पटना : पितृ दिवस के शुभ अवसर पर संस्था लेख्य-मंजूषा ने पिता पर आधारित लघुकथा पर “अंतरराष्ट्रीय लघुकथा समीक्षा 2020" का आयोजन किया था। इस आयोजन में प्रतिभागियों द्वारा लिखित समीक्षा शामिल हुई जो जल्द ही लेख्य-मंजूषा संस्था की तरफ से प्रकाशित होने वाली है। इन तमाम लिखित समीक्षाओं के समीक्षक अल्मोड़ा उत्तराखंड से वरिष्ठ साहित्यकार सोनम खेमकरण थे। सोनम खेमकरण ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि समीक्षा के लिया अच्छी लघुकथा का चुनाव कर लेना आधी जंग जीत लेना जैसा होता है। इन 62 समीक्षाओं में द्वितीय स्थान पर संस्था की पूनम कतरियार रही। पुनम कतरियार ने रामेश्वरम हिमांशु कम्बोज की लघुकथा “ऊँचाई" पर समीक्षा लिखी थी।
“पिता पत्थर है, जरा हटकर रहे,
वह सुबह शाम भटकते रहे,
वह हमेशा-हमेशा खटकते रहे,
अम्मा से अलग भटकते रहे।
देखा एक दिन तो पाया,
वह अपने राम राम को जन्म भटकते रहे।।”
उक्त पंक्तियाँ दार्शनिक कवि “रास दादा रास" ने साहित्यक संस्था “लेख्य-मंजूषा" के ऑनलाइन त्रैमासिक कार्यक्रम में कहा। लेख्य-मंजूषा के इतिहास में यह पहला मौका था जब त्रैमासिक कार्यक्रम ऑनलाइन एप्प ज़ूम व गूगल मीट के जरिये सम्पन्न हुई।
पितृ दिवस पर आयोजित गद्य त्रैमासिक कार्यक्रम पूर्णत पिता को समर्पित रही। इस ऑनलाइन कार्यक्रम में कैलिफ़ोर्निया अमेरिका से नीलू गुप्ता ने पिता के बारे में कहा कि पिता नारियल की तरह ऊपर से कठोर और अंदर से नर्म होते हैं। उन्होंने अपनी रचना का पाठ करते हुए कहा कि “माँ-पिता एक समान, मैं किसे करूँ प्रथम प्रणाम? मैं दोनों को करूँ एक साथ प्रणाम”।
कार्यक्रम में उपस्थित पटना के वरिष्ठ कवि घनश्याम जी ने कहा कि ईश्वर पर लिखना सरल है, किंतु माँ-पिता पर कुछ भी लिखना अत्यंत कठिन है। माँ-पिता का दर्जा ईश्वर से भी ऊपर है।
कार्यक्रम में उपस्थित विदुषी साहित्यकार आदरणीय डॉ. अनीता राकेश ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि “कठोर आवरण के भीतर शुद्ध सात्विक निर्मल जल , श्वेत दल युक्त पिता के इस स्वरूप का दिग्दर्शन जब होता है तो चौंकाने वाला ही होता है | यह मौन रह कर गरल पान करने वाला वह नीलकंठी शिव है जो सदैव पूजित नहीं होता |धीरता की पाषाण प्रतिमा बन काल के प्रहार का सामना करता पिता का व्यक्तित्व समस्त व्रणों का हलाहल आत्मसात् करता जाता है”|
कार्यक्रम को दो सत्रों में बाँटा गया था। प्रथम सत्र का आयोजन ज़ूम एप्प और द्वितीय सत्र का आयोजन गूगल मीट एप्प पर किया गया। प्रथम सत्र की शुरुआत करते हुए संस्था की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने अमेरिका से लाइव होते हुए पितृ दिवस पर कहा कि “माँ होना जिस दिन सुनिश्चित हो जाता है उस दिन से पिता होना भी तय होता है.. । आज भी समाज में पुरुष की जिम्मेदारी होती है घर, पत्नी व बच्चों का हर तरह से ख्याल रखना। पति के रूप में थोड़ा कमजोर भी हो सकता है परन्तु पिता के रूप में सशक्त इंसान होता है। पिता के प्रति हर बच्चा ऋणी होता है। आभार प्रकट करने के लिए सम्मान देने के लिए एक दिन निर्धारित नहीं किया जा सकता है। हम प्रति पल उनके प्रति अपने दायित्व को निभाने का प्रयत्न करते हुए उनका सम्मान करते है इसका विश्वास दिलाने की चेष्टा करते हैं"।
कार्यक्रम के शुरुआत होने के बाद संस्था की पत्रिका “साहित्यक-स्पंदन" (अप्रैल-जून 2020) का लोकार्पण हुआ। इस बार की पत्रिका काव्य कोष के संचालक राहुल शिवाय जी के देखरेख में दिल्ली में प्रकाशित हुई हुई है। पत्रिका पर रौशनी डालते हुए राहुल शिवाय जी ने कहा कि “पत्रिका बहुत खूबसूरत बन पड़ी है। पितृ दिवस पर अत्यधिक रचनाओं के साथ-साथ वर्तमान में जो घटनाएं सब हुई है उन सब पर कुछ-न-कुछ रचना पत्रिका में छपी है"।
आज के कार्यक्रम का संचालन पटना के मशहूर शायर मो. नसीम अख्तर जी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन युवा उपन्यासकार अभिलाष दत्ता ने किया।