भगवान महावीर ,जीवन में भी महावीर थे- डॉ प्रेम कुमार
वीरों के वीर जिसे कहते हैं महावीर। जिसने सारी तृष्णाओं, पापों,दुराचारों को परास्त कर जीवन मे विजय पाई हो वही कहलाते हैं सच्चे और अच्छे महावीर। जैन धर्म के 24वें व अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने अपने जीवन में अहिंसा, संयम और तप को ही धर्म माना। अपने प्रवचनों में धर्म ,अहिंसा ब्रह्मचर्य ,अपरिग्रह ,क्षमा एवं सबसे अधिक सत्य पर जोर दिया।
आज के इस कोरोना वैश्विक महामारी में इन्हीं चीजों का जीवन मे सबसे अधिक उपयोग करने की आवश्यकता है। धर्म क्या है? विधि कर्म है - झूठ, चोरी, नशा, हिंसा, व्यभिचार का त्याग करना ही- धर्म है। सत्य पर चलना- धर्म है। किसी प्राणी को हानि नहीं पहुंचाना -अहिंसा है। इंसान अपने आप को सदाचार में रखे यही -ब्रह्मचर्य है। आवश्यकता से अधिक संग्रह अनैतिक पाप ही-अपरिग्रह है। जीवो पर क्षमा के दृष्टि रखना।
आज के परिवेश में इन्हीं बातों को अपनाकर- "संकट कटे मिटे सब पीरा" चरितार्थ हो पाएगा। दूसरी ओर त्याग और संयम, प्रेम और करुणा ,शील और सदाचार से ही स्व जीवन सहित दूसरे के जीवन में परिवर्तन ला सकते हैं। आज हमारे जीवन में, समाज में और इस पृथ्वी पर ,महावीर जैसे तीर्थंकर की आवश्यकता है ,जो हमारे संस्कारों को मानव बनाए, मानवता से भगवान बनाए ,ताकि रोग, व्याधि से मुक्त होकर अहिंसा में जीवन जीने की कला हमारे अंदर आ जाए।
भगवान स्वयं कई बार कह चुके हैं स्वयं की गलती से हर एक को दुख हो होता है। स्वयं में सुधार करो सुखी हो जाओगे ।स्वयं की बुराई से लड़ों, बाहरी दुश्मन से नहीं। बुराई पर विजय से आनंद मिलेगा। काम, क्रोध, लोभ, मोह ,घमंड ,लालच ,आसक्ति और नफरत यही हमारे असली शत्रु हैं ।जियो और जीने दो। क्रोध से नहीं क्षमा से दिल जीतो ।
सदा याद रखो भगवान और अपनी मौत को ।आत्मा अकेले आई है ,अकेले जाएगी ।केवल वही विज्ञान श्रेष्ठ है जो सभी प्रकार के दुखों का नाश कर सके । आपको जो पसंद नहीं वह व्यवहार दूसरों पर प्रयोग नहीं करें ।लाभ से लालच बढ़ता है ।साहसी और कायर दोनों की मौत निश्चित तो फिर क्यों नहीं साहसी ही बनकर मौत का सामना करें ।आज के इस भौतिक युग में भगवान महावीर की उपदेश बहुत ही प्रासांगिक है।भगवान महावीर के चरणों में अपनी ओर से, आप सबों की ओर से श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कोटि-कोटि नमन।