नयी दिल्ली : पिछले कुछ महीनों से हमारी सरकार और हम व आप भी महंगाई के रोज घटते नये आंकडों पर जश्न मना रहे कि नयी सरकार में खत्म हुई महंगाई की मार. लेकिन, कृषि अर्थशास्त्रियों की मानें तो जल्द ही आम आदमी पर नये सिरे से महंगाई की मार पडती दिखेगी. इस बार लोगों पर यह मार दलहन, महंगे रबी खाद्यान्न, फल व सब्जियों की बढी कीमत के रूप में पडेगी. दुनिया भर में मशहूर कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने ऐसी ही आशंका जतायी है. महंगे होंगे दलहन, सब्जी व फल : अशोक गुलाटी अशोक गुलाटी ने कहा है कि दलहन की इन्फलेशन रेट पहले से ही 15 प्रतिशत है, लेकिन अब इसके और बढने की संभावना है. इसका कारण हाल के दिनों में बेमौसम की बारिश व मौसम में बदलाव के कारण रबी फसलों की बर्बादी है. उन्होंने कहा है कि किसान पर तो इसकी मार पडेगी, लेकिन आम लोगों पर भी इसका असर होगा. गुलाटी के अनुसार, सब्जियों, खाद्यान्नों की कीमतें बढेंगी. एक बिजनेस चैनल से उन्होंने कहा कि दरअसल, कच्चे खाद्य पदार्थ के स्टोरेज के लिए हमारे देश में पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज व वेयरहाउस नहीं है. इस कारण परेशानी बढेगी. सरकार भी इसमें असमर्थ है. बारिश से कितना नुकसान? कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, हाल में आये मौसम में बदलाव ने राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश व हरियाणा जैसे प्रमुख कृषि उत्पादक राज्यों की फसलों को नुकसान पहुंचाया है. एक अनुमान के मुताबिक, उत्तरप्रदेश में गेहूं की 50 प्रतिशत व आलू की 70 प्रतिशत फसलों को नुकसान हुआ है. उत्तरप्रदेश में हुए नुकसान का अनुमान इस बात से भी लगाया जाता है कि फसल बर्बाद होने के बाद आगरा के दो किसानों का दिल का दौरा पडने से मौत हो गयी. हालांकि यूपी की अखिलेश सरकार ने पीडित किसानों को राहत देने के लिए 200 करोड रुपये के पैकेज का भी एलान किया. उधर, मध्यप्रदेश में 15 जिलों में खेती को काफी नुकसान हुआ है. मध्यप्रदेश के 1400 गांवों के फसल तो पूरी तरह बर्बाद ही हो गयी. मन की ही बात में किसानों की दिल की बात सुनेंगे मोदी? इन सब के बीच इस रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों से मन की बात करेंगे. लेकिन अहम सवाल यह है कि वे अपने इस लोकप्रिय कार्यक्रम मन की बात में किसानों के दिल की भी बात सुनेंगे? किसानों मोदी सरकार से अपनी अहम समस्याओं के समाधान की उम्मीदें पाले हैं. जैसे, फसलों का सुरक्षित रख रखाव, वेयर हाउस, कोल्ड स्टोरेज, उत्पादन, विक्रय का चैन, फसलों का बीमा और उनका उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य. नरेंद्र मोदी अपने चुनावी सभाओं में इन चीजों का बारंबार किसानों को आश्वासन देते रहे हैं, लेकिन अब तो उसे करने की बारी है. फिलहाल भारतीय किसान तो निराश, हताश हैं. प्रधानमंत्री को यह सोचना होगा कि आखिर क्यों यवतमाल के 67 प्रतिशत किसान डिप्रेशन के शिकार हैं?