निषाद विकास संघ के प्रधान कार्यालय पटना में फूलन देवी की जयंती मनाई गई

रिपोर्ट: Ramesh Pandey

पटना  : निषाद विकास संघ के प्रधान कार्यालय पटना में फूलन देवी की जयंती मनाई गई| इस अवसर पर निषाद विकास संघ के समर्थकों ने फूलन देवी के तैलचित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजली दी|

जयंती समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय प्रधान महासचिव छोटे सहनी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ब्रह्मदेव चौधरी , प्रदेश सचिव राजकुमार सहनी, कैमूर जिला प्रभारी ने फूलन देवी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पकाश डाला|

फूलन देवी की संक्षिप्त जीवनी

फूलन देवी (10 अगस्त 1963 - 25 जुलाई 2001)  डकैत से सांसद बनी भारत की एक राजनेता थीं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव गोरहा का पूर्वा में एक मल्लाह के घर हुआ था। फूलन की शादी ग्यारह साल की उम्र में हुई थी लेकिन उनके पति और उनके ससुरालवालों ने उन्हें छोड़ दिया| इसके बाद फूलन देवी का झुकाव डकैतों की तरफ हुआ। धीरे धीरे फूलनदेवी ने अपने खुद का एक गिरोह खड़ा कर लिया और उसका नेतृत्व करने लगी। गिरोह बनाने से पहले गांव के कुछ लोगों ने कथित तौर पर फूलन के साथ दुराचार किया। फूलन इसी का बदला लेने के मकसद से बीहड का रास्‍ता अपनाया। डकैत गिरोह में उसकी सर्वाधिक नजदीकी विक्रम मल्‍लाह से रही। कहा जाता है कि पुलिस मुठभेड में विक्रम की मौत के बाद फूलन टूट गई।

आमतौर पर फूलनदेवी को डकैत के रूप में (रॉबिनहुड) की तरह गरीबों का पैरोकार समझा जाता था। पहली बार (1981) में वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में तब आई जब उन्होने ऊँची जातियों के बाइस लोगों का एक साथ नरसंहार किया। लेकिन फूलन ने इस नरसंहार से इन्कार किया था। बाद में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार तथा प्रतिद्वंदी गिरोहों ने फूलन को पकड़ने की बहुत सी नाकाम कोशिशे की। इंदिरा गाँधी की सरकार ने (1983) में उनसे समझौता किया की उसे (मृत्यु दंड) नहीं दिया जायेगा और उनके परिवार के सदस्यों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जायेगा और फूलनदेवी ने इस शर्त के तहत अपने दस हजार समर्थकों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।

बिना मुकदमा चलाये ग्यारह साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। ऐसा उस समय हुआ जब दलित लोग फूलन के समर्थन में गोलबंद हो रहे थे और फूलन इस समुदाय के प्रतीक के रूप में देखी जाती थी। फूलन ने अपनी रिहाई के बाद  बौद्ध धर्म में अपना धर्मातंरण किया। 1996 में फूलन ने उत्तर प्रदेश के भदोही सीट से (लोकसभा) चुनाव जीता और वह संसद तक पहुँची। 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में उनके आवास पर फूलन की हत्या कर दी गयी। 1994 में शेखर कपूर ने फूलन पर आधारित एक फिल्म बैंडिट क्विन बनाई जो काफी चर्चित और विवादित रही। फूलन ने इस फिल्म पर बहुत सारी आपत्तियां दर्ज कराईं और भारत सरकार द्वारा भारत में इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी गयी। फूलन के साथ जमिदारों ने बलात्कार किया था।

दिल्‍ली के तिहाड़ जेल में कैद अपराधी शेर सिंह राणा ने फूलन की हत्‍या की। हत्‍या से पहले वह देश की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल से फर्जी तरीके से जमानत पर रिहा होने में कामयाब हो गया। हत्‍या के बाद शेर सिंह फरार हो गया। कुछ समय बाद शेर सिंह ने एक वीडियो क्लिप जारी करके अंतिम हिन्‍दू सम्राट पृथ्‍वीराज चौहान की समाधी ढूढंकर उनकी अस्थियां भारत लेकर आने की कोशिश का दावा किया। हालांकि बाद में दिल्‍ली पुलिस ने उसे पकड़ लिया। फूलन की हत्‍या का राजनीतिक षडयंत्र भी माना जाता है|

 

 


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