योजना को तभी सफल माना जाएगा, जब लाभ पात्र परिवारों तक पहुंचे। ऐसा नहीं होता तो साफ है कि व्यवस्था में छेद है। अपात्र लोगों को लाभ पहुंचने से योजना की सार्थकता खत्म हो जाती है। जरूरतमंदों के लिए उठाए गए कदम भी वहीं के वहीं रह जाते हैं, जहां से शुरुआत हुई थी। प्रदेश व केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न वर्गो के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। इनसे कई पात्र लोग लाभान्वित हो रहे हैं लेकिन कुछ योजनाएं ऐसी हैं जिनका लाभ अपात्र उठा रहे हैं। ऐसी ही एक योजना गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के कल्याण की है, जिसमें अपात्र लोगों की घुसपैठ से पात्र परिवारों के हक पर डाका डाला जा रहा है। विषय की गंभीरता इसी से दिखती है कि मुख्यमंत्री को भी कहना पड़ा कि बीपीएल परिवारों में शामिल अपात्रों व रिश्तेदारों को बाहर निकालें। योजना का सच यह है कि दस साल पहले जिन परिवारों को इसमें शामिल किया गया था, वे आज भी इससे बाहर नहीं हुए हैं। यह देखने की फुर्सत किसी के पास नहीं थी कि इनमें से कितने परिवार गरीबी रेखा से ऊपर उठ चुके हैं। दूसरा कारण वोट बैंक के लालच में पंचायतों में अपनों को शामिल करने की होड़ लगना भी है। गरीब परिवारों के कल्याण के लिए चलाई एक बेहतरीन योजना भाई-भतीजावाद की भेंट चढ़ना दुखद है। मानकों की अनदेखी कर ऐसे परिवारों को योजना में शामिल कर लिया जाता है, जो सुविधा संपन्न हैं। इस कारण गरीब फिर पिसता रहता है और फर्जी गरीब उनके अधिकार पर कब्जा जमा लेते हैं। उन्हें वे लाभ नहीं मिल पाते, जिनकी उन्हें जरूरत है। योजना का सफल कार्यान्वयन तभी हो सकता है यदि सभी पक्ष इसके लिए खुले मन से काम करें। परिवारों का चयन करते समय सरकार द्वारा तय किए गए मानकों का बारीकी से अध्ययन हो। भाई-भतीजावाद को छोड़कर उन परिवारों का चयन करना चाहिए, जिन्हें वाकई संबल दिए जाने की जरूरत है। सरकारी स्तर पर भी योजना की निगरानी होनी चाहिए तथा उन परिवारों को सूची से बाहर किया जाना चाहिए, जिन्हें अपात्र होते हुए भी गरीब मान लिया गया है। साथ ही ऐसे पंचायत प्रतिनिधियों व अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए जो मानकों की अनदेखी कर गलत परिवारों का चयन करते हैं। कुछ कठोर कदम उठाने से पात्र परिवारों को लाभ मिलता है तो यह योजना की सफलता के द्वार खोल देगा।