Tuesday, 24 December 2024, 9:37:06 am

शेयर बाजार में 855 अंक की भारी गिरावट, तेल की गिरती कीमतों ने बढ़ाई चिंता

रिपोर्ट: साभारः

नई दिल्ली। कच्चे तेल की कीमतों में जरूरत से ज्यादा गिरावट, यूरोजोन की समस्याओं से वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी की नई आहट से भारतीय बाजार भी थर्थराने लगे हैं। मंगलवार को बाजार की घबड़ाहट और बढ़ गई जिसका नतीजा यह हुआ कि शेयर बाजार एकबारगी 855 अंक नीचे आ गया। इससे पहले इतनी बड़ी गिरावट भारतीय शेयर बाजार में 3 सितंबर 2013 में देखने को मिली थी। निफ्टी भी 251 अंक नीचे चला आया। मंगलवार को स्मॉलकैप, मिडकैप शेयरों में जोरदार बिकवाली देखने को मिली। साथ ही कैपिटल गुड्स, रियल्टी और ऑटो शेयरों में भी बिकवाली कम नहीं थी। विश्लेषकों का मानना है कि मेटल्स, ऑइल ऐंड गैस, पावर और ऑटो सेक्टर्स में यह गिरावट आगे भी जारी रह सकती है। सबसे ज्यादा जिंदल स्टील, ओएनजीसी, सेसा स्टरलाइट, टाटा स्टील, एचडीएफसी, रिलायंस इंडस्ट्रीज, भेल, पीएनबी, आईसीआईसीआई बैंक, एनएमडीसी के शेयरों में गिरावट देखी गई। इन कंपनियों के शेयरों में 4.50 फीसदी से लेकर 7.25 फीसदी तक की गिरावट रही। पांच से में पहली बार 50 डॉलर के नीचे पहुंची तेल की कीमत पांच साल में यह पहला मौका है जब तेल की कीमत 50 डॉलर के नीचे आई है। तेल की कीमतों में गिरावट के कारण न सिर्फ एनर्जी स्टॉकों बल्कि समूचे स्टॉक मार्केट में भारी बिकवाली देखने को मिल रही है। शुरुआत में तेल के दाम में कमी को बेहतर मान रहे अर्थशास्त्री भी तेल में लगातार तेज गिरावट को अब खतरा बनाने लगे हैं। इसके चलते आर्थिक मंदी गहराने के संकेत भी मिल रहे हैं। कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट और चीन, यूरोप व जापान में मंदी की चिंता व ग्रीस को लेकर अनिश्चितता के कारण वे निवेशक अमेरिकी डॉलर में निवेश करना ज्यादा फायदे का सौदा समझते हैं जो रिस्क नहीं लेना चाहते हैं। तेल की कीमत में गिरावट का सिलसिला इस वर्ष बेतहाश जारी रह सकता है। तेल सप्लाई के बाजार में अमेरिका, रूस के खुलकर आ जाने से तेल की कीमत और नीचे आ सकती है। अप्रैल 2009 के बाद तेल के बाजार में मौजूदा समय में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की जा रही है। सऊदी अरब 14 सालों में पहली बार एशिया के उपभोक्ताओं को इतनी बड़ी छूट दे रहा है। यूरोजोन से निकला ग्रीस तो और बढ़ेगी मुशि्कल, रुपये पर भी पड़ सकता है असर आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि यदि ग्रीस यूरोजोन से निकल जाएगा तो इससे यूरोपीय देशों की आर्थिक परेशानी और बढ़ेगी जिसका असर भारत के बाजार पर पड़ना लाजमी है। इस संकेत से वैश्विक निवेशकों में हताशा है। क्योंकि इसी चिंता के कारण पहले से ही यूरोप के कई क्षेत्र धाराशायी हुए पड़े हैं। निवेशकों का रुझान अमेरिकी डॉलर के प्रति बढ़ने लगा है। वे किसी प्रकार का रिस्क नहीं लेना चाहते। इस प्रकार डॉलर की मजबूती से अन्य मार्केट पर असर पड़ता है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इसका असर रुपये पर भी पड़ेगा। अगर विश्व बाजार में डॉलर मजबूत होगा तो रुपये में कमजोरी तय मानी जा रही है। ब्याज दरों की अनिश्चितता और एफआईआई फंड भी कम जिम्मेदार नहीं वैश्विक कारणओं से अलग देश के जिन कारणों के चलते सेंसेक्स में गिरावट देखी जा रही है उसमें ब्याद दरों की अनिश्चितता और एफआईआई फंड को कारण बताया जा रहा है। मार्केट भले ही उम्मीद में हो लेकिन फरवरी के पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ब्याज दर में कटौती नहीं करने जा रहा। वित्त मंत्रालय और आरबीआई गवर्नर के बीच खींचतान और ब्याज दरों को लेकर एकमत न होने से भी संदेह बढ़ रहा है। केंद्रीय बैंक खुद अपनी रिपोर्ट में कह चुका है कि मौजूदा रुझान से यह संकेत मिलता है कि महंगाई दर अगले 12 महीनों में करीब 6 प्रतिशत रहेगी बशर्ते इंटरनेशनल क्रूड प्राइस वर्तमान स्तर के ही करीब रहे और अगले साल मॉनसून नॉर्मल रहे। दिसंबर में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने शेयर खरीदने में रुचि नहीं ली और इस रुझान को इस महीने में भी बरकरार रहने की उम्मीद है। दिसंबर में सेंसेक्स 2 प्रतिशत नीचे गिरा था, क्योंकि एफएफआई 10 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया। एफएफआई ने दिसंबर में स्टॉक मार्केट्स में 2,132 करोड़ रुपये निवेश किया है। पिछले साल फरवरी के बाद यह एफएफआई द्वारा किया गया सबसे कम निवेश था जब उनलोगों ने 1,404 करोड़ रुपये मार्केट में लगाए थे।


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