बुरे दौर से गुजर रही इंफोसिस को उबारने के लिए एक रुपये के वेतन पर पिता नारायणमूर्ति की वापसी के साथ इस कंपनी में रोहन मूर्ति की भी एंट्री हुई. लगभग एक साल तक बतौर एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट, पिता के सहायक रहे रोहन ने हाल ही में एक अंगरेजी अखबार को दिये एक इंटरव्यू में बताया है कि 68 वर्षीय उनके पिता अगर 58 के होते तो उन्हें इंफोसिस में आने की जरूरत नहीं पड़ती. हॉवर्ड यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में पीएचडी, 31 वर्षीय रोहन मूर्ति फिलहाल सोसायटी ऑफ फेलोज, हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में जूनियर फैलो हैं. साथ ही, उनकी इंफोसिस में तकरीबन दो फीसदी की हिस्सेदारी भी है. आइए जानें इंफोसिस में उनके अनुभव के बारे में .. सेंट्रल डेस्क इंफोसिस में अपने काम के बारे में रोहन बताते हैं कि उन्हें दो टास्क मिले थे. कंपनी में इंडिविजुअल प्रोडक्टिविटी और ऑटोमेशन पर काम करना. आम भाषा में हम इसे कंपनी के भीतर कर्मचारियों के कामकाज की गुणवत्ता और कम लोगों में ज्यादा काम निकालना कह सकते हैं. आज आइटी इंडस्ट्री जिस बदलाव के दौर से गुजर रही है, उसमें एक कंपनी के लिए इन बातों पर ध्यान देना बेहद जरूरी है. जैसा कि स्कॉटिश गणितज्ञ और भौतिकीविद लॉर्ड केल्विन ने कहा है कि जिन चीजों का आप पैमाना तय नहीं कर सकते, उनमें आप सुधार नहीं सकते. रोहन मूर्ति आगे कहते हैं, कई बार लोग इंडिविजुअल प्रोडक्टिविटी या व्यक्तिगत उत्पादकता का मतलब एक कर्मचारी से कंपनी को होने वाले लाभ को समझते हैं. लेकिन हम अगर एक कार का उदाहरण लें, तो जिस तरह हम केवल उसकी उच्चतम स्पीड का ही पता लगाना नहीं चाहते, हम यह भी जानना चाहते हैं कि उस कार का कौन सा पुर्जा उसकी इंधन खपत, स्पीड और घर्षण (फ्रिक्शन) के लिए जिम्मेवार है. तभी हम यह जान पायेंगे कि किस पुज्रे में सुधार की जरूरत और गुंजाइश है. रोहन बताते हैं कि उनके इस प्रोजेक्ट के तहत कंपनी में 10 हजार लोग काम कर रहे हैं. सार्थक नतीजे आने के बाद और कर्मचारियों पर इसे आजमाया जायेगा. बहरहाल, इंफोसिस में बतौर अपने पिता के सहायक नहीं बल्कि किसी अन्य पेशेवर के तौर पर ज्वाइन करने के सवाल पर रोहन कहते हैं कि इस कंपनी से जुड़ने की न तो मेरी योजना थी और न ही मेरे पिता की. वह नाती-पोतों के साथ खेल कर अपनी रिटायरमेंट को एंजॉय कर रहे थे और मैं अपनी फेलोशिप को. लेकिन कंपनी जब बुरे दौर से गुजर रही थी तो पिताजी (नारायणमूर्ति) ने मुझसे कहा कि वह कंपनी की कार्यशैली में कुछ जरूरी बदलाव करना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें मेरी जरूरत पड़ेगी. और चूंकि मैंने अपने पिता के नजरिये से कंपनी को करीब से जाना है, ऐसे में उन्हें विश्वास था कि यह काम किसी बाहरी व्यक्ति से बेहतर कोई ऐसा शख्स कर सकता है जिसे इस कंपनी के कामकाज की बेहतर समझ हो. एक तरह से कहें तो यह इंफोसिस के डीएनए को बदलने का काम था, तो मैंने इस बात की रजामंदी दे दी कि जब तक वे (नारायणमूर्ति) इंफोसिस में रहेंगे, मैं (रोहन) अपना सहयोग देता रहूंगा. लेकिन इसी बीच इस साल 14 जून को नये सीइओ विशाल सिक्का की नियुक्ति हुई और रोहन ने पिता के साथ कंपनी को अलविदा कह दिया. लेकिन ऐसा नहीं है कि रोहन इस बात से निराश हैं और इंफोसिस में रोहन का प्रोजेक्ट बीच में ही रोक दिया गया. रोहन बताते हैं कि जो काम मैंने शुरू किया था, उसके नतीजे चार-पांच साल में दिखने शुरू होते. लेकिन मैं इतना समय इस कंपनी को नहीं दे सकता था. मेरे लक्ष्य अलग हैं. रही बात मेरे प्रोजेक्ट की, तो मैं उसका पूरा ब्यौरा नये सीइओ विशाल सिक्का को दे चुका हं और कंपनी उस दिशा में काम कर भी रही है.