28 जून 2019 को विधानसभा सचिवालय के नवनियुक्त कर्मियों को नियुक्ति पत्र वितरण के दौरान मेरे मन में विचार आया कि विधानमंडल के सभी सदस्यों को जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे का खतरा, बाढ़ की आशंका, भू-जल स्तर में गिरावट, ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी उपलब्ध करायी जाए तथा इस संबंध में उनके अनुभवों को साझा किया जाएताकि जनप्रतिनिधि भी अपने-अपने क्षेत्रों में पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरुक करेंगे, उनसे पर्यावरण संबंधी बातों की चर्चा करेंगे तो उनमें चेतना आएगी। इसको लेकर 13 जुलाई को “राज्य में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न आपदाजनक स्थिति पर विमर्श” विषय पर विधानमंडल के सेंट्रल हॉल में इसका आयोजन किया गया, जिसमें हिस्सा लेकर मुझे प्रसन्नता हुई।
जलवायु परिवर्तन इन दिनों सबसे बड़े खतरे के रुप में उभर कर सामने आया है। ग्लोबल वार्मिंग में परिवर्तन से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है जिसका परिणाम जलवायु चक्र में अनियमितता के रुप में देखने को मिल रही है। ग्लोबल वार्मिंग ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से होती है, जिसके लिए मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं।जीवन को जीने के लिए ऊर्जा की जरुरत होती है। पृथ्वी पर स्वतः पैदा होने वाली ग्रीन हाउस गैसें जैसे कार्बन डाईऑक्साइड, मिथेन, नाईट्रस आक्साईड एवं जलवाष्प गर्मी को सोखने वाले तत्व हैं जो पृथ्वी की गर्मी को बनाए रखने का काम करते हैं। अगर ग्रीन हाउस का इफेक्ट नहीं होता तो पृथ्वी अत्यधिक ठंडी हो जाती और हिमयुग जैसी स्थिति बनी रहती। इसलिए पृथ्वी पर सृष्टि की उत्पति में ग्रीन हाउस गैसों से उत्पन्न उष्मा का महत्वपूर्ण योगदान है। हमारी पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा पानी है और यह पानी, बर्फ, तरल और वाष्प के रुप में पृथ्वी पर मौजूद है, जो जल चक्र की वजह से एक से दूसरे रुप में परिवर्तित होता रहता है, जो पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित रखने में बड़ी भूमिका निभाता है।
संभावित बाढ़ एवं सुखाड़ को लेकर 03 जून 2019 को संबद्ध विभागों के साथ बैठक हुई थी। पहले से ही एस.ओ.पी. (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजियोर)का गठन किया जा चुका है, जिसमें किन-किन चीजों पर निगरानी रखनी है, किन किन बिंदुओं पर काम करना है इन सब चीजें तय की गई है।06 जुलाई को भी संभावित बाढ़ एवं सुखाड़ को लेकर संबंधित विभागों के साथ विस्तार से चर्चा हुई। नेपाल में और उत्तर बिहार में भारी वर्षा के कारण कई नदियों का जलस्तर बढ़ गया है। हर साल 15 जून को मॉनसून की शुरुआत होती है लेकिन अब मॉनसून के आने का समय भी पीछे हो गया है। मौसम विभाग ने पिछले वर्ष सामान्य से कम वर्षा होने का अनुमान लगाया था। इस वर्ष भी जून माह में कम वर्षा हुई। जलवायु परिवर्तन से वर्षापात में गिरावट, भूजल स्तर में गिरावट, पेयजल संकट, सूखे की स्थिति, बाढ़ की स्थिति जैसी कई अनेक समस्याएं उत्पन्न हो रही है। पहले यहां वर्षापात 1200-1500 मिमी होता था लेकिन पिछले 30 वर्ष के औसत आकलन के आधार पर 1027 मिमी वर्षा हुई है,जबकि पिछले 13 वर्षों से यहां औसत वर्षा 901 मिमी तक पहुंच गई है।
ग्रीन हाउस प्रभाव वातावरण की कुदरती प्रक्रिया है लेकिन बढ़ते औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में कल-कारखानों, वाहनों, जीवनशैली में धूम्रपान एवं विलासिता उपकरणों का उपयोग, घटते वृक्ष आवरण की वजह से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है, जिसका असर ग्लोबल वार्मिंग के रुप में दिखने लगा है। ग्लेशियर सिकुड़ता जा रहा है, रेगिस्तान फैलता जा रहा है। इसका प्रमाण आप देख लीजिए असमय वर्षा, तो कहीं सुखाड़, तो कहीं बाढ़ की समस्या, समुद्र के जलस्तर में बढ़ोत्तरी, आंधी-तूफान की बढ़ती तीव्रता आदि अनेक समस्याएं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप में दिखने लगी हैं। इसको लेकर पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों ने आशंका जतायी है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते हो रहे जलवायु परिवर्तन से निकट भविष्य में कई प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ सकता है। अगर हमलोगों ने इस दिशा में कारगर कदम नहीं उठाया तो सृष्टि के नष्ट होने का खतरा हो सकता है।
आईपीसीसी (इंटर गर्वनमेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) की 2013 की रिपोर्ट को हम देखते हैं तो पता चलता है कि 21वीं सदी में वैश्विक तापमान में सामान्य दशा में 0.3 से 1.7 डिग्री सेन्टीग्रेड की वृद्धि होना तय है, जो चरम स्थिति में 2.6 से 4.8 डिग्री सेन्टीग्रेड तक हो सकता है। वर्ष 2030 तक भारत में औसत तापमान वृद्धि 2.0 डिग्री सेन्टीग्रेड पहुंच सकती है, जिससे वर्षा में भारी अनियमितता, कम समय में भयंकर तीव्रता के साथ वर्षा, लम्बे समय तक वर्षा में कमी तथा लम्बी वर्षा अन्तराल हो सकते हैं साथ ही अधिक तीव्रता के साथ तूफान उत्पन्न होने की आशंका रहेगी। समुद्री जलस्तर लगभग 1.3 मि0मी0 प्रतिवर्ष की दर से बढ़ने का अनुमान है। वहीं आईएनसीसीए (द इंडियन नेटवर्क ऑन क्लाइमेट चेंज एसेसमेंट) की 2010 में आयी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक मकई उत्पादन में 50 प्रतिशत कमी एवं धान उत्पाद में 4.35 प्रतिशत की कमी का अनुमान है। स्वच्छ जल की उपलब्धता में 40-50 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है। इसी प्रकार बाढ़ के मामलों में भी 10-30 प्रतिशत बढ़ोत्तरी एवं सुखाड़ के मामलों में भी काफी बढ़ोत्तरी अनुमानित है।
बिहार में प्रत्येक वर्ष बाढ़ तथा सुखाड़ के कुप्रभाव का सामना करना पड़ता है। इंडियन मेट्रौलॉजिकल डिपार्टमेंट की बिहार शाखा के अनुसार राज्य में पिछले 30 वर्षो के औसत वर्षापात के आधार पर बिहार में सामान्य वर्षापात 1027 मिलीमीटर तय किया गया है। इस लम्बी अवधि के औसत वर्षापात की तुलना में पिछले 13 वर्षों (2006 से 2018) में मात्र तीन वर्ष ही ऐसे रहे हैं जब वर्षापात 1000 मिलीमीटर से अधिक रहा है।अगर हम पिछले 13 वर्षों (2006 से 2018) का औसत वर्षापात देखें तो यह 901 मिलीमीटर रहा है। वर्ष 2018 का औसत वर्षापात तो मात्र 771.3 मिलीमीटर रहा है। मॉनसून के देर से आने और अल्प वर्षापात की वजह से भू-जल स्तर में कमी तथा पेयजल संकट देखने को मिल रहा है। वर्ष 2018 में 534 प्रखंडों में से 280 प्रखंड को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था।इस वर्ष दक्षिणी बिहार के जिलों के साथ-साथ उत्तरी बिहार के जिलों में भी जलस्तर में औसतन 2-7 फीट तक कमी आई है।राज्य में अवस्थित जलाशयों में जल संचयन में कमी हुई है तथा अधिकांश जलाशयों से सिंचाई हेतु पर्याप्त जल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। तालाब एवं पोखर अतिक्रमण एवं अन्य कारणों से सूख रहे हैं तथा भू-जल रिचार्ज नहीं हो पा रहा है। जिसके कारण भू-जल स्तर में गिरावट दर्ज की जा रही है। अल्प वर्षापात एवं नहरों में पर्याप्त पानी नहीं रहने के कारण सिंचाई में कठिनाई उत्पन्न हो रही है, जिसके कारण इस वर्ष भी सूखे की स्थिति से निपटने में भारी परेशानी हो सकती है।
बिहार की कृषि व्यवस्था पूरी तरह से मॉनसून पर आधारित है।इधर जलवायु-परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादकता में कमी, मिट्टी की गुणवत्ता का हृास होना, कीटों, बीमारियों एवं खरपतवारों में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी आदि जैसी समस्याएं विकसित होने लगी हैं। वैसे जलवायु परिवर्तन के न्यूनीकरण उपायों को बिहार राज्य में अपनाया जा रहा है जिसके अन्तर्गत सौर ऊर्जा का उपयोग, हरित आवरण को बढ़ाना, जैविक खेती को बढ़ावा, किसानों हेतु जलवायु परिवर्तन के अनुरूप फसल चक्र तैयार करना आदि शामिल है। साथ ही भू-जल स्तर को रिचार्ज करने हेतु पारम्परिक जल स्रोतों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। इसके लिए आहर, पाईन, तालाब, पोखर, कुआं इत्यादि की उड़ाही एवं जीर्णोंद्धार करने की जरूरत है। इसके लिए विभिन्न विभाग आपस में समन्वय स्थापित कर पर्यावरण संरक्षण हेतु योजना बना कर कार्य करेंगे।
जैविक खेती मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्म जीवों की संख्या एवं गतिविधि को बढ़ाने में मदद करती है तथा इसके माध्यम से वायुमंडल के कार्बन एवं नाईट्रोजन को मिट्टी में स्थिर करने में मदद मिलती है।जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए गंगा नदी के दोनों किनारों पर जैविक कॉरिडोर स्थापित किया जा रहा है। यह गंगा नदी की स्वच्छता बनाये रखने में सहायक होगी। जैविक सब्जी की खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि इनपुट अनुदान की योजना भी शुरू की गई है। इधर किसान धान कटनी के बाद फसल अवशेष को जला देते हैं। उनके बीच यह भ्रांति है कि इसे जलाने से जो राख खेत को मिलती है इससे उपज क्षमता बढ़ती है। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम कि इसके जलने से मिट्टी का तापमान बढ़ता है जिससे मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्म जीव मर जाते हैं। इसके परिणाम स्वरूप खेत की उपज क्षमता घटती है, धुएं से पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान को लेकर इसी वर्ष अन्तर्विभागीय कार्यसमूह का गठन किया गया है, जिसके माध्यम से किसानों को जागरुक किया जा रहा है। साथ ही फसल अवशेषों के प्रबंधन हेतु कृषि यंत्र जैसे स्ट्रॉ-रिपर, स्ट्रॉ-बेलर, रिपर-कम-बाईंडर किसानों के बीच उपलब्ध कराया जा रहा है।हमलोग अक्षय ऊर्जा यानि सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। सभी सरकारी दफ्तरों की छतों पर सौर पैनल लगाने, सूदूर क्षेत्रों में बड़ी आबादी को सोलर पॉवर आपूर्ति तथा कजरा एवं पीरपैंती में थर्मल पॉवर प्लांट के स्थान पर सोलर पॉवर प्लांट लगाने का निर्णय लिया गया है|
जल संरक्षण हेतु पारम्परिक जल स्रोतों यथा आहर, पाईन, तालाब, पोखर, कुंआ इत्यादि की उड़ाही एवं उनका जीर्णोंद्धार किया जा रहा है। जिससे भू-जल स्तर में होने वाली गिरावट को रोका जा सकेगा। वर्तमान में राज्य में सार्वजनिक कुंओं का सर्वेक्षण कर उनकी उड़ाही एवं जीर्णोद्धार कार्य शुरू किया गया है जिसे राज्य के लोगों द्वारा काफी सराहा गया है। इस योजना को विस्तारित कर राज्य के सभी सार्वजनिक कुंओं का सर्वेक्षण और उनकी उड़ाही एवं जीर्णोद्धार की कार्य योजना बनायी जा रही है। इसके अतिरिक्त सभी जिलों में सार्वजनिक भूमि पर अवस्थित तालाब पोखर आदि को एरियल सर्वे के हिसाब से चिन्हित कर इन संरचनाओं का जीर्णोद्धार कराया जायेगा। ग्रामीण एवं पथ निर्माण विभाग की सड़कों के निर्माण हेतु यथासंभव निकटवर्तीतालाब/पोखर/आहर से मिट्टी निकालकर उपयोग की जाएगी ताकि जल संरक्षण को प्रोत्साहन मिल सके। राज्य के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में पारम्परिक जल स्रोतों के जीर्णोद्धार कार्यों हेतु राज्य सरकार धनराशि उपलब्ध कराने में कोई कमी नहीं आने देगी।सरकारी भवनों में वर्षा जल संचयन द्वारा भू-जल स्तर को बढ़ाने हेतु रेन वॉटर हार्वेस्टिंग संरचनाओं की व्यवस्था की गयी है। इस वर्ष भवन निर्माण विभाग के नियन्त्रणाधीन राज्य के सभी मौजूदा सरकारी भवनों (आवासीय/गैर आवासीय) में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग कर जल संरक्षण का निर्णय लिया गया है। स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग एवं पुलिस के प्रशासनिक नियंत्रणाधीन निगमों द्वारा अनुरक्षित भवनों में संबंधित निगम द्वारा रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था के लिए मॉडल उपलब्ध कराये गये हैं। रेन वॉटर हार्वेस्टिंगद्वारा भू-जल स्तर बढ़ाने में इस बात का ध्यान रखा जाय कि दूषित पानी किसी भी हालत में भू-जल में जाकर न मिले अन्यथा सदियों से उपलब्ध शुद्ध भू-जल भी प्रदूषित हो सकता है। गया ज्ञान और निर्वाण की भूमि है, यहां टैंकर के माध्यम से जलापूर्ति करना पड़ता है इसलिए गया, राजगीर जैसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक जगहों पर पर्याप्त पानी पहुंचाने की व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है। इसके लिए धनराशि की समस्या नहीं है और न ही यह काम असंभव है। दिल्ली में किस प्रकार से पानी मुहैया कराया जाता है, इससे सभी परिचित हैं। मेरा मानना है कि कम पानी वाले क्षेत्रों में पाइप लाइन के जरिए पानी पहुंचाकर उसका संरक्षण एवं उपयोग की व्यवस्था की जा सकती है।
राज्य में हरित आवरण को बढ़ाने के प्रयास किए गए हैं। वर्ष 2011 में बिहार का हरित आवरण राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 9.79 प्रतिशत था जो अब बढ़कर लगभग 15 प्रतिशत हो गया है। अगले पांच वर्षों में हरित आच्छादन को बढ़ाकर 17 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है।हरित आवरण में वृद्धि जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के लिए एक प्रमुख रणनीति है। राज्य में पारम्परिक जल स्रोतों के जीर्णोद्धार के बाद उसके किनारे सघन वृक्षारोपण, पथों, नहरों एवं बांध के किनारे मल्टी लेयर प्लांटेशन तथा वायु प्रदूषण की रोकथाम हेतु शहरी वानिकी को बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्ष 2019-20 में 1.25 करोड़ पौधारोपण का लक्ष्य रखा गया है और वृक्षारोपण करते समय फलदार वृक्षों के साथ-साथ जैव-विविधता बढ़ाने वाले पौधों पर विशेष जोर दिया जा रहा है। जंगल एवं पहाड़ी क्षेत्रों में स्वॉयल मॉइश्चर कन्जर्वेशन संरचनाओं जैसे चेकडैम, कन्टूर बन्डिंग का निर्माण कर जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन संरचनाओं के निर्माण से मिट्टी का कटाव कम हुआ है और जमीन में नमी की उपलब्धता बढ़ रही है जिससे हरित आवरण बढ़ाने में सफलता मिल रही है। गया एवं राजगीर के पहाड़ों पर बढ़ी हुई हरियाली इसका ताजा प्रमाण है।
हमारे आस-पास की जलवायु एवं वातावरण में होने वाले परिवर्तन का प्रत्यक्ष (तापमान परिवर्तन, बाढ़, सुखाड़, आंधी, वायु प्रदुषण) एवं अप्रत्यक्ष (कीट जनित एवं जल जनित बीमारी) प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन से मानव रोग चक्र मे बदलाव आ रहा है और इनकी तीव्रता में भी वृद्धि हुई है। हाल ही में ए0ई0एस0 (एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम) की बढ़ी हुई घटनाएं इसका ताजा उदाहरण हैं। इसके लिए राज्य के बच्चों का नियमित एवं सम्पूर्ण टीकाकरण (जैपनिज इन्सेफेलाइटिस सहित) कराने की नितांत आवश्यकता है।
जब हमने मुजफ्फरपुर में ए0ई0एस0 प्रभावित परिवारों के सर्वेक्षण कराया तो पता चला है कि कई परिवारों के पास राशन कार्ड उपलब्ध नहीं था। राज्य के सभी लोगों को राशन कार्ड उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जा रहा है और इस हेतु राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी करने की कार्रवाई की जायेगी। साथ ही गरीब लोगों के सभी परिवारों को जीविका समूह से जोड़ा जा रहा है ताकि परिवारों में ए0ई0एस0/ जेई जैसी बीमारियों के बारे में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध हो सके। इन परिवारों को सतत् जीविकोर्जन योजना से भी लाभ दिलाया जा रहा है। इस बार तो मगध क्षेत्र (गया, औरंगाबाद, नवादा) में हीट वेब का कहर भी लोगों को झेलना पड़ा है। इसके अतिरिक्त राज्य में वज्रपात की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है।
हमें विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को ध्यानमें रखते हुए एक समग्र कार्यनीति अपनानी होगी। जिससे अधिक से अधिक लोग पर्यावरण और साफ-सफाई के प्रति जागरूक और सचेत हो सकें। प्राकृतिक संसाधनों पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘‘पृथ्वी से हमें जो कुछ मिलता है वह हमारी आवश्यकता पूरी करने के लिए पर्याप्त है लेकिन हमारे लालच को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है”। विधानमंडल के सेंट्रल हॉल में जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों तथा इससे उत्पन्न परिस्थितियों के संबंध में विचार-विमर्श किया गया।130 से अधिक सदस्यों ने इस विषय से संबंधित अपने-अपने मौखिक और लिखित अनुभव साझा किए तथा इससे निपटने के उपायों पर भी चर्चा की। इस विमर्श से प्राप्त अनुभवों के आधार पर सरकार ने‘‘जल जीवन हरियाली अभियान”चलाने का निर्णय लिया। आपको पहले से ही पता है कि सरकार द्वारा 7 निश्चय के अंतर्गत हर घर बिजली उपलब्ध कराने का लक्ष्य था जिसे अक्टूबर 2018तक पूरा कर लिया गया । हर घर नल का जल योजना का भी तेजी से क्रियान्वयन किया जा रहा है। इसके पीछे यह उद्देश्य भी है कि एक बार सभी लोगों को बिजली और पानी की उपलब्धता हो जायेगी तो इसके बाद उन्हें अक्षय ऊर्जा के उपयोग तथा जल संरक्षण हेतु प्रेरित करना उचित होगा, क्योंकि नागरिकों को बिजली एवं पानी उपलब्ध कराये बिना इनके महत्व एवं संरक्षण की आवश्यकता महसूस नहीं होगी।किसानों को बिजली कनेक्शन उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि उन्हें सिंचाई करने में कम पैसे लगे। डीजल के पटवन से सिंचाई करने में जहां 100 रुपए की लागत आती है वहां तो बिजली के पटवन से मात्र 05 रुपए का खर्च आएगा।ये जो बिजली का उपयोग हमलोग कर रहे हैं इसका निर्माण कोयले के भरोसे है, जो एक दिन खत्म हो जाएगा। हमलोगों को अक्षय ऊर्जा यानि सौर ऊर्जा के लिए मिलकर काम करना होगा।मेरी अपेक्षा है कि आप सभी लोग इस कार्य-योजना के क्रियान्वयन में अपना सहयोग करें। साथ ही लोगों को भी जागरूक करने का काम करते रहिए। आपलोगों के सहयोग से मुझे पूरा विश्वास है कि यह कार्य-योजना सफल होगी तथा हम ‘‘जल जीवन हरियाली अभियान‘‘ के वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त कर इस धरती को बचाने में अपना योगदान कर सकेंगे।हमें विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को भी ध्यान में रखना होगा। अधिक से अधिक लोगों को पर्यावरण और साफ-सफाई के प्रति जागरूक और सचेत करने की आवश्यकता है।
बिहार में हम न्याय के साथ विकास पर काम कर रहे हैं। समाज में हाशिए पर रहने वाले लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए, महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए काम कर रहे हैं।शराबबंदी एवं नशामुक्ति के पक्ष में, समाजसुधार के लिए बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ तथा जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण संरक्षण के लिए जल-जीवन-हरियाली अभियान के समर्थन में19 जनवरी 2020 को मानव श्रृंखला का आयोजन किया गया। जल-जीवन-हरियाली अभियान का मतलब है जल और हरियाली है तभी जीवन सुरक्षित है। अगले तीन वर्षों में इस अभियान पर 24 हजार 500 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। 03 दिसंबर 2019 से 10 जनवरी, 2020 तक राज्य के सभी जिलों मेंजागरुकता सम्मेलन का आयोजन किया गया। जल-जीवन-हरियाली अभियान के अंतर्गत किए जा रहे कार्यों का जमीनी स्तर पर निरीक्षण भी किया गया। इस अभियान के विभिन्न अवयवों की प्रगति की जिला/ प्रमंडल स्तर पर जनप्रतिनिधियों एवं पदाधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक भी की गई। 19 जनवरी,2020 को इसके समर्थन में 18 हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी मानव श्रृंखला बनी, मानव श्रृंखला राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग, जिला, प्रखंड, पंचायत, गांवों की विभिन्न सड़कों और पगडंडियों से होकर गुजरी, जिसमें 05 करोड़ 18 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया। पर्यावरण संरक्षण के प्रति बिहार के लोगों में जो जागृति आयी है उसका सकारात्मक असर दिखेगा।