वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनाव के मद्देनजर दिल्ली में लोकसभा सीटों के लिए आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के बीच गठबंधन की चर्चा लंबे वक्त से है, लेकिन पिछले कुछ दिन से गहमागहमी बढ़ गई है। AAP-कांग्रेस के बड़े नेता अब तक इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए थे, इस बीच बुधवार को दिल्ली की पूर्व मुुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अहम बयान देकर सनसनी फैला दी है। AAP-कांग्रेस के बीच गठबंधन पर समाचार एजेंसी एएनआइ से बातचीत में शीला दीक्षित ने कहा- 'हाई कमान जो भी फैसला लेगा, वह हमें स्वीकार होगा।' पूर्व मुख्यमंत्री का यह बयान इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि AAP-कांग्रेस के बीच गठबंधन सिर्फ कयास नहीं है, बल्कि दोनों पार्टियों में कहीं न कहीं इसको लेकर खिचड़ी पक रही है। अब शीला के बयान से भी यह पुष्ट हो रहा है।
कांग्रेस की हर रैली में हजारों की भीड़ जुट रही है। ऐसे में AAP से गठबंधन कर कांग्रेस को ही नुकसान होगा। पार्टी सूत्रों की मानें तो गठबंधन की चर्चा के पीछे कांग्रेस के ही कुछ ऐसे नेता हैं जो निजी स्वार्थ पूर्ति के लिए AAP का सहारा लेना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि दोनों पार्टियों को मतदाता एक ही है। अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे तो भाजपा को फायदा मिलेगा, जबकि साथ लड़ने पर वोट बैंक नहीं बंटेगा, लेकिन पार्टी को इससे कितनी हानि होगी, इस बात का ऐसे नेताओं को इल्म ही नहीं है।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने कहा कि यह सही है कि 2014 और 2015 में कांग्रेस के खिलाफ लहर थी, इसलिए AAP को बहुमत मिल गया, लेकिन अब ऐसा नहीं है। कांग्रेस का ग्राफ धीरे-धीरे बढ़ रहा है। दिल्ली के लोग AAP सरकार के कार्यकाल की तुलना शीला दीक्षित के विकास कार्यों से कर रहे हैं। इसीलिए कांग्रेस का मत फीसद नौ से बढ़कर 22 हो गया है, जबकि आप का 56 से घटकर 26 पर आ गया है। राजौरी गार्डन उपचुनाव में कांग्रेस का मत फीसद 9 से 22 तक पहुंच गया और नगर निगम चुनाव में भी पार्टी को 31 सीटों पर विजय प्राप्त हुई।
पार्टी के वरिष्ठ नेता मुकेश शर्मा ने कहा कि आप का ग्राफ लगातार गिर रहा है। हर चुनाव में उसे हार मिल रही है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो जो वोट बैंक कांग्रेस से खिसक कर आप की ओर चला गया था, अब धीरे-धीरे कांग्रेस की ओर लौट रहा है। इसीलिए शीला दीक्षित सहित प्रदेश कांग्रेस के अन्य बड़े नेता भी एक साथ खड़े नजर आ रहे हैं। सच यह भी है कि प्रदेश कांग्रेस का कोई भी कद्दावर नेता अपनी परंपरागत लोकसभा सीट छोड़ने को आसानी से तैयार नहीं होगा।