सरकार ने 3 बार किया था आरबीआई के सेक्शन-7 का इस्तेमाल, 5 मुद्दों पर था मतभेद

रिपोर्ट: सभार

आरबीआई और सरकार के बीच प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन समेत कई 5 मुद्दों पर विवाद था। सरकार ने अपनी मांगों के लिए आरबीआई एक्ट की धारा-7 का भी इस्तेमाल किया था। सरकार और आरबीआई के बीच विवाद पहली बार नहीं है। बल्कि पहले भी ऐसा होता रहा है। यूपीए सरकार के दौरान पी चिदंबरम और तत्कालीन आरबीआई गर्वनर डी सुब्बाराव के बीच भी मतभेद सामने आए थे। दोनों के बीच ब्याज दरों और कर्ज को लेकर विवाद था।

आरबीआई ने प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) की रूपरेखा के तहत कुछ नियम तय किए थे। यही सरकार और आरबीआई गवर्नर के बीच विवाद का सबसे बड़ा मुद्दा था। रिजर्व बैंक ने 12 बैंकों को त्वरित कारवाई की श्रेणी में डाला। ये नया कर्ज नहीं दे सकते, नई ब्रांच नहीं खोल सकते और ना ही डिविडेंड दे सकते हैं।

  • सरकार पीसीए नियमों में ढील चाहती है ताकि कर्ज देना बढ़ सके। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा था कि बैंकों की बैलेंस शीट और ना बिगड़े, इसलिए रोक जरूरी है
  • अंतर-मंत्रालय समिति ने अलग पेमेंट-सेटलमेंट रेगुलेटर की सिफारिश की। रिजर्व बैंक इसके खिलाफ था। उसका अभी भी यही कहना है कि यह आरबीआई के अधीन हो। इसका प्रमुख आरबीआई गवर्नर ही हो।
  • एनपीए और विल्फुल डिफॉल्टरों पर अंकुश लगाने के लिए आरबीआई ने 12 फरवरी को नियम बदले। कर्ज लौटाने में एक दिन की भी देरी हुई तो डिफॉल्ट मानकर रिजॉल्यूशन प्रक्रिया शुरू करनी पड़गी। सरकार ने इसमें ढील देने का आग्रह किया, लेकिन आरबीआई नहीं माना।
  • नीरव मोदी का पीएनबी फ्रॉड सामने आने के बाद सरकार ने रिजर्व बैंक की निगरानी की आलोचना की तो आरबीआई गवर्नर ने ज्यादा अधिकार मांगे ताकि सरकारी बैंकों के खिलाफ कारवाई की जा सके।
  • सरकार रिजर्व बैंक से ज्यादा डिविडेंड चाहती है ताकि अपना घाटा कम कर सके। आरबीआई का कहना है कि सरकार इसकी स्वायत्तता को कम कर रही है। अभी इसकी बैलेंस शीट मजबूत बनाने की जरूरत है।

8 अगस्त: सरकार ने संघ की विचारधारा वाले एस गरुमूर्ति और स्वदेशी समर्थक सतीश मराठे को आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक नियुक्त किया।
सितंबर: सरकार ने आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड में शामिल सदस्य नचिकेत मोर का कार्यकाल घटाया।  
10 अक्टूबर: सरकार ने आरबीआई एक्ट की धारा-7 के तहत आरबीआई को 3 पत्र लिखकर अपनी मांगें रखीं।  
23 अक्टूबर: करीब 8 घंटे तक आरबीआई की बोर्ड बैठक हुई, ज्यादातर मुद्दों पर कोई नतीजा नहीं निकला। 
26 अक्टूबर: आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने स्वायत्तता का मुद्दा उठाते हुए सरकार को चेतावनी दी।
31 अक्टूबर: सरकार ने कहा कि आरबीआई की स्वायत्तता जरूरी है। लेकिन, बेहतर प्रशासन की जरूरत है।


आरबीआई से पहले भी होता रहा है सरकार का विवाद

  • 2014 से 2016 के बीच मोदी सरकार और रघुराम राजन के बीच ब्याज दरों और राजन के बयानों को लेकर अनबन रही थी।
  • 2008 से 2012 के दौरान यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम और तत्कालीन आरबीआई गर्वनर डी सुब्बाराव के बीच भी मतभेद सामने आए थे। दोनों के बीच ब्याज दरों और कर्ज को लेकर विवाद था।
  • 2004 से 2008 के दौरान पी चिदंबरम और तत्कालीन आरबीआई गवर्नर वाई वी रेड्डी के बीच विदेशी निवेशकों पर टैक्स, ब्याज दरों और निजी बैंकों में एफडीआई के मुद्दे को लेकर विवाद हुआ था।


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