सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है। संविधान पीठ ने यह फैसला 3-2 से दिया है। न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने बहुमत का फैसला सुनाया। वहीं, जस्टिस एस रवींद्र भट और सीजेआई यूयू ललित ने इस मुद्दे पर असहमति जताते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया।
संशोधन के अनुसार, यह आरक्षण निजी सहित किसी भी शैक्षणिक संस्थान द्वारा भी लागू किया जा सकता है, हालांकि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को संशोधन से छूट दी गई है. बता दें कि ईडब्ल्यूएस (EWS) का फुल फार्म इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन (Economically Weaker Sections) अर्थात आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग है. ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट बिल्कुल इनकम सर्टिफिकेट के समान होता है, जो किसी भी व्यक्ति की आय की स्थिति को दर्शाता है.
ईडब्ल्यूएस कोटा जाति और वर्ग के आधार पर आरक्षण के विपरीत आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की सामान्य श्रेणी को आरक्षण प्रदान करता है. एक सामान्य श्रेणी से संबंधित व्यक्ति ईडब्ल्यूएस के अंतर्गत आता है, यह उसके परिवार की वार्षिक आय पर निर्भर करता है. ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत आने वाले व्यक्ति के लिए उसके या उसके परिवार की आय 8 लाख रुपये से कम होनी चाहिए. आय के स्रोत में कृषि, व्यवसाय और अन्य व्यवसाय भी शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण किसी भी तरह से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत कोटा में बाधा नहीं डालता है। अदालत ने कहा कि गरीब सवर्णों को समाज में बराबरी पर लाने के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की जरूरत है।
साल 2019 में मोदी सरकार ने 103वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था की थी, जिसका कई लोगों ने विरोध किया था।
न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ईडब्ल्यूएस आरक्षण के समर्थन में सहमत हुए। उन्होंने कहा कि आर्थिक आधार पर दिया गया आरक्षण किसी भी तरह से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। ईडब्ल्यूएस आरक्षण समानता संहिता का उल्लंघन नहीं करता है।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण को जायज ठहराया है। उन्होंने कहा कि वह न्यायमूर्ति माहेश्वरी से सहमत हैं। सामान्य वर्ग में EWS कोटा वैध और संवैधानिक है।
EWS कोटे पर वैधता को लेकर फैसला सुनाते हुए जस्टिस जेबी पारदीवाला ने अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह भी विचार करने की जरूरत है कि आरक्षण कब तक जरूरी है? उन्होंने कहा कि गैर-बराबरी को दूर करने के लिए आरक्षण कोई अंतिम समाधान नहीं है। यह सिर्फ एक शुरुआत भर है। इस बीच एक्सपर्ट्स का कहना है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण की वैधता को सुप्रीम कोर्ट से मंजूर किए जाने के बाद इस तर्ज पर राज्यों में भी कुछ जातियों को आरक्षण प्रदान करने पर विचार हो सकता है।
ईडब्ल्यूएस कोटे के अन्तर्गत आने वाले लोगों के लिए कुछ अनिवार्य शर्तें भी हैं. इस श्रेणी के तहत एक व्यक्ति के पास 5 एकड़ से कम कृषि भूमि होनी चाहिए. इसके साथ ही उनका रिहायशी फ्लैट 200 वर्ग मीटर या इससे ज्यादा का नहीं होना चाहिए. यदि कोई आवासीय फ्लैट 200 वर्ग मीटर से अधिक का है तो वह नगर पालिका के अंतर्गत नहीं आना चाहिए.
ईडब्ल्यूएस आरक्षण सरकारी नौकरियों में और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए आवेदन करने में छूट प्रदान करता है, शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में प्रवेश के लिए ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत 10 फीसदी आरक्षण होगा.
किसी व्यक्ति को यह साबित करने के लिए कि वह समाज के ईडब्ल्यूएस से संबंधित है, उसके पास आरक्षण का दावा करने के लिए ‘आय और संपत्ति प्रमाणपत्र’ होना चाहिए. विशेष रूप से, प्रमाण पत्र केवल तहसीलदार या उससे ऊपर के रैंक के राजपत्रित अधिकारियों द्वारा जारी किया जाना चाहिए. यह आय प्रमाण पत्र एक वर्ष के लिए वैध होता है. ईडब्ल्यूएस लाभार्थियों को हर साल अपने प्रमाणपत्रों का नवीनीकरण कराना होता है.