दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ी-लिखी और जर्मन भाषा में बीए मानसी चड्ढा ने अपने जीवन की एक कहानी शेयर की जिसके बाद लोग उनकी बहादुरी की तारीफ कर रहे हैं. उनकी कहानी से प्रभावित होकर स्वाति मिश्रा लिखती हैं- आप एक मजबूत इरादों वाली महिला हैं. मेरा ऐसा मानना है कि अगर किसी लड़की को वर्जिनिटी टेस्ट के लिए बोला जाये तो उसे सफेद कंबल उनके मुंह पर मारना चाहिए और वहां से निकल जाना चाहिए. उसे सीधा मीडिया के पास जाना चाहिए और अपनी शिकायत दर्ज करानी चाहिए.स्वाति मिश्रा का कहना है भारत में स्त्री और पुरुष दोनों को आत्मसम्मान की रक्षा के लिए कुछ शिक्षा दी जानी चाहिए. इसके अभाव में हम उन्हीं चीजों को ढो रहे हैं, जो पुराने समय से हमारे साथ हैं. तुमने इतना मजबूत कदम उठाया, तुम्हें ढेर सारा प्यारा. दिल्ली यूनिवर्सिटी की ऋतु शर्मा कहती हैं कि यह काफी शर्मनाक है. आज भी लोग कितने संकीर्ण विचारों के हैं. समय बहुत बदल गया है, लोगों ने अपने कपड़े और स्टाइल में परिवर्तन कर लिया है, लेकिन उनके विचार नहीं बदले. मैं ऐसी घटनाओं से दुखी हो जाती हूं और डिप्रेशन हो जाता है. दिल्ली की निशा राजपूत कहती हैं कि हमारी शिक्षा बेमानी है. लेकिन मुझे आप पर गर्व है कि आपने अपनी कहानी हमें पूरी संकल्पशक्ति और हिम्मत के साथ बतायी. ऐसी कहानी से प्रेरणा मिलती है. इससे अन्य लड़कियां प्रेरित होंगी और इस तरह की घिनौनी परंपरा का विरोध करेंगी. मानसी हम आपके साथ हैं, आपको न्याय जरूर मिलेगा. दिल्ली की चंचल रोहित पुरी कहती हैं, मानसी आप बहुत बहादुर हैं. आपने जो कदम उठाया है, वह काफी बोल्ड है एक लड़की के लिए . हमारे देश में हजारों लड़कियां इस तरह के अपमान से गुजरती हैं, उनके सास-ससुर और पति उसे अपमानित करते हैं, लेकिन वह इसे अपना भाग्य समझ कर स्वीकार कर लेती हैं. आपके अभिभावक आपके साथ हैं. आप मजबूती के साथ अपनी लड़ाई लड़े और उन्हें उम्रभर के लिए जेल भिजवाएं ताकि उन्हें समझ आये कि किसी को अपमानित करने का क्या परिणाम होता है. यह चंद रियेक्शन हैं, मानसी चड्डा की कहानी पर, जिसे पढ़कर आपका भी दिल भर आयेगा.
मानसी ने अपनी कहानी http://womeniaworld.com/ पर शेयर की है. मानसी चड्ढा की कहानी हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं- मानसी दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ी-लिखी लड़की हैं. इन्होंने जर्मन भाषा में बीए और एमए किया है. अभी वे जर्मन भाषा में फेमिनिज्म पर सिनाप्सिस लिख रही हैं. उन्हें यूनिवर्सिटी से जर्मन फिलॉस्पी को पढ़ने के लिए बर्लिन और हेडलबर्ग यूनिवर्सिटी के लिए स्कॉलरशिप भी मिली है, लेकिन उनकी शादी हुई तो उनकी सारी पढ़ाई-लिखाई को किनारे कर दिया जाता है और सिर्फ एक औरत के तौर पर देखा जाता है. मानसी बताता हैं कि शादी हुई तो सुहागरात को सफेद तौलिए पर उन्हें अपनी Virginity test देनी पड़ी. वे कहतीं हैं कि आप सबको मेरी कहानी बताने का मकसद ही यही है कि आप जान सकें कि एक उच्च शिक्षित लड़की के साथ भी शादी के बाद क्या-क्या हो सकता है? लड़कियां मां-बाप की खुशी और समाज के डर से चुप रह जाती हैं, लेकिन मैंने चुप रहना ठीक नहीं समझा. मेरी शादी 17 फरवरी 2016 में हुई. पहली रात को ही मेरी सास ने मुझे एक सफेद तौलिया दिया ताकि मैं साबित कर सकूं कि मैं वर्जिन हूं. एक आधुनिक ख्यालों की होने और उच्च शिक्षित होने के कारण मेरे लिए उनका यह व्यवहार हैरान करने वाला था. क्या सिर्फ औरत का वर्जिन होना जरुरी है मर्द का नहीं? जब हम हनीमून पर निकल रहे थे तो मेरी सास ने मुझे फिर एक सफेद तौलिया देते हुए यह आदेश दिया कि सेक्स के बाद वे इस तौलिए को उन्हें वापस कर दें. हनीमून से जब लौट कर आई तो मेरे हाथ में 2हजार रुपए रख दिए गए कहा कि यदि मुझे सैनटरी नैपकिन खरीदना हो या फोन रिचार्ज करना हो तो केवल वे ही मेरे अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करेगी. यह सब देखकर मैं शॉक्ड थी. मैंने अपने पति से सवाल किया-क्या यही शादी है? वे कुछ नहीं बोले. मानसी बताती हैं कि ससुराल में उन्हें मानसिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा था. सास-ससुर व्यवहार उचित नहीं था. सेक्सुअल एब्यूज भी होने लगा था. मेरे पति को कहा जाने लगा कि वे सेक्स के दौरान कंडोम न इस्तेमाल करे. मेरी सास मेरी पैंटी चेक करके देखती कि मेरा पीरियड हुआ है या नहीं? हमदोनों के सेक्स पर हमारी सास का कंट्रोल था. मेरी सास मुझसे गुरु राम रहीम के नाम का जाप करने को कहती थी, लेकिन मैंने मना कर दिया. इस बीच मैंने गुरुग्राम के एक स्कूल में जर्मन पढ़ाना शुरु कर दिया. जब मेरी सैलरी आयी तो मेरे पति ने मुझसे पूरी सैलरी मांगी और मुझपर हाथ भी उठाया. उन्हें मुझसे बस जल्दी से जल्दी बच्चा चाहिए था. लेकिन मैं उनके व्यवहार के कारण डिप्रेशन में आ गयी थी और अंतत: मैं अपने मायके आ गयी. 10 दिनों मेरे पति आये लेकिन हमारे बीच संबंध नहीं सुधर सका. मैं इतने डिप्रेशन में थी कि नौकरी छोड़ी पड़ी. मैंने वूमेन सेल में अपना केस रजिस्टर कराया. मुझे उम्मीद थी कि मुझे न्याय मिलेगा लेकिन यहां लोग मुझपर हंसते थे. वूमेन सेल में मेरे पति ने कहा कि यह तो अपने भाई के घर पर रहती हूं, मुझे क्या पता कि वो रात को इसे क्या देता है, जो मैं नहीं दे सका? मैं तलाक चाहती थी, लेकिन वकीलों ने इतने पैसे मांगे कि मैं उन्हें दे नहीं सकती थी. अंतत: मैंने केस की लड़ाई खुद शुरू की. आरटीआई का सहारा लिया और पुलिस अधिकारियों से मिलकर ससुराल वालों के खिलाफ केस द र्ज कराया. अभी जांच चल रही है. मैं यह पाया कि वूमेन सेल में महिलाओं को मोटिवेट नहीं किया जाता बल्कि सिर्फ सलाह दी जाताी है. वे लोग सिर्फ समझौता करना सिखाते हैं. डिप्रेशन के दौरान आत्महत्या का ख्याल भी आया , लेकिन डॉक्टर्स ने मेरी मदद की. आज मैं खुश हूं केस चल रहा है, लेकिन मैं अपनी जिंदगी जी रही हूं....