कठपुतली से सिखा रहे महिलाओं का सम्मान

रिपोर्ट: ramesh pandey

अफगानिस्तान : सबसे कम महिला साक्षरता अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति कई वर्षों से खराब है. यहां कठपुतली के कार्यक्रम से लड़कों को महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जा रहा है. पिछले साल अफगानिस्तान में टीवी कार्यक्रम में सेसम स्ट्रिट ने एक महिला करेक्टर को लोगों से रूबरू कराया था ताकि, रूढ़िवादी मुसलिम राष्ट्र में लड़कियों के विकास को प्रेरित किया जा सके. अब इस समूह के साथ एक कठपुतली कलाकारों का समूह शामिल हुआ है, जो लड़कों को महिलाओं के सम्मान का महत्व समझायेंगे. जरीक व जारा नाम के इन कठपुतली कैरेक्टर के माध्यम से लोग महिलाओं को सम्मान देने की कहानियां सुन रहे हैं. जरीक व जारा को अफगानी कपड़े पहनाया गया है. ताकि, वे अफगानी लगें. यह कठपुतली कार्यक्रम विशेष रूप से बांग्लादेश, मिस्र और भारत को ध्यान में रखकर बनाया गया है. अफगानिस्तान में प्रचलित टोलो टीवी के प्रमुख ससूद सेंजर बताते हैं कि जरीक व जारा के कार्यक्रम को यहां काफी लोकप्रियता मिल रही है. यह न सिर्फ बच्चों के लिए है, बल्कि यह माता पिता को भी एक सकारात्मक सोच देती है. इसके माध्यम से अफगानिस्तान में लैंगिक समानता व बालिका शिक्षा के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है. अफगानिस्तान ऐसा देश है जहां ज्यादातर लड़कियां स्कूल नहीं जाती और विश्व में सबसे कम महिला साक्षर इसी देश में हैं. मुझे लगता है कि अफगानिस्तान जैसे पुरुष प्रधानतावाले देश में महिलाओं का सम्मान सिखाने की चीज है. ताकि वे महिलाओं की इज्जत करना सीखें. इस शो के में हमने एक पुरुष कैरेक्टर लाया है जो महिलाओं का सम्मान करता है. यह कैरेक्टर अफगान पुरुषों को बताते हैं कि आपको अपनी बहन का सम्मान करना होगा, जैसा कि आप अपने भाई को करते हैं. इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए. जरीक ने हाल के कार्यक्रम के हाल के एक एपिसोड में घोषणा की, मैं जारा से बहुत प्यार करता हूं और जितना जारा से प्यार करता हूं, उतना अपने दोस्तों से भी प्यार करता हूं. टीवी की पहुंच यहां देशव्यापी है. जबकि अफगानिस्तान में टीवी काफी हद तक शहरी इलाकों में प्रतिबंधित है. कार्यक्रम यहां के आधिकारिक भाषाओं, पश्तून और दारी दोनों में रेडियो पर कार्यक्रम प्रसारित करता है. कार्यक्रम में उठाये जाते हैं संघर्ष के मुद्दे जारा और जरीक दोनों को कठपुतली कैरेक्टर को न्यूयॉर्क में बनाया गया था. इसके साथ ही उनके परिधान में अफगानिस्तान के सभी प्रमुख जातीय समूहों के कपड़े और डिजाइन शामिल किये गये हैं. ये ऐसे मुद्दे उठाते हैं जिसे लेकर यहां के समाज में कई दशकों से संघर्ष हो रहा है. वर्ष 1979 में सोवियत आक्रमण और बाद के मुजाहदीन युद्ध के बाद से अब तक अफगानिस्तान लगभग 40 वर्षों तक युद्धरत है. यहां विनाशकारी गृह युद्ध हुआ जिसमें सरदारों ने जातीयता के आधार पर लोगों को बांट दिया. अकेले काबुल में हजारों लोगों की हत्या की गयी. साल 1996 में अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया. उसके शासन में देश पांच साल तक क्रूर आतंकवाद झेलता रहा. जिसमें उन्होंने महिलाओं को स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया. महिलाएं घरों की चारदीवारी में ही सिमट कर रह गयीं. साल 2001 में अमेरिकी आक्रमण के बाद कट्टरपंथी तालिबानी शासन का अंत हुआ. देश के पुनर्निर्माण के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता से अरबों डॉलर खर्च किये गये.


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