दिल्ली: ना की होतीं ये गलतियां तो बजता बीजेपी का डंका

रिपोर्ट: साभारः

बीजेपी की हार की पटकथा रामलीला मैदान मे पीएम मोदी की रैली में भीड़ न जुटने से ही लिखी जाने लगी थी, उसके बाद चाहे सीएम कैंडिडेट के तौर पर किरन बेदी को लाना हो या फिर ऐड कैंपेन में केजरीवाल पर निशाना साधना हो। सारे के सारे दांव बीजेपी के लिए उल्टे पड़े। कुछ कारणों पर प्रकाश डालती यह रिपोर्ट- पीएम की रैली में भीड़ ना जुटना चुनावों की घोषणा होने से पहले 10 जनवरी को हुई पीएम नरेंद्र मोदी की रामलीला मैदान की रैली में तय टारगेट से कम भीड़ जुटने से ही साफ होने लगा था कि बीजेपी की स्थिति कमजोर हो रही है। बीजेपी पीएम की पहली रैली में भीड़ ना जुटाने से शक्ति प्रदर्शन में पीछे रह गई, इसका असर सीधे रूप से लोगों पर पड़ता दिखाई दिया। इस रैली को आम आदमी पार्टी ने भी खूब जमकर भुनाया। बीजेपी की हार का टर्निंग पॉइंट यहीं से शुरू हो गया था। बेदी को सीएम कैंडिडेट बनाना उल्टा दांव रैली में भीड़ न जुटने के बाद बीजेपी को लगा कि कोई ऐसा कैंडिडेट लेकर आया जाए, जो केजरीवाल को टक्कर दे सके। बीजेपी ने सीएम कैंडिडेट के तौर पर बेदी को मैदान में उतार दिया। इसका असर यह हुआ कि बीजेपी के अंदर ही गुटबाजी शुरू हो गई। बीजेपी के कई नेता यह बात भी मानते हैं कि बाहर से सीएम कैंडिडेट लाकर थोपने से बीजेपी को जबरदस्त झटका लगा। बीजेपी नेताओं ने बेमन से काम किया। बीजेपी में सीएम कैंडिडेट के लिए ताल ठोक रहे नेताओं की भावनाओं को जबरदस्त धक्का लगा। इसका असर भी दिल्ली चुनाव पर साफ दिखाई दिया। हर्षवर्धन को हाशिए पर धकेलना बीजेपी ने दिल्ली में पार्टी के लोकप्रिय नेता डॉ. हर्षवर्धन को पूरी तरह से हाशिए पर खड़ा कर दिए। यह भी लोगों को गंवारा नहीं लगा। पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी अगुवाई में 32 सीटें आ गईं थी और बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी। दिल्ली से वह अकेले ऐसे केंद्रीय मंत्री थे, जिन्हें हेल्थ मिनिस्टर बनाया गया। बाद में उनका मंत्रालय बदलकर एक तरह से उनका डिमोशन किया गया। बेदी को लाते वक्त भी वे अलग-थलग पड़ते नजर आए। उनकी विधानसभा सीट से बेदी को चुनाव लड़ाया गया। ये सारे बातें भी लोगों और कार्यकर्ताओं को खटकीं। बाहरी लोगों को टिकट देने से भी परेशानी इस चुनाव में सबसे ज्यादा असर इस बात पर भी पड़ा कि एक या दो दिन पहले बीजेपी में शामिल होने वाले अन्य नेताओं को टिकट दे दिया गया, जबकि कई सालों से बीजेपी के लिए मेहनत करने वालों को नकार दिया गया। बीजेपी नेता भी इस बात से सहमत नजर आते हैं। आम आदमी पार्टी से आए एमएस धीर, अशोक चौहान, विनोद कुमार बिन्नी, कांग्रेस से आईं कृष्णा तीरथ और डॉ. एस. सी. वत्स जैसे लोगों को पार्टी में शामिल करके टिकट देना भी बीजेपी के लिए भारी पड़ा। सही टिकट बंटवारा न होने से नाराजगी बीजेपी में टिकट बंटवारे पर भी जमकर सवाल उठे। दिल्ली में रहने वाले तमाम जातियों के लोगों को सही प्रतिनिधित्व ना देने के कारण भी गुस्सा बढ़ा। दिल्ली में पूर्वांचल के 20 से 25 लाख लोग रहते हैं, लेकिन इस कम्युनिटी के केवल 3 ही लोगों को टिकट दिया गया। इसमें भी पुराने कैंडिडेट थे। उत्तराखंड वालों के साथ भी ऐसा हुआ। उनकी आबादी भी 10 से 15 लाख है, लेकिन एक ही टिकट दिया गया। इसी तरह गुर्जर 4 फीसदी के आसपास हैं, लेकिन इस कम्युनिटी के लोगों को करीब 9 के आसपास कैंडिडेट्स को टिकट दिए गए। ऐसा ही जाट समुदाय के साथ हुआ उनकी आबादी भी दिल्ली में 6 फीसदी के आसपास है, लेकिन टिकट काफी संख्या में दिए गए। इससे अन्य जातियों में असंतोष साफ नजर आया। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष को खुद टिकट ना मिलने से उनके समर्थक भी प्रदर्शन करते नजर आए। नेगेटिव कैंपेन हड़बडाहट में बीजेपी ने अपने ऐड कैंपेन में सीधे-सीधे केजरीवाल पर निशाना साधते हुए ऐड कैंपेन में इस तरह की नकारात्मक भाषा का इस्तेमाल किया, जिससे आम आदमी पार्टी के साथ-साथ लोग भी नाराज दिखाए दिए। अन्ना हजारे को माला पहनाना हो या फिर केजरीवाल के लिए \'उपद्रवी गोत्र\' लिखना। इससे वैश्य समाज के लोग भी नाराज हुए। मैनिफेस्टो न जारी करना बीजेपी अंत तक इस कशमकश में रही कि मैनिफेस्टो लेकर आएं या नहीं आएं। मैनिफेस्टो तैयार था लेकिन बेदी ने उसके बदले विजन डॉक्युमेंट लेकर आईं। इससे भी लोगों को लगा कि बीजेपी की झोली में कुछ नहीं है। विजन डॉक्यूमेंट में नॉर्थ ईस्ट के लोगों को \'इमिग्रेंट्स\' लिखना भी बीजेपी के लिए मुसीबत बन गया। विरोध बढ़ता देखकर बीजेपी ने माफी भी मांगी। खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने भी माफी मांगी, लेकिन उसका लोगों पर कोई असर नहीं दिखाई दिया। बिजली की दरों पर कोई घोषणा नहीं जहां आम आदमी पार्टी ने बिजली की दरों में 50 फीसदी कमी करने का ऐलान किया और कांग्रेस ने 1 रुपये 50 पैसे की दर से 200 यूनिट तक बिजली देने का ऐलान किया, वहीं बीजेपी की ओर से ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई। सिर्फ एलईडी बल्ब और सोलर एनर्जी की बात की गई, जो लोगों के गले से नीचे नहीं उतरी। पूर्ण राज्य के दर्जे से पीछे हटे बीजेपी लगातार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा अपने मैनिफेस्टो में करती आई थी, लेकिन इस बार इसे विजन डॉक्युमेंट तक में शामिल नहीं किया गया। इस मुद्दे को आम आदमी पार्टी ने जोरदार तरीके से उठाया। यहां तक की पीएम नरेंद मोदी की रामलीला मैदान में रैली के वक्त भी पोस्टर लगाकर बीजेपी पर इससे भागने का आरोप लगाया। इसका असर भी जनता के दिलों पर पड़ा।


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