अहमदाबाद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार किसी मस्जिद में जाने वाले हैं. जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के भारत दौरे के क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके साथ गुजरात के सिदी सैय्यद मस्जिद जायेंगे. अब अगर प्रधानमंत्री ने आबे के कार्यक्रम में इस मस्जिद में जाने का फैसला किया है तो जरुर इसमें कुछ खासियत होगी. हम आपको बताने का प्रयास करेंगे कि सिदी सैय्यद मस्जिद की क्याय खासियत है. आपको ये भी बता दें कि इससे पूर्व कभी भी प्रधानमंत्री ने भारत में किसी भी मस्जिद का दौरा नहीं किया है. आइये जानते है सिदी सैय्यद मस्जिद से जुड़ी कुछ खास बातें..... सिदी सैय्यद मस्जिद नेहरू पुल के पूर्वी छोर के बाहर स्िथत है. इसका निर्माण 1573 में मुगल काल के दौरान अहमदाबाद में करवाया गया था. मस्जिद की पश्चिमी दीवार की खिड़कियों में नक्काशीदार जालियां पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं. इन जालियों को देखने से ये साधारण सी प्रतीत होती हैं. लेकिन इनकी खासियत यह है कि ये जाली पूरी तरह से पत्थसर को तरासकर बनायी गयी है.
खिड़की की जाली में एक पेड़ और उससे पूरी तरह से जुड़ी उनकी शाखाओं को दिखाया गया है. अपनी मशहूर जाले की वजह से ही इस मस्जिद को 'सिदी सैय्यद की जाली' के नाम से भी जाना जाता है. इस मस्जिद का नाम इसे बनाने वाले पर रखा गया है. सिदी सैय्यद यमन से आये थे और उन्होंने सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद III और सुल्तान मुजफ्फर शाह III के दरबार में काम किया. इस मस्जिद को बनाने वाले सिदी सैय्यद को बादशाह अकबर ने अमीरुल हज बनाकर यहां भेजा था. सिदी सैय्यद का इंतकाल मस्जिद के निर्माण के दौरान ही हो गया था. कहा जाता है कि इस दौरान उनके शव को इसी मस्जिद के अंदर दफना दिया गया था. लेकिन मस्जिद के अंदर कोई भी मजार या मकबरा नहीं है.
आपको एक बार फिर बता दें कि दीवार की खिड़कियों पर उकेरी गयी जालियां पूरी दुनिया में मशहूर है. एक-दूसरे से लिपटी शाखाओं वाले पेड़ को दिखाती ये नक्काशी पत्थर से तैयार की गयी हैं जो चांदी की जालियों जैसा दिखती हैं. देखा जाए तो यह मस्जिद जामा मस्जिद से काफी छोटी है और इसके बीचों बीच खुली जगह का अभाव भी है, लेकिन नक्काशी के मामले में ये दुनिया की शीर्ष मस्जिदों में शुमार है. इतिहासकारों का मानना है कि जो लोग अफ्रीका से भारत आये थे उन्हें सिदी कहा जाता है. ये लोग शुरुआत में गुलाम बनकर भारत आये थे लेकिन बाद में ताकतवर होते चले गये. इतिहासकार बताते हैं कि जहांगीर जैसे मुगल बादशाह ने अहमदाबाद को गर्दाबाद (धूल-गुबार का शहर) कहा था. लेकिन ये मस्जिद इस शहर की पहचान के तौर पर जाना जाता है. मस्जिद के जाली के बारे में बताया जाता है कि यह सिंगल पीस पत्थजर नहीं है, बल्कि छोटे - छोटे पत्थरों को जोड़कर तैयार किया गया है. 9 गुणा 10 आकार की ये जाली दूर से सिंगल पीस लगती है. ये जाली अहमदाबाद की पहचान है. यहां तक कि आईआईएम अहमदाबाद के प्रतीक में भी ये जाली नजर आती है.