पटना/बख्तियारपुर : महाशिवरात्रि के मौके पर शिवालयों में उमड़ी भक्तों की भीड़, भजन और भक्ति की रसधार पूरे देश में बही| वही पटना जिले के बख्तियारपुर स्थित श्रीराम मंदिर में स्थानीय शैव भक्तों ने भगवान भोले नाथ की पूजा-अर्चना कर परिवार, समाज और देश के कल्याण की कामना की| महाशिवरात्रि के मौके पर श्रद्धालुओं ने शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के साथ ही मनोकामना पूर्ण होने के लिए मन्दिरों में रुद्राभिषेक भी किया|
शैव भक्त श्यामानन्द याजी ने बताया कि बख्तियारपुर के इस श्रीराम मन्दिर के प्रति लोगों की विशेष श्रद्धा है जहाँ भक्तों की मन्नतें पूरा होती है| उन्होंने कहा कि इस मंदिर में आस-पास के इलाकों से श्रद्धालू सालोभर पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं| महाशिवरात्रि के दिन भक्तों की यहाँ काफी भीड़ उमड़ती है जहाँ जलाभिषेक, रुद्राभिषेक से लेकर रात में निकलने वाली भगवान भोलेनाथ की बारात में भारी तादाद में लोग शामिल होते हैं|
गौरतलब है कि हर चंद्र मास का चौदहवाँ दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्श में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि, को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च माह में आती है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य भीतर ऊर्जा का प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। इस समय का उपयोग करने के लिए, इस परंपरा में, हम एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले – आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए – निरंतर जागते रहते हैं।
महाशिवरात्रि का महत्व
महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे। यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।