस्तावेज बोइंग कंपनी के मुख्यालय तक पहुंच गये थे, जिन्हें कंपनी के प्रबंधन ने अमेरिकी कानूनों के डर से भारत सरकार को वापस कर दिया था और इस काम के लिए जिम्मेवार स्थानीय प्रबंधकों को बर्खास्त कर दिया था. लेकिन, मिराज 2000 के बारे में कूमर नारायण द्वारा निकाले गये दस्तावेजों को फ्रांसीसियों ने नहीं लौटाया था. फिर याद करें उन कंपनियों को जो नीरा राडिया, दीपक तलवार और दिल्ली के अन्य प्रमुख लोगों द्वारा संचालित की जाती थीं, जो नीतियों को प्रभावित करने का तंत्र का हिस्सा रहे हैं. कभी आपने सोचा है कि ये लोग कैसे काम को अंजाम देते हैं और किन लोगों के लिए इनका अस्तित्व है. जासूसी की इस ताजा वारदात में भी रिलायंस, टाटा, एस्सार आदि कंपनियों का ही नाम फिर से आ रहा है. अब बात करते हैं शांतनु सैकिया के बारे में. इसने एक बार मारुति के विनिवेश संबंधी आधिकारिक नोट के हिस्सों को प्रकाशित किया था, जिसे मैंने लिखा था. मेरे लिखने के एक दिन बाद यह फाइनेंसियल एक्सप्रेस में छपा था. इसका अर्थ यह है कि सैकिया को ये दस्तावेज उसी दिन मिल गये थे, जिस द