धर्मशास्त्रों में नारी को पूज्य मानते हुए उन्हें ऊँचा स्थान दिया गया है| नारी को जननी भी कहा गया है क्योकि वह सिर्फ संतान पैदा नही करती बल्कि उसके चरित्र और संस्कार का भी निर्माण करती है| माँ, बहन, बेटी, पत्नी जैसे अनगिनत रूप में महिलाओं द्वारा निभायी गयी भूमिका के परिणाम स्वरूप ही एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण होता है|
हर क्षेत्र में महिलायें आज पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं और अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन करते हुए समाज को सकारात्मक दिशा प्रदान कर रही हैं| ऐसी ही महिलाओं में से एक हैं डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी| डॉ ममतामयी प्रियदर्शिनी एक उत्साही, प्रखर और मानवतावादी कार्यकर्ता और सफल समाजसेवी हैं जो वैश्विक स्तर पर बदलाव लाने के लिए बुनियादी स्तर पर सक्रिय हैं। इन्होंने वनस्पति विज्ञान में स्नातकोत्तर (MSc), मार्केटिंग में MBA तथा प्रबंधन में PhD किया है। PhD में इनके रिसर्च का विषय था “भारत और चीन की विभिन्न औद्योगिक इकाइयों पर सन् 1991 के वैश्वीकरण (GLOBLISATION) के प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन”।
डॉ ममतामयी प्रियदर्शिनी का जन्म बिहार में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की प्रसिद्ध नगरी गया में हुआ। इनके पिता स्व. गिरिजा नंदन सिंह, बिहार के एक जाने माने भूगोलविद्द थे और माता डॉ. सुधा सिंह एक अच्छी शिक्षिका और कुशल गृहिणी हैं। इनके पिता एक ईमानदार प्रोफेसर और डीन के रूप में अपने कार्यकाल में गरीब छात्रों की कई स्तर पर मदद की। डॉ. प्रियदर्शिनी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा दानवीर कर्ण की तपोभूमि मुंगेर और स्नातकोत्तर की शिक्षा पौराणिक विक्रमशिला यूनिवर्सिटी और सिल्क सिटी भागलपुर में हुई। कहते हैं "बढ़े पूत पिता के धर्मे, खेती उपजै अपने कर्मे", उसी तरह से बचपन में ही इनके माता-पिता ने इन्हें और इनके भाई - बहनों को पढाई के साथ साथ हिंदी साहित्य, पौराणिक ग्रंथो और अपनी प्राचीन भाषा, संस्कृत, का पाठ पढ़ा दिया था जो अब इनके और इनके भाई-बहनों के संस्कारों और व्यक्तित्व में परिलक्षित है।
डॉ प्रियदर्शिनी की शादी पटना के करीब अवस्थित नौबतपुर प्रखंड में चेसी ग्राम के एक सफल, , प्रगतिशील, दूरदर्शी और बेहद संवेदनशील कृषक, स्व. भागीरथ शर्मा, और सफल गृहिणी, स्व. रामपरी शर्मा के छोटे पुत्र, मृगेंद्र कुमार से हुई। श्री कुमार की शिक्षा सैनिक स्कूल तिलैया से हुई है। पढ़ाई के बाद श्री कुमार, 2001 से 2013 के बीच, विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ जुड़कर रंगमंच के माध्यम से नौबतपुर, पटना और दिल्ली में सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहे। इस दौरान इन्होंने नाट्य निर्देशक और कलाकार के रूप में सामाजिक विषमताओं के ऊपर कई नाटकों का निर्देशन और मंचन नौबतपुर, पटना तथा देश के विभिन्न राज्यों में किया। श्री कुमार ने नौबतपुर में यहीं के गरीब छात्र-छात्राओं के साथ 2003 से 2007 के बीच "नाट्य कार्यशालाएं" तथा "नाट्य उत्सव" आयोजित किए हैं। इन नाट्य कार्यशालाओं में प्रशिक्षित नौबतपुर प्रखंड के कई युवा आज रंगमंच तथा सिनेमा से जुड़कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं। श्री कुमार के माध्यम से डॉ ममतामयी प्रियदर्शिनी ने नौबतपुर और बिहार की मूलभूत समस्यायों को और बेहतर तरीके से जाना। इनके के दो प्यारे सुपुत्र हैं।फिलहाल डॉ प्रियदर्शिनी अपने पति के साथ मिलकर बिहार-झारखंड तथा अन्य राज्यों में अपने व्यावसायिक गतिविधियों को विस्तार देने में संलग्न हैं।
डॉ ममतामयी प्रियदर्शिनी एक स्व-निर्मित प्रगतिशील महिला हैं। बिहार में रोजगार के साधनों के अभाव के कारण इन्हें एमबीए करने के बाद रोजगार की तलाश में दिल्ली की ओर रुख करना पड़ा। वहां कुछ वर्षों तक इन्होंने विभिन्न पदों पर कई कंपनियों के साथ जुड़कर काम किया और 2007 में स्वतंत्र व्यवसायी के रूप में अपने नए पारी की शुरुआत की। शुरुआती संघर्ष के बाद इन्होंने एक सफल महिला उद्यमी के रूप में पूरे भारत में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अपनी पहचान बनायी। डॉ प्रियदर्शिनी को बिहार की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की समस्याएं तथा स्व-रोजगार के लिए बिहार छोड़ने की उनकी अपनी पीड़ा ही इनके बिहार से जुड़े रहने का कारण रहा। इसी पीड़ा और बिहार से जुड़कर काम करने की इनकी प्रबल उत्कंठा के कारण इन्होंने 2013 में पटना, बिहार में अपने कार्यालय का शुभारंभ किया और बिहार के कई स्वास्थ्य संस्थाओं से जुड़कर पिछले 7 वर्षों से यहां काम कर रही हैं।
डॉ प्रियदर्शिनी एक सफल उद्यमी होने के साथ-साथ एक बहुत ही संवेदनशील व्यक्तित्व की भी धनी हैं। इसका साक्ष्य है कि 2013 में इन्होंने हेल्थकेयर के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण मसलन "हवा और पानी" जैसे मानव जीवन के लिए बुनियादी ज़रूरत और उसमें बढ़ते प्रदूषण के ऊपर काम करने की ठानी। इन्होंने कुछ वैज्ञानिकों और अनुसंधान प्रयोगशालाओ के साथ मिलकर इनके संरक्षण और प्रदूषण निवारण के लिए नयी टेक्नोलॉजिस और उसपर आधारित उपकरणों को विकसित किया। पिछले दो वर्षों से इनकी कंपनी विभिन्न शहरों में स्वास्थ्य सेवा के अलावा अलग-अलग संस्थाओं से जुड़कर "Zero Wastage Water Treatment और Air Treatment" पर भी काम कर रहीं हैं।
डॉ प्रियदर्शिनी अपना खाली समय कविता लिखने; धार्मिक और साहित्यिक किताबें पढ़ने; भारतीय और वैश्विक सामाजिक-आर्थिक घटनाक्रमों पर विचार-विमर्श करने आदि में बिताना पसंद करतीं है। अपनी लेखनी के माध्यम से समय-समय पर इन्होने लोगो को समाज की कई विषमताओं से परिचित भी कराया है। सन् 2011 में इन्हें दिनकर फाउंडेशन द्वारा लेखन के लिए "दिनकर सम्मान" से भी नवाजा गया है। सन् 2020 में इनकी कविता “पानी की प्यास” को " Poetry Slam" की तरफ से प्रकाशित "राग-पलाश" किताब में भी प्रकाशित किया गया है।
डॉ ममतामयी प्रियदर्शिनी विभिन्न स्वयंसेवी सस्थाओं मसलन "फेडरेशन ऑफ स्किल डेवलपमेंट ऑफ इंडिया", "प्रसुभागिरी" तथा दो देशों के संबंधों को बेहतर बनाने के लिए जुटे स्वयं सेवी संस्था "इंडो नेपाल सांस्कृतिक संगठन" का हिस्सा बनकर समाज सेवा के कार्य में सक्रिय हैं। कोरोना काल में इन्होंने विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं के साथ जुड़कर 'फ्रंटलाइन कोरोना योद्धाओं' मसलन पुलिस, बैंककर्मी और सुरक्षा गार्डों के बीच सुरक्षा-किट जैसे मास्क, ग्लव्स तथा पी.पी.किट का वितरण किया है। इन्होने कई बार नेत्र चिकित्सकों, ऑप्टोमेट्रिस्ट्स और स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर नेत्र-जांच शिविर भी लगाये हैं।
#द प्लुरल्स पार्टी के विचारों से प्रभावित होकर डॉ प्रियदर्शिनी ने बिहार में अपने समाज-सेवा के कार्य को विस्तार देने हेतु 2020 में सक्रिय राजनीति में आने का निशचय किया। इसके लिए अपने चुनाव क्षेत्र के रूप में इन्होंने अपने ससुर के जन्मभूमि-कर्मभूमि, अपने पति के जन्मभूमि और आंशिक कर्मभूमि तथा अपने ससुराल, "बिक्रम विधानसभा",अपना कर्मभूमि का चुनाव किया है। फिलहाल बिक्रम विधानसभा के लिए इनकी पांच मुख्य योजनायें और उद्देश्य हैं:
1. शिक्षा तथा स्वास्थ्य के प्राइमरी और सेकंडरी सेवाओं और सुविधाओं का सशक्तिकरण और विकास
2. प्रशासनिक व्यवस्था को जवाबदेह, संवेदनशील, पारदर्शी और सशक्त बनाना
3. महिला सशक्तीकरण
3. युवाओं का कौशल विकास
4. कृषि आधारित लघु उद्योग तथा व्यावसायिक खेती का विकास
5. धार्मिक तथा साहित्यिक धरोहरों को पर्यटन स्थल के रूप में चिह्नित और विकसित करना.
इसके अलवा वो बिक्रम के ट्रॉमा सेंटर को सरकार से मान्यता प्रदान करना इनका मुख्य उदेश है.
प्रसुभागिरी संस्थान की संस्थापक और अध्यक्ष डॉ ममतामयी प्रियदर्शिनी ने औरतों की शिक्षा,सुरक्षा और स्वास्थ्य को सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है आज वे अपने पति के साथ मिलकर अनेकों लड़कियों की मदद कर रही हैं।
वो महिलाओं के हक़ और उनके सम्मान उनकी स्थित में सुधार लाने के लिए कई बड़े कार्य कर रही है.
अपने पति के साथ इस काम में डॉ ममतामयी प्रियदर्शिनी बहुत ही खुश हैं। ऐसे शख्सियत जो खुद के लिए नहीं समाज और पिछड़े वर्ग के लिए कुछ करने का ज़ज़्बा रखती हैं उन्हें ये दुनिया सलाम करती है और ऐसी ही इरादों पर आगे बढ़ने वाली बिहार की इस बेटी को आज दुनिया में शोहरत मिली तो हर बेटी का मान बढ़ा है और बढेगा।