नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैंकों के कामकाज में कोई हस्तक्षेप नहीं करने का जो वादा किया है क्या वह कृषि क्षेत्र को लेकर भी निभाया जाएगा? पिछले दो दिनों तक बैंकिंग सुधार पर पुणे में चली बैठक ज्ञान संगम में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने सरकार से दो टूक कह दिया है कि उन्हें कृषि कर्ज संबंधी कारोबार में पूरी आजादी मिलनी चाहिए। बैंक खासतौर पर तीन लाख रुपये तक के कर्ज पर ब्याज दर तय करने का अधिकार चाहते हैं। सरकार उनकी मांग मान लेती है तो बैंक निश्चित तौर पर कृषि लोन पर ब्याज दरों को बढ़ाएंगे। बैंकों की तरफ से बताया गया कि वह अपने कुल वितरित कर्ज का लगभग 15 से 25 फीसद कृषि कार्य के लिए देते हैं, लेकिन इस पर ब्याज दर वह सरकार के निर्देश के मुताबिक तय करते हैं। सरकारी नीति के मुताबिक कृषि लोन पर ब्याज की दर सात फीसद है, लेकिन सब्सिडी की वजह से तीन लाख रुपये तक के कर्ज चार फीसद ब्याज पर दिए जाते हैं। इससे कर्ज देने की उनकी लागत प्रभावित होती है। लिहाजा, बैंकों के पास ही कर्ज की दर तय करने की आजादी होनी चहिए। राजन ने कृषि कर्ज माफी योजना पर उठाए सवाल इसी तरह से बैंकों ने यह भी कहा है कि सरकार को हर वर्ष कृषि कर्ज का लक्ष्य तय करने का काम भी बैंकों के ऊपर छोड़ देना चाहिए। चालू वित्त वर्ष के दौरान आठ लाख करोड़ रुपये के कृषि लोन का लक्ष्य सरकारी बैंकों के लिए तय किया गया है। पिछले पांच वर्षो में सरकार कृषि लोन के लक्ष्य में दोगुनी से भी ज्यादा की वृद्धि कर चुकी है। लक्ष्य तय करने के बाद बैंकों पर इसे पूरा करने का दबाव बनाया जाता है। अभी तक बैंक हर वर्ष इस लक्ष्य को हासिल करते रहे हैं, लेकिन अब फंसे कर्जे (एनपीए) की समस्या बढ़ने की वजह से इसमें राहत की मांग हो रही है। सरकार के ताजा आंकड़े बताते हैं कि चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीने में बैंकों ने कुल 6,46,241 करोड़ रुपये का कृषि लोन दिया है। इसमें से लगभग छह फीसद (5.99 फीसद) यानी 38,703 करोड़ रुपये की राशि फंसे कर्ज में तब्दील हो चुकी है। बैंकों ने पहले केंद्र सरकार की तरफ से और हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार की तरफ से किसानों को कर्ज माफी का उदाहरण देते हुए कहा है कि इससे कर्ज वसूली की पूरी प्रक्रिया ही बाधित हो जाती है। बैंकों को एतराज क्यों 1. सरकार हर साल अपनी तरफ से बढ़ा देती है कृषि कर्ज का लक्ष्य 2. तीन लाख रुपये तक के कृषि कर्ज पर सरकार तय करती है ब्याज 3. केंद्र व राज्यों की तरफ से कर्ज माफी की घोषणा से होती है समस्या 4. कृषि क्षेत्र में फंसे कर्ज की समस्या से भी हो रही है परेशानी 5. खेती को दिए गए कर्ज की लागत वसूलने में भी दिक्कत