\'दिल्ली ड्रीम\' के लिए कम नहीं पड़ेंगे पैसे

रिपोर्ट: साभारः

पूर्ण राज्य नहीं होने के बावजूद कम से कम पैसे के मामले में केजरीवाल सरकार को केंद्र के आगे हाथ फैलाने की नौबत नहीं आएगी। करीब 37,000 करोड़ के बजट वाली दिल्ली सरकार की आय के अपने स्रोत हैं और इसमें केंद्रीय योगदान 4 पर्सेंट से भी कम होता है। जानकारों की मानें तो राज्य सरकार के पास अपना रेवेन्यू बढ़ाने के कई रास्ते भी होंगे और वह चाहे तो आय-व्यय में तालमेल बिठाकर बिजली, पानी, सड़क, स्कूल, चिकित्सा जैसे मसलों पर कई बड़े काम अपने फंड से ही कर सकती है। दिल्ली के पूर्व वित्त सचिव शक्ति सिन्हा के मुताबिक पिछले तीन साल से दिल्ली सरकार का बजट औसतन 36,000 करोड़ रहा है। इसमें केंद्र सरकार से करीब 800 करोड़ का ग्रांट मिलता है, जबकि केंद्रीय स्पॉन्सर्ड स्कीमों के लिए 400 करोड़ और करीब 1000 करोड़ का सेंट्रल प्लान असिस्टेंस मिलता है। सेंट्रल टैक्स में राज्य की हिस्सेदारी के तौर पर 325 करोड़ रुपये मिलते हैं। केंद्र चाहकर भी इन मदों में एक सीमा से ज्यादा कटौती नहीं कर सकता। राज्य के खजाने में करीब 65 पर्सेंट रकम वैट से आती है और यहां से कलेक्शन साल दर साल करीब 20 पर्सेंट की दर से बढ़ रहा है। इसी तरह स्टेट एक्साइज (3500 करोड़ ), मोटर व्हीकल्स पर टैक्स (1600 करोड़), लग्जरी (400 करोड़) वगैरह स्रोतों से मोटी कमाई होती है। यह राज्य की पॉलिसी पर निर्भर करेगा कि वह अपने आय-व्यय में कैसे तालमेल बिठाती है। उन्होंने कहा कि मौजूदा बजट में नई सरकार चाहते तो अपने वादों से संबंधित कामों को ज्यादा खर्च कर सकती है, बशर्ते दूसरी मदों में उसे कटौती करनी पड़ेगी। दूसरी तरफ कई जानकार बताते हैं कि दिल्ली सरकार के पास कमाई बढ़ाने के सीमित ही सही लेकिन कई रास्ते खुले हैं। डीएसआईआईडीसी के एक पूर्व सीएमडी ने बताया, \'जमीन बेशक डीडीए के अधीन है, लेकिन प्रॉपर्टी की बिक्री पर 6 पर्सेंट स्टांप ड्यूटी राज्य के खाते में आती है। दिल्ली में 1600 कॉलोनियों को रेगुलराइज करने की बात हो रही है। दिल्ली सरकार इन कॉलोनियों में सभी सुविधाएं देती है, लेकिन डिवेलपमेंट चार्ज या अन्य कई चार्जेज नहीं ले पाती। अभी तक वहां से न तो प्रॉपर्टी ट्रांजैक्शन पर कोई स्टांप ड्यूटी मिलती है और न ही निगमों को प्रॉपर्टी टैक्स। रेगुलराइजेशन के बाद यहां से रेवेन्यू के बड़े रास्ते खुल जाएंगे।\' जानकार यह भी कहते हैं कि दिल्ली में एम्प्लॉयमेंट जेनरेशन की संभावना हमेशा से रही है। राज्य सरकार प्रोफेशनल टैक्स और कंजेशन चार्ज लगाकर भी कमाई के स्रोत बढ़ा सकती है। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट सुविधाओं और ऑपरेशनल खर्चों को तर्कसंगत कर डीटीसी जैसे विभागों का घाटा कम किया जा सकता है। हालांकि कुछ जानकार मानते हैं कि आप जिस तरह के लोकलुभावल वादों के साथ सत्ता में आई है, उसके लिए टैक्स रेट या उसका दायरा बढ़ाने का फैसला मुमकिन नहीं होगा। प्रति व्यक्ति आय और स्टेट जीडीपी में अब तक अव्वल रही राजधानी की इंडस्ट्रियल पॉलिसी मैन्यूफैक्चरिंग से सर्विस सेक्टर की ओर शिफ्ट हो गई है। हालांकि सर्विस टैक्स से कमाई फिलहाल केंद्र को मिलती है। उल्टे आप ने यह वादा कर रखा है कि वह दिल्ली को सबसे कम वैट रेट वाला राज्य बनाएगी। हालांकि उसे भरोसा है कि करप्शन और कंप्लायंस कॉस्ट घटने से टैक्स रेवेन्यू बढ़ेगा।


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