" पश्चिम की रागमयी संध्या
अब काली है हो चली, किंतु,
अब तक आये न अहेरी
वे क्या दूर ले गया चपल जंतु’’
ऐसे अद्भुत पंक्तियों के रचयिता जयशंकर प्रसाद की आज जयंती है. हिंदी साहित्य में वे छायावादी युग के चार प्रमुख आधार स्तंभों में से एक हैं. उन्होंने खड़ी बोली के काव्य में अद्भुत प्रयोग किये और उन्हें स्थापित किया. वे प्रसिद्ध कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार और निबंधकार के रूप में जाने जाते हैं.
आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है. वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे. नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता लगातार बढ़ती ही गयी है.
वे मात्र 48 वर्ष ही जीये लेकिन इस छोटे से जीवनकाल में उन्होंने इतिहास रच दिया. प्रसाद जी का जन्म 30 जनवरी 1889 में वाराणसी में हुआ था. इनके द्वारा रचित रचनाओं में कामायनी सबसे प्रसिद्ध है, जो महाकाव्य है. उनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं :-
काव्य : झरना, आँसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक
नाटक : स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जन्मेजय का नाग यज्ञ, राज्यश्री, अजातशत्रु, विशाख, एक घूंट, कामना, करुणालय, कल्याणी परिणय, अग्निमित्र, प्रायश्चित, सज्जन
कहानी संग्रह : छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आंधी, इंद्रजाल
उपन्यास : कंकाल, तितली, इरावती