ब्रिसबेन टेस्ट मैच में पहली पारी में 408 रनों का सशक्त स्कोर बनाने के बावजूद भारत को 4 विकेटों से हार का सामना करना पड़ा। बल्लेबाजों के गैर जिम्मेदाराना प्रदर्शन, लचर व दिशाहीन गेंदबाजी और विपक्षी टीम के पुछल्ले बल्लेबाजों के जुझारू प्रदर्शन की वजह से मेहमान टीम को इस मैच में हार मिली। भारत इस हार के साथ ही चार टेस्ट मैचों की सीरीज में 0-2 से पिछड़ गया। आईए नजर डालते है इस टेस्ट मैच में भारत की हार के कारणों पर – 1. बल्लेबाजों का गैर जिम्मेदाराना प्रदर्शन : भारतीय बल्लेबाजों की कमजोरी दूसरी पारी में ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाजों के सामने उजागर हुई। विराट कोहली जहां गेंद को शरीर से दूर खेलने के चक्कर में आउट हुए तो अजिंक्य रहाणे और चेतेश्वर पुजारा उछलती गेंदों के शिकार बने। वन-डे प्रारूप के शहंशाह रोहित शर्मा का फुटवर्क तो पूरी तरह नदारद था, जबकि जिम्मेदारी भरे क्षणों में भी शिखर धवन ज्यादा प्रयोगधर्मिता दिखाने से बाज नहीं आए। कप्तान महेंद्र सिंह धोनी तो बगीचे में टहलते हुए (इतना ज्यादा शफल) दिखे। 2. विकेटों की पतझड़ : भारत अच्छी शुरुआत का लाभ नहीं उठा पाता है, क्योंकि उसके पुछल्ले बल्लेबाज विशेष योगदान नहीं दे पाते हैं। इस बार तो मध्यक्रम व निचला मध्यक्रम भी इसमें शामिल नजर आ रहा है। ब्रिस्बेन टेस्ट में भारत दूसरी पारी में एक समय 1 विकेट पर 76 रन बनाकर अच्छी स्थिति में था, लेकिन इसके बाद उसके 9 विकेट 148 रनों के अंदर गिर गए। ट्वेंटी-20 क्रिकेट की अधिकता के कारण भारतीय बल्लेबाज उन गेंदों को भी खेल रहे थे, जिन्हें छोड़ दिया जाना चाहिए। बेवजह शॉट्स खेलने की यह आदत उन्हें ले डूबी, जबकि टेस्ट मैच में सुबह के आधे से एक घंटे के खेल में संभलकर खेलने की आवश्यकता होती है और इसी दौरान भारतीय बल्लेबाजों के विकेटों की पतझड़ शुरू हो गई। 3. ऑस्ट्रेलियाई पुछल्ले बल्लेबाजों का योगदान : ब्रिस्बेन टेस्ट मैच में स्टीवन स्मिथ की शतकीय पारी का महत्व तो रहेगा, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई पुछल्ले बल्लेबाजों का योगदान भी कम महत्वपूर्ण नहीं रहा। घरू टीम ने अंतिम चार विकेटों के लिए 258 रन जोड़ते हुए पहली पारी में महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की। उसके आठवें और नौवें क्रम के बल्लेबाजों (जॉनसन और स्टार्क) ने तो भारतीय गेंदबाजों की धज्जियां बिखेरते हुए रन प्रति गेंद की औसत से अर्द्धशतक जमाए जो मैच के निर्णय को प्रभावित कर गए। 4. भारत की लचर गेंदबाजी : तेज गेंदबाजों के लिए मददगार पिच पर भी भारतीय गेंदबाज परिस्थितियों का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। विपक्षी टीम के स्थापित गेंदबाजों को सस्ते में समेटने के बाद वे पुछल्ले बल्लेबाजों को निपटा पाने में नाकाम नजर आए। जब स्टीवन स्मिथ के साथ पहले जॉनसन और फिर पुछल्ले बल्लेबाज खेल रहे थे तब ऐसा लग रहा था मानो भारत के पास कोई रणनीति ही नहीं है। भारतीय तेज गेंदबाज चाहे जब राउंड द विकेट गेंदबाजी करने लगते हैं। हरी पिच देखकर अत्याधिक और दिशाहीन बाउंसर डालने में जैसे उन्हें मजा आ रहा है। जहां घरू स्पिनर नाथन लियोन दो टेस्ट में 17 विकेट झटक चुके हैं, वहीं भारतीय स्पिनर्स संघर्ष करते दिख रहे हैं। 5. डीआरएस नहीं होने का खामियाजा : पूरी दुनिया में सिर्फ बीसीसीआई को ही डीआरएस (अंपायर समीक्षा प्रणाली) सिस्टम से दिक्कत है और उसके अडियल रवैये का खामियाजा हमेशा की तरह टीम इंडिया को इस सीरीज में भी भुगतना पड़ रहा है। भारत की दूसरी पारी में रविचंद्रन अश्विन को अंपायर के गलत निर्णय का शिकार होना पड़ा, यदि डीआरएस प्रणाली होती तो वे बच सकते थे। पहले टेस्ट की दूसरी पारी में भी भारत को दो गलत निर्णय भारी पड़े थे। बीसीसीआई को इसके बारे में गंभीरता से सोचना होगा, क्योंकि द्विपक्षीय सीरीज में डीआरएस प्रणाली को लागू करने के लिए दोनों देशों का राजी होना आवश्यकत होता है। 6. धवन की यह कैसी चोट : बताया जाता है कि शिखर धवन को शनिवार को सुबह नेट्स के दौरान कलाई में चोट लग गई थी, जिसके कारण वे पुजारा के साथ बल्लेबाजी करने नहीं उतरे। लेकिन एक घंटे बाद तो उन्हें क्रीज पर आना ही पड़ा। बल्लेबाजी के लिए उतरने के बाद उन्हें खेलते हुए देखकर एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि उनकी कलाई में चोट है। यदि वे थोड़ी ताकत जुटाकर सुबह पुजारा के साथ बल्लेबाजी के लिए उतरते, तो हो सकता है भारत की स्थिति इतनी खराब नहीं होती।