आतंक का एक और काला अध्याय

रिपोर्ट: ramesh pandey

उड़ी में सेना के कैंप पर हुआ आतंकवादी हमला दिखाता है कि जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का खतरा ज्यों का त्यों बरकरार है। सवाल उठता है कि आतंकवादी कैसे सेना के कैंप में घुस गए और इतनी बड़ी क्षति पहुंचाने में सफल रहे। बहरहाल कूटनीति के केंद्र में इस हमले का समय होना चाहिए। जुलाई में हिजबुल मुजाहिदीन आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद राज्य में हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। जाहिर है यह हमला अंतरराष्ट्रीय जगत का ध्यान खींचेगा और पाकिस्तान की यही कोशिश है। पाकिस्तान ने कश्मीर में अशांति को हमेशा से ही हवा दी है। वह कश्मीर घाटी में कथित रूप से मानवाधिकारों के उल्लंघन पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकृष्ट कराना चाहता है। हालांकि वह अपने प्रयासों में कभी सफल नहीं रहा है, क्योंकि प्रमुख देश उसके दुष्प्रचार से वाकिफ हैं। उन्हें इस बात का अहसास है कि वहां अशांति पैदा करने में पाकिस्तान का हाथ है। वह अपने आतंकवादी संगठनों के जरिये छद्म युद्ध छेड़े हुए है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह भी पता है कि भारत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हिंसा का सामना कर रहा है। उड़ी हमला विश्व के प्रमुख देशों की इसी मान्यता और पुख्ता करेगा। अब तक पाकिस्तान की विफलता का मतलब यह नहीं है कि वह अपने प्रयास जारी नहीं रखेगा। अब उसका अगला ध्यान संयुक्त राष्ट्र्र की 71वीं महासभा पर है जहां पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा किया जा रहा है। यह लगभग तय है कि जैसे ही उड़ी में आतंकी हमले की खबर न्यूयार्क में जमा हुए विश्व के नेताओं तक पहुंचेगी वे तनाव को कम करने के लिए भारत और पाकिस्तान पर वार्ता करने के लिए दबाव बनाएंगे। पाकिस्तान को इस समय कड़ा संदेश देने के साथ ही भारत को विवेकपूर्ण कूटनीति अपनाने की जरूरत है। भले ही भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद बंद नहीं करता उससे वार्ता नहीं होगी, लेकिन पाकिस्तानी कूटनीतिक चालों का हमें सावधानीपूर्वक सामना करना चाहिए। नवाज शरीफ ने कश्मीर के प्रति हमेशा कड़ा रुख दिखाया है। पाकिस्तान की भारत नीति को लेकर नवाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना के दृष्टिकोण में कुछ हद तक भिन्नता है, लेकिन कश्मीर के मामले पर दोनों के विचार समान हैं। लिहाजा कश्मीर को लेकर दुष्प्रचार का नेतृत्व शरीफ के हाथों में होना चकित नहीं करता है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र्र और विश्व नेताओं को पत्र लिखने, भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने के लिए दुनिया के प्रमुख देशों की राजधानियों में पाकिस्तानी नेताओं के दल भेजने और हाल में बकरीद को कश्मीर के तथाकथित कल्याण के लिए समर्पित करने के साथ ही कश्मीरी आतंकवादियों और प्रदर्शनकारियों के समर्थन में ढेरों बयान दिए हैं। न्यूयॉर्क प्रस्थान से पूर्व वह मुजफ्फराबाद में हुर्रियत नेताओं से मिलने गए और वहां से कश्मीर घाटी में प्रदर्शनकारियों को संकेत भेजा। उन्होंने यह कदम निश्चित रूप से कश्मीरियों को भड़काने के लिए उठाया है। भारत विरोधी दुष्प्रचार अभियान चलाने के लिए पाकिस्तान युवा कश्मीरियों का खून बहाने से भी कभी नहीं हिचका है। यह और कुछ नहीं, बल्कि कश्मीरी युवाओं का शोषण है, जो 1947 से ही चल रहा है। यह तथ्य है कि पाकिस्तान कथित आत्मनिर्णय के अधिकार के नाम पर संघर्ष कर रहे कश्मीर घाटी के लोगों को ठगता रहा है। यहां तक कि पाकिस्तानी सरकार ने कहा है कि न्यूयॉर्क में नवाज शरीफ संयुक्त राष्ट्र्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अनुसार कश्मीर के लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार दिलाने के लिए अपील भी करेंगे। इस मसले को बारीकी से समझने की जरूरत है। 1957 से अब तक संयुक्त राष्ट्र्र की ओर से कोई प्रस्ताव नहीं आया है और कोई भी देश कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ बोलने का इच्छुक नहीं है। इसके अतिरिक्त 1972 के शिमला समझौते ने संयुक्त राष्ट्र्र के प्रस्ताव को अप्रासंगिक बना दिया है। यह समझौता संयुक्त राष्ट्र्र के प्रस्तावों को लागू करने या जम्मू-कश्मीर के लोगों से संपर्क करने के के बारे में कुछ नहीं कहता है। जाहिर है कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ अपनी शत्रुता के खातिर ही कश्मीरी लोगों का सिर्फ दुरुपयोग करता है। पाकिस्तान मौजूदा स्थितियों में केवल इस्लामिक सहयोग संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच से ही यह आशा कर सकता है कि वह कश्मीर की मौजूदा स्थिति पर टिप्पणी करेगा। पिछले 25 सालों में उसने कई बार ऐसा किया है। उसके पास कश्मीर पर एक संपर्क समूह है, जो कि हमेशा पाकिस्तान के दबाव में आकर कश्मीर पर कठोर टिप्पणी करता है। यह संपर्क समूह जल्द ही न्यूयॉर्क में बैठक करेगा। आश्चर्य नहीं कि वह कश्मीर के संबंध में कड़ा बयान दे। हालांकि कोई भी इस्लामिक देश इन बयानों को गंभीरता से नहीं लेता। ज्यादातर इस्लामिक देश भारत से अच्छे द्विपक्षीय रिश्ते बरकरार रखना चाहते हैं। ऐसे बयान कश्मीर पर पाकिस्तान के दुष्प्रचार की सफलता के संकेत नहीं होंगे। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद प्रमुख जैद अल हुसैन ने परिषद को बताया कि भारत ने कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति का पता करने के लिए वहां टीम भेजे जाने संबंधी उसके अनुरोध को नहीं स्वीकारा है, जबकि पाकिस्तान ने मान लिया है। इसका भी यह अर्थ नहीं है कि पाकिस्तान अपने मकसद में कामयाब हो गया है। जैद की रिपोर्ट में अमेरिका और चीन सहित कई देशों का नाम लिया गया है जिन्होंने उसकी जांच टीम को अनुमति देने से मना किया है। भारत ने ऐसी टीम को अनुमति न देकर सही निर्णय किया। कई पाकिस्तान कूटनीतिज्ञों और लेखकों ने माना है कि पिछले दो महीनों से उनकी सरकार कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय जगत का ध्यान केंद्रित कराने में विफल रही है। पाकिस्तान के एक प्रमुख अखबार में भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे पूर्व राजदूत अशरफ जहांगीर काजी ने लिखा कि आज कश्मीर पर शायद ही कोई देश पाकिस्तान की बात मानने को तैयार है। दरअसल अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अहसास है कि भारतीय सुरक्षा बल कश्मीर में संयम से काम कर रहे हैं। यही वजह है कि पाकिस्तानी दुष्प्रचार निष्फल साबित हुआ है। कुछ पाकिस्तानी कश्मीरियों को सलाह दे रहे हैं कि वे खुद को पाकिस्तान के साथ जोड़कर अपना नुकसान कर रहे हैं। उनकी सलाह है कि कश्मीरी प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तानी झंडा न लहराएं, क्योंकि ऐसा करने से अंतरराष्ट्रीय समुदाय का मत बंट जाता है। आखिर यह एक सच्चाई है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में प्रशिक्षण पाने वाले आतंकी केवल इसी इलाके तक सीमित नहीं रहे हैं और दुनिया उनके जरिये उभरने वाले खतरे के प्रति सचेत है। [ लेखक विवेक काटजू, विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं और पाकिस्तान-अफगानिस्तान मामलों के विशेषज्ञ हैं ]


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