जैविक खेती कृषि की वह विधि है जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए फसल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है। 1990 के बाद जैविक खेती का बाजार बढा है। जैविक खेती एक ऐसी पद्धति है जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा खरपतवारनाशी के स्थान पर जीवांश खाद पोषक तत्व (गोबर की खाद कंपोस्ट, हरी खाद, जीवाणु कल्चर, जैविक खाद ,आदि) जैव नाशियों (बायोपेस्टिसाइड्स) बायो एजेंट जैसे क्राइसोपा आदि का प्रयोग किया जाता है। इसमें न केवल भूमि की उर्वरा शक्ति लंबे समय तक बनी रहती है, बल्कि जहर रहित पोस्टिक उत्पाद उत्पादित होता है।
मृदा, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को सशक्त बनाए रखने के लिए जैविक खेती नितांत आवश्यक है। इससे न केवल उच्च गुणवत्ता युक्त ,स्वास्थ्यवर्धक एवं पौष्टिक खाद्य पदार्थ की उपलब्धता बढ़ रही है, बल्कि उर्वरता में सुधार के साथ-साथ किसानों की आमदनी में भी इजाफा हो रहा है। कृषि वैज्ञानिक ने पाया कि जैविक खाद के रूप में प्रयोग कर उपज में 15% की बढ़ोतरी हुई है। इससे उपज लागत में भी कमी आती है, साथ-साथ मिट्टी और जलवायु को दूषित भी नहीं करता है। जैविक खाद के रूप में कारगर है काई/शैवाल का प्रयोग साबित हुआ है।
गोबर की खाद में उपस्थिति है 50% नाइट्रोजन, 20% फॉस्फोरस व पोटेशियम पौधों को शीघ्र प्राप्त हो जाता है। इसके अलावे गोबर की खाद में और भी कई पोषक तत्व जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक, लोहा, मैंगनीज, तांबा व जस्ता आदि सूक्ष्म तत्व 30प्रतिशत मात्रा में पाए जाते हैं। अभी एक छोटा सा जिला खगड़िया में जैविक खेती का प्रसार तेजी से हो रहा है। वर्तमान में 998 किसान कुल 20 समूह में 980 हेक्टेयर में जैविक खेती कर रहे हैं। रामपुर, गौछारी, उत्तरी जमालपुर, भदास, अमनी, गौडाशक्ति, मांडर आदि पंचायतों में जैविक खेती हो रही है ।रासायनिक खाद, पेस्टिसाइड्स के प्रयोग से उत्पादित खाद्यान्न, पशु ,पक्षी का चारा सब दूषित हो रहा है। जमीन की उर्वरा शक्ति घटती जा रही है। मिट्टी बंजर हो रही है। रसायनिक भोजन करने से आदमी कैंसर, रसौली, डायबिटीज ,किडनी की बीमारी,हर्टडिजीज जैसी बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं।
आज भारतवर्ष में सिक्किम एक मात्र राज्य है जहां संपूर्ण रुप से जैविक खेती होती है, और वहां के लोगों की औसत आयु देश के लोगों से 10 वर्ष अधिक हो गई है। देश के लोगों की औसत आयु 69 वर्ष तो सिक्किम के लोगों की औसत आयु 79 वर्ष है। जैविक खेती जीवन के स्वस्थ होने का आधार है। हमारे पुरखों ने इसीलिए जैविक खेती अपनाई थी जिसे पुरानी सोच कहकर हमने छोड़ दिया। आधुनिकता के फिराक में, हरित क्रांति, के फिराक में हमने खेतों में जहर डालकर जहर ही उगा रहे हैं।जमीन को बंजर बनाया।
‘’पुरखों को थी सही पहचान, जैविक खेती सही निदान"
डॉ. प्रेम कुमार, पूर्व कृषि मंत्री