नयी दिल्ली : लंबे अरसे से प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार के नाम के चल रहे कयासों के बीच सबको चौंकाते हुए उन्होंने स्वयं भाजपा व एनडीए के शिखर नेता व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राजनीतिक दोस्ती कर ली. देश, राजनीति व मीडिया का एक वर्ग उन्हें नरेंद्र मोदी के बरख्श लगातार खड़ा कर रहा था, लेकिन अब नया गठजोड़ बनने के बाद नीतीश कुमार ने कहा है कि 2019 में मोदीजी मुकाबला करने की क्षमता किसी में नहीं है. सालों मोदी के बिहार में प्रवेश के मुद्दे को वीटो करने वाले नीतीश कुमार का यह नया अवतार क्या नरेंद्र मोदी व अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में उनके लिए लाभकारी होगी? क्या वहां नीतीश अपने छवि व पहचान से पाटिदारों का वोट मोदी-शाह को एकमुश्त दिला सकेंगे? यह एक बड़ा सवाल है और हर कोई इसका जवाब जानना चाहता है और इसकी संभावना टटोलना चाहता है. पासवान से दोस्ती को याद कीजिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ऐसी जोड़ी हैं, जो न सिर्फ अपनी पार्टी के लोगों का बल्कि अपने सहयोगी दलों के नेताओं का भी अधिकतम राजनीतिक उपयोग करने में माहिर हैं. ध्यान दीजिए कैसे, बिहार की राजनीति में लगभग हाशिये पर खड़े रामविलास पासवान से गठजोड़ कर और दलित नेता रामदास अठावले व उदित राज को अपने साथ जोड़ कर देश भर के दलितों के मन में भाजपा ने खुद के प्रति एक सॉफ्ट कॉर्नर तैयार किया और बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति सीटों से या इस वर्ग के लोग जीत कर आये. भाजपा ने भले 2014 के लोकसभा चुनाव में पासवान को उनके प्रभाव के आधार पर सात ही सीटें दीं, लेकिन एनडीए में उनकी भव्य आगवानी के लिए बिहार से आने वाले कई प्रमुख नेताओं को उनके घर पर भेज दिया. पासवान उस समय राजनीति में बेहद खास और अहम शख्स लग रहे थे. बेहद छोटी पार्टी अपना दल को अमित शाह उत्तरप्रदेश में कितना राजनीतिक महत्व देते हैं, यह बात सब लोग जानते हैं. नीतीश का पटेल कनेक्शन अब नीतीश कुमार भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ हैं. नीतीश कुमार ओबीसी वर्ग की कुर्मी जाति से आते हैं और वह इस जाति के देश में सबसे बड़े राजनीतिक चेहरे हैं. हाल ही में जदयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने भी एक टीवी परिचर्चा में उत्तरप्रदेश में सपा-कांग्रेस के कमजोर गठजोड़ का कारण उनके द्वारा नीतीश कुमार की उपेक्षा बताया था. त्यागी ने तब कहा था कि नीतीश कुर्मी वर्ग से आने वाले सबसे बड़े नेता हैं, जिसकी यूपी में अच्छी आबादी है, लेकिन हमलोग दो-चार सीट ही यूपी में मांग रहे थे सपा-जदयू से, लेकिन उन्होंने दिया नहीं, जबकि भाजपा ने अपना दल की अनुप्रिया पटेल को सीटें दीं. गुजरात में पटेल (पाटीदार) यानी कुर्मी जाति बड़ा वोट बैंक है. वहां 78 प्रतिशत आबादी ओबीसी, एससी, एसटी की है, जिसमें सबसे मजबूत उपस्थिति 12 प्रतिशत आबादी के साथ पटेलों की है. पटेल गुजरात की राजनीति में वही स्थान रखते हैं, जो यूपी-बिहार में यादव और हरियाणा में जाट रखते हैं. याद करें, किस तरह पटेल आंदोलन के दौरान पटेलों के युवा नेता हार्दिक पटेल ने नीतीश कुमार की जाति का उल्लेख करते हुए अपना आदमी बताया था, जिस पर नीतीश ने भी बाद में साकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी. मोदी-शाह गुजरात में क्या कर सकते हैं लेकिन, अब चीजें बदल चुकी हैं. मोदी-शाह के धुर विरोधी हार्दिक पटेल जिस नीतीश कुमार को अपना आदमी बता रहे थे, वे अब मोदी-शाह की अगुवाई वाले एनडीए के साथ खड़े हैं. नीतीश की साफ व स्वच्छ छवि, विकास करने वाले शख्स के रूप में पहचान को माेदी-शाह न सिर्फ 2019 के लोकसभा चुनाव में भुनायेंगे, बल्कि इस साल के नवंबर महीने में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में भी उनकी राजनीतिक प्रतिभा का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उपयोग करेंगे ही. नीतीश अपने मन से फैसला करते हैं और उन पर सहयोगी दल भी बहुत ज्यादा दबाव नहीं बना सकता है. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि वे गुजरात में भाजपा के लिए वोट मांगने जायेंगे ही, लेकिन मोदी-शाह एनडीए के उनके साथ होने का प्रतिकात्मक ढंग से राजनीतिक उपयोग तो कर ही सकते हैं, जैसा पासवान का कर चुके हैं, ताकि पटेलों के मन में उनके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर बने, उनका वोट मिले. गुजरात की राजनीति में एक ओर शंकर सिंह वाघेला के कांग्रेस छोड़ने से जहां कांग्रेस बेजार हो गयी है, वहीं मोदी-शाह राज्य में नये वोट आधार तैयार कर अधिक से अधिक सीटें पाने की जुगत में लगे हुए हैं. मानना चाहिए नीतीश कुमार भी इसमें मददगार ही होंगे.