बसपा सुप्रीमों व पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बीजेपी की केन्द्र व इनकी विभिन्न राज्य सरकारों पर घोर ग़रीब, मज़दूर, किसान, दलित व पिछड़ा वर्ग-विरोधी होने का आरोप लगाते हुये कहा कि इनकी सरकारों में इन वर्गों का जिस प्रकार से भयंकर शोषण, उत्पीड़न व अन्याय लगातार होता चला आ रहा है उसके बाद इन वर्गों के हित व कल्याण के बारे में इनको बात करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं बचा है अर्थात् बीजेपी के नेताओं को इन वर्गों के बारे में कोई भी बात करने के पहले अपने गिरेबान में झाँक कर जरूर देखना चाहिये कि इनका अपना रिकार्ड कितना ज्यादा जातिवादी व दाग़दार है।
बीजेपी की केन्द्र व इनकी विभिन्न राज्य सरकारों का रवैया घोर ग़रीब, मज़दूर, किसान, दलित व पिछड़ा वर्ग-विरोधी तथा इनके द्वारा काम कम और बात अधिक। बीजेपी सरकारों में इन वर्गों का जिस प्रकार से भयंकर शोषण, उत्पीड़न व अन्याय लगातार होता चला आ रहा है उसके बाद इन वर्गों के हित व कल्याण के बारे में इनको बात करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं बचा है अर्थात् बीजेपी के नेताओं को इन वर्गों के बारे में कोई भी बात करने के पहले अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिये कि इनका अपना रिकार्ड कितना ज़्यादा जातिवादी व दागदार है। ’’आरक्षण’’ को नकारात्मक सोच के साथ देखने के बजाए इसे देश में सामाजिक परिवर्तन के व्यापक हित के तहत् एक सकारात्मक समतामूलक मानवतावादी प्रयास के रूप में देखना चाहिये। यही कारण है कि बी.एस.पी. अपरकास्ट समाज व धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के ग़रीबों को भी आरक्षण की सुविधा देने की पक्षधर है जिसके लिये संविधान में उचित संशोधन करने की माँग को लेकर संसद के भीतर व संसद के बाहर संघर्ष करती रही है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सरकार में देश में अघोषित इमरजेन्सी जैसे माहौल क्यों? साथ ही बीजेपी के नेताओं की तानाशाही व आपराधिक मानसिकता इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि वे लोग मीडिया को भी जान की मारने की धमकी देने लगे हैं फिर भी इनका शीर्ष नेतृत्व इनके आगे दण्डवत नज़र आता है जो निन्दनीयः बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व
मायावती ने कहा कि बीजेपी की केन्द्र व राज्य सरकारें एवं खासकर उत्तर प्रदेश की सरकार पूर्व की सरकारों से दो क़दम आगे बढ़कर ग़रीबों, मज़दूरों, किसानों, आदिवासियों व पिछड़ों का शोषण व उत्पीड़न कर रहीं है तथा इन वर्गों को इनके जीने के मौलिक अधिकार व आरक्षण के संवैधानिक अधिकार से भी वंचित रख रही हैं। ख़ासकर दलितों, आदिवासियों व पिछड़ों के आरक्षण के मामले में तो इनका रवैया काफी ज़्यादा द्वेषपूर्ण व जातिवादी बना हुआ है और यही कारण है कि आरक्षण के आधिकार को पूरी तरह से निष्क्रिय व निष्प्रभावी बना दिया गया है तो दूसरी तरफ सरकार की बड़ी-बड़ी परियोजनायें ज़्यादातर बड़े-बड़े पूंजीपतियों की निजी क्षेत्र की कम्पनियों को सौपी जा रही न्यायपालिका के साथ-साथ शिक्षण संस्थानों सहित प्राइवेट सेक्टर आदि में भी आरक्षण की सुविधा की माँग करते हुये उन्होंने कहा कि आरक्षण को नकारात्मक सोच के साथ देखने के बजाए इसे देश में सामाजिक परिवर्तन के व्यापक हित के तहत् एक सकारात्मक समतामूलक मानवतावादी प्रयास के रूप में देखना चाहिये। यही कारण है कि बी.एस.पी. अपरकास्ट समाज व धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के ग़रीबों को भी आरक्षण की सुविधा देने की पक्षधर है और इसके लिये संविधान में उचित संशोधन करने की मांग को लेकर संसद के भीतर व संसद के बाहर लगातार संघर्ष करती रही है। देश के करोड़ों ग़रीबों को उनको सम्मानपूर्वक जीने का संवैधानिक हक देने में सरकारों को ना तो दकियानूसी करनी चाहिये और ना ही कंजूसी क्योंकि इनके सही हित व कल्याण के बिना भारत का भला कभी भी नहीं हो सकता है। जातिवादी घृणा व द्वेष के ज़हर से मुक्त इन वर्गों का हित साधना ही सच्ची देशभक्ति है जिसमें ख़ासकर बीजेपी की सरकारें बुरी तरह से विफल साबित हो रही हैं।
मायावती ने कहा कि बीजेपी सरकारें देश की आमजनता के प्रति अपनी कानूनी व संवैधानिक ज़िम्मेदारियों से भागने के लिये ही हर दिन नये-नये शिगूफे छोड़ती रहती है व लोगों की धार्मिक भावनायें भड़काने का प्रयास करती रहती हैं ताकि इनकी सरकार की घोर विफलताओं पर से लोगों का ध्यान बंटा रहे। इसके साथ ही देशभक्ति का ढिंढोरा पीटते रहना इनकी आदत सी बन गयी है जिसका ख़ास मकसद इनकी पार्टी व सरकार की जनविरोधी नीयत, नीति व करतूतों पर पर्दा पड़ा रहे। इसी क्रम में लगभग 42 वर्ष पहले कांग्रेस पार्टी द्वारा देश में थोपी गई ’’राजनीतिक इमरजेन्सी’’ की याद बार-बार ताज़ा की जाती है जबकि पूरा देश पहले इनके ’’नोटबन्दी की आर्थिक इमरजेन्सी’’ की जबर्दस्त मार झेलने के साथ ही पिछले चार वर्षों से हर मामले में ’’अघोषित इमरजेन्सी’’ जैसा माहौल हर स्तर पर लोगों को झेलना पड़ रहा है। इससे हर समाज, हर वर्ग व हर व्यवसाय के लोग काफी ज्यादा घुटन व त्रस्त महसूस कर रहे हैं। इतना ही नही बल्कि खुलेआम बीजेपी के नेतागणों की तानाशाही व आपराधिक मानसिकता इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि वे लोग मीडिया जगत को जान की धमकी देने लगे हैं और इनका शीर्ष नेतृत्व इन तत्त्वों के आगे पूरी तरह से मजबूर व दण्डवत नजर आता है, क्यों? इसलिये ना केवल दलितों व पिछड़ों आदि के आरक्षण बल्कि महिलाओं व सर्वसमाज के गरीबों आदि के हित व कल्याण के मामले में कोई भी टीका-टिप्पणी आदि करने से पहले बीजेपी व प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सरकार को अपने गिरेबान में झाँककर ज़रूर देखना चाहिये कि वे देश की आमजनता के साथ अघोषित इमरजेन्सी जैसा इतना बर्बर व्यवहार क्यों कर रहे हैं। इनको सबसे पहले देश में र्छाइ व्यापक ग़रीबी, आसमान छूती महंर्गाइ , व अत्यन्त पीड़ादायी बेरोजगारी आदि की जबर्दस्त राष्ट्रीय समस्या का समाधान करके सच्चे देशभक्त होने का परिचय देना चाहिये ताकि इनकी देशभक्ति का सही लाभ यहाँ की सवा सौ करोड़ आमजनता को मिल सके।