उम्मीद का नया चेहरा

रिपोर्ट: साभारः

दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने अपना कार्यभार संभाल लिया है। इस बार परिस्थितियां काफी कुछ \'आप\' के पक्ष में हैं। देखना है, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल इसका फायदा उठा पाते हैं या नहीं। एक तो उनके पास पर्याप्त सीटें हैं। दूसरा, पिछले बार की तरह वह सत्ता और विपक्ष, दोनों के निशाने पर नहीं हैं। पिछले साल उन्हें दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। एक तो सत्तारूढ़ कांग्रेस के खिलाफ, दूसरी बीजेपी के खिलाफ। फिर \'आप\' को लेकर संदेह का वातावरण भी बना हुआ था। तमाम विपक्षी दलों और जनता के एक बड़े हिस्से में कई तरह की आशंकाएं थीं। लेकिन इस बार उन्हें व्यापक स्वीकृति प्राप्त है। देश के राजनैतिक हालात ऐसे हैं कि वे तमाम विपक्षी दलों के लिए हीरो बनकर उभरे हैं। ये पार्टियां उन्हें बड़ी आशा से देख रही हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि केजरीवाल ने जीतते ही केंद्र से संवाद शुरू कर दिया है। दिल्ली की जो तकनीकी स्थिति है, उसमें केंद्र से उनके रिश्ते बहुत मायने रखते हैं। पिछली बार केंद्र सरकार से टकराव मोल लेते हुए ही उन्होंने गद्दी छोड़ी थी, लेकिन इस बार अरविंद खुद कह रहे हैं कि वह सिर्फ दिल्ली की सरकार चलाएंगे। ऐसे में जनता से किए गए अपने वादे पूरे करने के लिए उन्हें केंद्र के साथ अहं के टकराव से बचना होगा। जैसे, \'आप\' का वादा है कि राजधानी में 20 नए कॉलेज खोले जाएंगे। इन कॉलेजों के लिए कुछ जमीन गांव वालों से मिल जाए तो भी डीडीए की मदद के बिना काम नहीं चलने वाला, और डीडीए केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के पास है। यही बात कानून-व्यवस्था पर भी लागू होती है। \'आप\' सरकार के कई वादे कानून-व्यवस्था से जुड़े हैं, लेकिन पुलिस केंद्र के पास है। जन लोकपाल जैसे तमाम महत्वपूर्ण बिल भी विधानसभा में पेश होने से पहले और पास होने के बाद केंद्र सरकार के पास जाएंगे। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का मुद्दा इस शहर से काम करने वाली दोनों सरकारों के बीच स्थायी रस्साकशी का विषय बनने वाला है। ऐसे में राज्य सरकार का सबसे ज्यादा कौशल इसी में परखा जाएगा कि वह केंद्र से अपनी अधिक से अधिक बातें कैसे मनवा पाती हैं। इसके लिए अरविंद को अपना हठी रवैया छोड़ना होगा, जो पिछली बार उन्होंने दिखाया था और जिसके लिए उनकी काफी आलोचना भी हो चुकी है। वैसे, इस बार वह काफी बदले हुए दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने अपने साथियों से अहंकार छोड़ने की बात कही है। अपना मंत्रिमंडल बनाते हुए वह सचेत रहे हैं और पिछली बार के विवादास्पद मंत्रियों का पत्ता साफ कर दिया है। उम्मीद है, उनके मंत्री इस बार ज्यादा जिम्मेदारी से काम करेंगे। केजरीवाल चाहें तो दिल्ली में अच्छे गवर्नेंस वाली सरकार चला कर गुजरात मॉडल का एक विकल्प खड़ा कर सकते हैं। अगर यह संभव हुआ तो इससे राष्ट्रीय राजनीति का मुहावरा बदल सकता है। जिन राज्यों में जल्दी चुनाव होने वाले हैं, वहां गुजरात बनाम दिल्ली की चर्चा एक सकारात्मक बहस को जन्म देगी।


Create Account



Log In Your Account