क्रिया योग जो महावतार बाबाजी महाराज लाहिड़ी महाशय श्री युक्तेश्वर जी परमहंस योगानंद जी और परमहंस हरिहरानंद जी द्वारा शुरू किया गया था। अब उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी परमहंस प्रज्ञानंद जी विश्व के अनेक देशों के साथ ही भारत के विभिन्न भागों में क्रिया योग के प्रसारार्थ सघन भ्रमण कर रहे हैं। भारत के प्राचीन कालीन ऋषियों ने अष्टांग योग का अभ्यास किया एवं 8 स्तरों में अधिकार प्राप्त कर स्वयं को माया मोह एवं भ्रांति से मुक्त कर सत्य को अनुभूत किया। योग के सर्वोपरि व्याख्या कार महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित राजयोग को अष्टांग योग अर्थात 8 अंगों वाला योग

" पश्चिम की रागमयी संध्या

अब काली है हो चली, किंतु,

अब तक आये न अहेरी

वे क्या दूर ले गया चपल जंतु’’


ऐसे अद्‌भुत पंक्तियों के रचयिता जयशंकर प्रसाद की आज जयंती है. हिंदी साहित्य में वे छायावादी युग के चार प्रमुख आधार स्तंभों में से एक हैं. उन्होंने खड़ी बोली के काव्य में अद्‌भुत प्रयोग किये और उन्हें स्थापित किया. वे प्रसिद्ध कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार और निबंधकार के रूप में जाने जाते हैं. 

आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है. वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे. नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी

बात 1983 की है. 27 साल का एक लड़का अपने पिता से 10 हजार रु पये लेकर अपने सपने पूरे करने के लिए कोलकाता से मुंबई जाता है. उन पैसों से वह फार्मास्यूटिकल कंपनी शुरू करता है और आज वह भारत का सबसे अमीर आदमी बन चुका है. हम बात कर रहे हैं सन फार्मा के मालिक दिलीप संघवी की. आइए जानें कैसे पाया उन्होंने यह मुकाम. सेंट्रल डेस्क ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स की हालिया सूची के अनुसार सन फार्मास्यूटिकल्स के संस्थापक सह प्रबंध निदेशक दिलीप संघवी, रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुकेश अंबानी को पीछे छोड़ते हुए देश के सबसे अमीर आदमी बन गये हैं. संघवी की कुल संपत्ति एक लाख 35 हजार करोड़

नयी दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न पुरस्कार देने उनके कृष्ण मेनन मार्ग स्थित उनके आवास पर जायेंगे. 24 दिसंबर को अटल और मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न देने की घोषणा की गयी थी. मालवीय के परिजनों को 30 मार्च को राष्ट्रपति भवन में यह पुरस्कार प्रदान किया जायेगा. गौरतलब हैं कि केन्द्र सरकार ने दिसंबर 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और स्वतंत्रता सेनानी मदन मोहन मालवीया को प्रतिष्ठित भारत रत्न अवार्ड देने की घोषणा की थी. अभी तक 43 लोगों को भारत रत्न अवार्ड से सम्म्मानित किया जा चुका है. जिसमें वैज्ञानिक सीवी रमन,

अपने भीतर भगवान को देखना ध्यान है और आपके बाजू के व्यक्ति में भगवान को देखना सेवा है। अक्सर लोगों में भय होता है कि दूसरे लोग उनका शोषण करेंगे यदि वह सेवा करेंगे। जबकि सच यह है कि सेवा से योग्यता आती है और ध्यान के गहन में जाने में सहायता मिलती है और ध्यान से आपकी मुस्कुराहट वापस आ जाती है। सेवा और आध्यात्मिक अभ्यास साथ में चलते हैं। जितना आप ध्यान के गहन में जाएंगे उतनी ही दूसरों के साथ बांटने की इच्छा में वृद्धि होगी। जितनी आप दूसरों की सेवा करेंगे उतने ही गुण आप प्राप्त करेंगें। कई लोग सेवा इसलिये करते हैं क्योंकि उससे उन्हें लाभ

बात तब की है जब स्वामी विवेकानंद इतने विख्यात नहीं हुए थे। उन्हें अच्छी पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था। एक बार वे देश में ही कहीं प्रवास पर थे। उनके गुरुभाई उन्हें एक बड़े पुस्तकालय से अच्छी-अच्छी पुस्तकेें लाकर देते थे। स्वामी जी की पढ़ने की गति बहुत तेज थी। मोटी-मोटी कई किताबें एक ही दिन में पढ़कर अगले दिन वापस कर देते। उस पुस्तकालय का अधीक्षक बड़ा हैरान हो गया। उसने स्वामी जी के गुरु भाई से कहा, 'आप इतनी सारी किताबें क्यों ले जाते हैं, जब आपको इन्हें पढ़ना ही नहीं है? रोज इतना वजन उठाने की क्या जरूरत है?Ó स्वामी जी के गुरु भाई ने कहा, 'मैं

जम्मू में रहने वाली रम्पी मदान उस वक्त सुर्खियों में आईं, जब गलियों में अनाथ घूमने वाले कुत्तों को नगर निगम ने जहर देने की योजना बनाई। रम्पी मदान पूरे दल बल के साथ सड़कों पर उतरीं और उन सभी को गोद लेकर पुनर्वास की पेशकश की। वह मानती हैं कि पशु भी हमारे समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन्हें हमारे प्यार और देखभाल की जरूरत है। पशुओं की सेवा में तन-मन-धन से जुटी रम्पी मदान से खास मुलाकात के अंश परिवार से मिली प्यार की सीख मेरा जन्म और परवरिश जम्मू में ही हुई है। खुशकिस्मती से इतना बड़ा परिवार मिला कि हर रिश्ते को नजदीक से महसूस किया। मैं गर्व

भारत के सर्वाधिक करिश्माई नेताओं में शुमार अटल बिहारी वाजपेयी का देश के राजनीतिक पटल पर एक ऐसे विशाल व्यक्तित्व वाले राजनेता के रूप में सम्मान किया जाता है, जिनकी व्यापक स्तर पर स्वीकार्यता है और जिन्होंने तमाम अवरोधों को तोड़ते हुए 90 के दशक में राजनीति के मुख्य मंच पर भाजपा को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे वाजपेयी के व्यक्तित्व का ही आकर्षण कहा जाएगा कि नए सहयोगी दल उस भाजपा के साथ जुड़ते गए जिसे अपने दक्षिणपंथी झुकाव के कारण उस जमाने, खासतौर से बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद राजनीतिक रूप से अछूत माना जाता था। अपनी वाणी के ओज और ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात

भारत रत्न की उपधि से विभूषित पंडित मदनमोहन मालवीय अपने जीवन काल में ही भारत के महान रत्न के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। महान मानवीय गुणों-विनम्रता, उदारता, शुचिता, परोपकार, धर्मनिष्ठा, राष्ट्रप्रेम, ज्ञान आदि को किसी एक व्यक्तित्व में देखना हो तो मालवीय जी से श्रेष्ठ उदाहरण नहीं हो सकता। वह भारत के पहले और अंतिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। महामना मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को प्रयाग में पंडित ब्रजनाथ और मूना देवी के यहां हुआ। वह सात भाई-बहनों में पांचवें पुत्र थे। मध्य भारत के मालवा प्रांत से प्रयाग आकर बसे उनके पूर्वज मालवीय कहलाते थे। आगे चलकर यही जातिसूचक

आज पुण्यतिथि है उस महान नायक की जो एक पराक्रमी स्वतंत्रता सेनानी थे और दूरदर्शी राष्ट्रनिर्माता भी. उस प्रतापी राजपुरु ष का स्मरण आते ही मन भय और श्रद्धा के मिश्रित भाव से भर जाता है. सरदार वल्लभभाई पटेल जिन्हें भारत का लौह-पुरुष माना जाता है. उनकी प्रबल लालसा थी कि मरने के बाद लोग उनके बारे में कहें- ‘‘वह बोलता था तो कुछ कड़ी बातें भी कहता था, मगर आदमी ठीक था.’’ लाजिमी है कि उनकी कही वैसी कुछ तीखी बातों का जिक्र प्रसंगानुकूल हम करते चलें. यह इसलिए भी जरूरी होगा, ताकि नयी पीढ़ी को ठीक मालूम हो जाये कि सरदार कौन थे और उन्होंने हमारे हित में

काशी हिंदू विश्वविद्यालय पंडित मदनमोहन मालवीय का ऐसा सपना था, जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने अथक परिश्रम किया। उनके पास इतना धन नहीं था कि इसे साकार रूप दे सकें। अत: उन्होंने बिना संकोच किए दान इकट्‌ठा किया और विश्वविद्यालय की स्थापना की। विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद उसका उत्तम रीति से संचालन हो, इसकी भी व्यवस्था महामना ने बखूबी की थी। विश्वविद्यालय से संबंधित कोई भी बात उनसे छिपी नहीं रहती थी और वे निरंतर वहां की व्यवस्था दुरुस्त करते रहते थे। एक बार हॉलैंड से कुछ शिक्षाविद् विश्वविद्यालय देखने आए, क्योंकि इसकी चर्चा विदेशों में भी थी। मालवीयजी ने स्वयं उनका सत्कार किया और पूरा विश्वविद्यालय घुमा-फिराकर


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