नयी दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कालेधन को निकालने के भले ही नोटबंदी को जायज ठहरा रहे हों, लेकिन हकीकत यह है कि उनकी इस नोटबंदी ने देश के करीब 60 लाख लोगों के मुंह से निवाला छीनने का काम किया है. इसका सबसे बड़ा कारण नोटबंदी के बाद भारत में करीब 15 लाख लोगों का रोजगार जाना है. इस बात का खुलासा सेंटर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकोनाॅमी (सीएमआईई) की सर्वेक्षण रिपोर्ट में किया गया है. सीएमआर्इर्इ की रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी के बाद भारत में लगभग 15 लाख लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ी हैं. अगर एक कमाऊ व्यक्ति पर घर के चार लोग आश्रित हैं, तो इस लिहाज से पीएम नरेंद्र मोदी के एक फैसले से 60 लाख से ज्यादा लोगों के मुंह से रोटी का निवाला छीन लिया गया. सीएमआईई ने सर्वे में त्रैमासिक वार नौकरियों का आंकड़ा पेश किया है. सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे के अनुसार, नोटबंदी के बाद जनवरी से अप्रैल, 2017 के बीच देश में कुल नौकरियों की संख्या घटकर 405 मिलियन रह गयी थीं, जो सितंबर से दिसंबर, 2016 के बीच 406.5 मिलियन थी. इसका मतलब यह कि नोटबंदी के बाद नौकरियों की संख्या में करीब 1.5 मिलियन अर्थात 15 लाख की कमी आयी. देशभर में हुए हाउसहोल्ड सर्वे में जनवरी से अप्रैल, 2016 के बीच युवाओं के रोजगार और बेरोजगारी से जुड़े आंकड़े जुटाये गये थे. इस सर्वे में कुल 1 लाख 61 हजार, एक सौ सड़सठ घरों के कुल 5 लाख 19 हजार, 285 युवकों पर सर्वे किया गया था. सर्वे में कहा गया है कि तब 401 मिलियन यानी 40.1 करोड़ लोगों के पास रोजगार था. यह आंकड़ा मई-अगस्त, 2016 के बीच बढ़कर 403 मिलियन यानी 40.3 करोड़ और सितंबर-दिसंबर, 2016 के बीच 406.5 मिलियन यानी 40.65 करोड़ हो गया. इसके बाद जनवरी से अप्रैल, 2017 के बीच रोजगार के आंकड़े घटकर 405 मिलियन यानी 40.5 करोड़ रह गये. मतलब साफ है कि इस दौरान कुल 15 लाख लोगों की नौकरियां खत्म हो गयीं.