गुजरात विधानसभा चुनाव : सुशासन की राजनीति को नया बल मिला

रिपोर्ट: भूपेंद्र यादव , राज्यसभा सांसद, गुजरात विधानसभा चुनाव के भाजपा के प्रभारी

गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुशासन की उपलब्धि है. भारतीय जनता पार्टी ने 1950 से अपनी यात्रा आरंभ करके आज तमाम राज्यों सहित केंद्र में भी अपना स्थान बनाया है. 

पार्टी की व्यवस्थित सदस्यता, कुशल संगठनात्मक शक्ति और पार्टी के विषयों को नीचे तक पहुंचाने का कार्य पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जी ने किया है. गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने बाईस वर्षों के शासनकाल में समाज के विभिन्न पक्षों को छुआ है. गुजरात एक ऐसा राज्य है, जिसकी विकास दर दस प्रतिशत रही है. 

अब जिस राज्य की विकास दर दस प्रतिशत रही हो, वहां विकास विरोधी रुख अपनाना गुजरात में कांग्रेस की बड़ी राजनीतिक भूल थी. किसी भी क्षेत्र में राज्य के विकास उच्च सूचकांकों को छूने वाले गुजरात ने जहां एक तरफ कपास, मूंगफली, फल, सब्जी और दूध के उत्पादन में गत 15 वर्षों में अभूतपूर्व विकास किया है, वहीं सिंचाई, खनिज, ऊर्जा और सड़क के क्षेत्र में भी राज्य ने विकास के कीर्तिमान स्थापित किये हैं.  गुजरात में बैंकिंग क्रेडिट कई गुना बढ़े हैं. शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय होगा कि गुजरात में स्कूल छोड़ने की मात्रा 1.51 प्रतिशत ही रह गयी है. 

गुजरात में विश्वविद्यालय आठ गुना, इंजीनियरिंग कॉलेज दस गुना और पॉलिटेक्निक कॉलेज चार गुना बढ़े हैं. चिकित्सा क्षेत्र की बात करें तो मेडिकल सीटों की संख्या में चार गुना का इजाफा हुआ है. लेकिन, इन सब विकासपरक विषयों को छोड़कर राहुल गांधी के द्वारा लगातार इस प्रकार के भाषण दिये जाते रहे, जो गुजरात की वास्तविकता से कोसों दूर थे. 

जहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी विकास के मुद्दे को लेकर अपनी राजनीति को आगे बढ़ा रही थी और अपने मजबूत सांगठनिक ढांचे के साथ काम कर रही थी, वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी जातिवादी नेताओं के द्वारा पार्टी को आउटसोर्स करके लड़ रहे थे.  दरअसल इस चुनाव को कांग्रेस ने पूरी तरह से आउटसोर्स करके लड़ा. और, इस चुनाव को अपनी धारणाओं के हिसाब से लड़ने की कोशिश की, जिसके लिए कुछ हिंदुत्व, कुछ जातिवाद, कुछ मध्ययुगीन सोच और कुछ सरकार की अतार्किक आलोचना को आधार बनाया गया. 

परंतु, उनका ये प्रयोग लंबे समय तक चला नहीं और जैसे-जैसे चुनाव में जनता का मिजाज स्पष्ट होता गया तथा पहले चरण में जब कांग्रेस ये प्रतीत हुआ कि वो चुनाव हारने लगी है, तो कांग्रेस की ही तरफ से मणिशंकर अय्यर के अभद्र बयान से लेकर इस तरह की चीजें की गयीं, ताकि हार का ठीकरा राहुल गांधी पर न फूटे. 

वास्तव में, गुजरात चुनाव के पैमाने अलग थे. ये विकास और सुशासन के मुद्दों पर आधारित चुनाव था. भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव के आरंभ में ही लोक संपर्क अभियान के द्वारा अपने विषयों को सीधे-सीधे जनता तक पहुंचाया. 

दूसरी बात कि ये डेमोक्रेसी और डायनेस्टी के बीच चुनाव था. और, लोगों ने वंशवादी और जातिवादी राजनीति को ठुकराकर सही मायनों में लोकतांत्रिक संगठन भाजपा की विकासवादी राजनीति को चुना है. एक और बात कि समाज का कोई भी वर्ग हो, कांग्रेस ने उसके साथ ‘यूज एंड थ्रो’ की नीति ही अपनायी है. 

कांग्रेस ने राज्यसभा में ओबीसी विधेयक का विरोध किया, जिससे ओबीसी समुदाय उसकी सच्चाई से वाकिफ हो गया है. कांग्रेस ने कभी दलितों की तरक्की के लिए कोई कदम नहीं उठाया. कांग्रेस को लगा कि अब अल्पसंख्यकों को छोड़ बहुसंख्यकों की ओर मुड़ना जरूरी है, तो उसने मंदिर-मंदिर घूमने की राजनीति की, लेकिन लोगों को पता था कि ये सिर्फ कांग्रेस का चुनावी कर्म है, इसलिए इसके झांसे में लोग नहीं आये. साथ ही, एक तरफ भाजपा जहां चुनाव में ‘मॉडर्निटी’ के विषय को लेकर गयी, वहीं कांग्रेस ‘मिडायवल युग’ की सोच की ओर ले जाने का प्रयास करती रही. 

इस चुनाव में भाजपा की जीत सरकार के आर्थिक सुधारों के प्रति जन-स्वीकृति भी है. भाजपा सरकार ने जिस तरह से आर्थिक सुधारों के कदम उठाये हैं, उससे लोगों को लगता है कि आर्थिक मोर्चे पर बड़े निर्णय लेने में सक्षम सरकार ही जनता का भला कर सकती है. 

देश की जनता जानती है कि वो विकास के पथ पर अग्रसर है, इस मार्ग में अगर थोड़ी परेशानी भी आती है, तो देश के विकास के लिए वो उसे सहने को तैयार है. इसलिए नोटबंदी के समय चाहे यूपी में कांग्रेस ने भाजपा की हार की बात कही हो या इस चुनाव में दावे किये हों, हर बार उनके दावे खोखले सिद्ध हुए हैं. ये जनादेश देश के प्रधानमंत्री को एक नयी शक्ति देगा, गुजरात को नयी ऊर्जा देगा तथा इस चुनाव के जनादेश से देश में सुशासन की राजनीति को बल मिलेगा.


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