महागठबंधन ने दलित नेता मांझी को मंझधार में छोड़ा: राजीव रंजन

रिपोर्ट: शिलनिधि

पटना : महागठबंधन पर निशाना साधते हुए भाजपा प्रवक्ता व पूर्व विधायक राजीव रंजन ने कहा “ तेजस्वी यादव द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के बार-बार अपमान किये जाने पर महागठबंधन के अन्य घटक दलों की चुप्पी ने एक बार फिर से उनकी आपसी एकता की पोल खोल दी है. किसी भी गठबंधन में कोआर्डिनेशन कमिटी होना एक आम बात है, जिसकी मांग मांझी कर रहे हैं. लेकिन सिर्फ दलित होने के कारण उनकी यह वाजिब मांग भी राजद को पच नहीं रही है. वंशवाद के वजह से खुद को युवराज समझने वाले तेजस्वी ने शुरुआत से ही पार्टी के बड़े नेताओं को अपने सामने झुकते देखा है. इसीलिय उन्हें यह हजम ही नहीं हो रहा है कि कोई दलित, पिछड़ा व्यक्ति उनके सामने किसी तरह की मांग रखने की हिम्मत कैसे कर सकता है. अपने इसी अहंकार और तानाशाही रवैए की वजह वह कोआर्डिनेशन कमिटी न बनने देने पर अड़े हुए हैं. लेकिन इस पूरे प्रकरण का सबसे दुखद पहलु यह है कि मांझी जी ने महागठबंधन के अपने जिन साथियों पर भरोसा किया था, तेजस्वी के डर और अपने स्वार्थ के कारण, उन्होंने भी मांझी का साथ छोड़ दिया. पहले तो उन्हें कोआर्डिनेशन कमिटी की मांग उठाने की हिम्मत नहीं हुई, इसीलिए एक सुनियोजित साजिश के तहत पहले उन्होंने मांझी को इस्तेमाल करते हुए आगे कर दिया, और अब जब उनकी सलाह पर चल रहे मांझी तेजस्वी का प्रकोप झेल रहे हैं, तो इन लोगों ने उन्हें बीच मंझधार में अकेला छोड़ दिया.

राजीव रंजन ने कहा कि वास्तव में इन लोगों को अपने जनाधार की असलियत अच्छे से पता है. वह जानते हैं कि जनता को उनकी असलियत पता है और अगर उन्होंने अपने बूते चुनाव लड़ने की कोशिश की तो वोट मिलना तो दूर उन्हें ढंग के उम्मीदवार तक नहीं मिल पाएंगे. अपने इसी स्वार्थ के लिए उन्होंने मांझी की नाव को बीच रास्ते में ही डुबो दिया. इसके अलावा मांझी के रास्ते से हटने से उन्हें ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद भी है. यह उनकी अवसरवादिता के साथ-साथ दलितों के प्रति उनकी कुत्सित मानसिकता को भी दिखाता है. बहरहाल इस पूरे प्रकरण से जनता यह समझ चुकी है, जो नेता अपने साथी को इस तरह इस्तेमाल करके फेक सकते हैं, वह जनता के क्या होंगे.”


Create Account



Log In Your Account