आरक्षण को लेकर RSS प्रमुख द्वारा दिए गये ब्यान पर फिर शुरू हुआ सियासी बवाल

रिपोर्ट: Ramesh Pandey

वर्ष 2015 के बाद एक बार फिर आरक्षण के मसले पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक प्रमुख मोहन भागवत के द्वारा दिए गये ब्यान पर एक बार फिरे पूरे देश में बवाल मचा हुआ है| आरक्षण के बहाने सियासत चमकानेवाली पार्टियां और उनके नेताओं में खलबली है| गौरतलब है कि दो दिन पहले रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि आरक्षण के पक्ष और विरोध में रहनेवाले लोगों के बीच सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत होनी चाहिए| उन्होंने कहा कि इससे पहले भी आरक्षण पर उन्होंने अपनी बात रखी थी| लेकिन आरक्षण के जरिये अपनी राजनैतिक रोटी सेकनेवाले लोग बेवजह हंगामा खड़ा कर पूरी चर्चा को वास्तविक मुद्दे से भटकाकर लोगों को गुमराह करते रहे|

आरक्षण पर सरसंघचालक मोहन भागवत की टिप्पणी से उभरे विवाद को आरएसएस ने अनावश्यक  करार देते हुए खारिज कर दिया| संघ ने कहा कि वह महज इस आवश्यकता पर बल दे रहे थे कि समाज में सद्भावनापूर्वक परस्पर बातचीत के आधार पर सभी प्रश्नों के समाधान ढूंढे जाए| आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरूण कुमार ने एक ट्वीट में कहा, 'जहां तक संघ का आरक्षण के विषय पर मत है, वह कई बार स्पष्ट किया जा चुका है कि अनुसूचित जाति अनुसूचित अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक आधार पर पिछड़ों के आरक्षण का (आरएसएस) पूर्ण समर्थन करता है|

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि भागवत की टिप्पणी ने आरएसएस-भाजपा का 'दलित-पिछड़ा विरोधी' चेहरा बेनकाब कर दिया है| वही कांग्रेसी नेता पी एल पूनिया ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि बीजेपी जब भी सरकार में आई तो संविधान में बदलाव की कोशिश की गई| भागवत का बयान आया है कि आरक्षण पर सद्भावपूर्ण बहस होनी चहिए| ये लोग किस तरह की बहस करना चाहते हैं?' 

बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट कर कहा, 'आरएसएस का एससी/एसटी/ओबीसी आरक्षण के सम्बंध में यह कहना कि इसपर खुले दिल से बहस होनी चाहिए, संदेह की घातक स्थिति पैदा करता है जिसकी कोई जरूरत नहीं है| आरक्षण मानवतावादी संवैधानिक व्यवस्था है जिससे छेड़छाड़ अनुचित व अन्याय है| संघ अपनी आरक्षण-विरोधी मानसिकता त्याग दे तो बेहतर है|'    


 

 


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