सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का विरोध: सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा शास्त्रों में संशोधन आवश्यक

रिपोर्ट: साभार

सबरीमाला मंदिर आज से मासिक पूजा के लिए खुल रहा है| सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद आज से यहां हर आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश दिया जायेगा लेकिन कोर्ट के इस निर्णय का यहां विरोध हो रहा है, जिसके कारण यहां तनाव की स्थिति बन गयी है और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये हैं| मंदिर के आसपास की पहाड़ियों पर रहने वाले आदिवासियों ने आरोप लगाया है कि सरकार और त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देकर सदियों पुरानी प्रथा को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं|

उन्होंने दावा किया कि रजस्वला लड़कियों और महिलाओं पर लगी बंदिशें केरल के जंगलों में रहने वाले आदिवासी समाजों के रीति-रिवाज का हिस्सा हैं| आदिवासियों ने यह भी कहा कि सबरीमाला मंदिर और इससे जुड़ी जगहों पर जनजातीय समुदायों के कई अधिकार सरकारी अधिकारियों और मंदिर का प्रबंधन करने वाले टीडीबी के अधिकारियों द्वारा छीने जा रहे हैं|

इधर इस मसले पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा के दलित नेता उदित राज ने कहा कि यह बेतुका तर्क है कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जायेगा| हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह उनका व्यक्तिगत विचार है इससे राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए|

वहीं  सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला में मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी थी तो लोग उसकी प्रशंसा कर रहे थे अब सड़कों पर उतर आये हैं और कह रहे हैं कि यह हमारी परंपरा है| फिर तो ट्रिपल तलाक भी परंपरा है|  यह लड़ाई रुढ़िवादी व्यवस्था और प्रगतिशील सोच के बीच है| जब प्रगतिशील सोच यह कहता है कि सारे हिंदू एक हैं, तो फिर जाति व्यवस्था कहां है? कौन कहता है कि जाति का निर्धारण सिर्फ जन्म से होता है| शास्त्रों में संशोधन किया जा सकता है| 

 इधर सबरीमाला मंदिर में पूजा के लिए जा रही एक महिला को विरोध प्रदर्शन के बाद वापस लौटना पड़ा है|  अट्टाथोडू इलाके में आदिवासियों के मुखिया वी के नारायणन (70) ने कहा, ‘‘देवस्वोम बोर्ड ने सबरीमाला के आसपास की विभिन्न पहाड़ियों में स्थित आदिवासी देवस्थानों पर भी नियंत्रण कर लिया है|' उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारी मंदिर से जुड़े सदियों पुराने जनजातीय रीति-रिवाजों को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं| नारायणन ने कहा, ‘‘मेरी त्वचा को देखिए| हम आदिवासी हैं| जिन संस्थाओं पर हमारे रीति-रिवाजों के संरक्षण की जिम्मेदारी है, वही उन्हें खत्म कर रहे हैं|' यहां आदिवासियों के मुखिया को ‘मूप्पेन' कहा जाता है| 

उन्होंने कहा कि रजस्वला लड़कियों और महिलाओं को अशुद्ध मानना एक द्रविड़ियन रिवाज है और आदिवासी लोगों द्वारा प्रकृति की पूजा से जुड़ा है| सबरीमला आचार संरक्षण समिति के प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे नारायणन ने कहा, ‘भगवान अयप्पा हमारे भगवान हैं| किसी खास आयु वर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हमारे रीति-रिवाज का हिस्सा है| घने जंगलों में स्थित भगवान अयप्पा के मंदिर में पूजा करने के लिए रीति-रिवाजों का पालन करना बहुत जरूरी है| इसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए| अशुद्ध महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं देनी चाहिए|'


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