केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन विधेयक सोमवार को लोकसभा के पटल पर रखा जिसका विपक्षी दलों ने इसे अल्पसंख्यक विरोधी करार देते हुए हंगामा किया| विपक्षी दलों के हंगामे के पर अमित शाह ने कहा कि यह बिल अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है। मुस्लिम समुदाय का इस विधेयक में एक बार भी जिक्र नहीं किया गया है। बावजूद इसके लोकसभा में इस पर चली एक घंटे की बहस में विपक्षी सदस्य बिल पेश होने का विरोध करते रहे। इस बिल को अल्पसंख्यकों के खिलाफ और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया जा रहा है। विरोध और हंगामे के बीच लोकसभा अध्यक्ष ने बिल पेश करने के संबंध में वोटिंग कराने के निर्देश दिए। वोटिंग में 375 सांसदों ने हिस्सा लिया जिसमे बिल के पक्ष में 293 और विरोध में 82 वोट पड़े।
संशोधित विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता मिलने की समयावधि घटाकर 11 साल से 6 साल की गई है। साथ ही 31 दिसंबर 2014 तक या उससे पहले आए गैर-मुस्लिमों को नागरिकता के लिए पात्र होंगे। वैध दस्तावेजों के बिना पाए गए तो भी उन्हें जेल नहीं होगी।
पूर्वोत्तरी राज्यों का विरोध है कि यदि नागरिकता बिल संसद में पास होता है बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए हिंदुओं को नागरिकता देने से यहां के मूल निवासियों के अधिकार खत्म होंगे। इससे राज्यों की सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत पर संकट आ जाएगा। नये बिल में 1971 से पहले आए लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान था। सरकार का कहना है कि यह विधेयक असम तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह पूरे देश में प्रभावी होगा। यह कानून 1955 में आया। इसके तहत भारत सरकार अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर-मुस्लिमों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को 11 साल देश में रहने के बाद नागरिकता देती है।
विपक्ष धार्मिक आधार पर भेदभाव का आरोप लगाकर नेपाल और श्रीलंका के मुस्लिमों को भी इसमें शामिल करने की मांग की| एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर बिल पेश हुआ तो गृह मंत्री अमित शाह का नाम इजराइल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरिओन के साथ लिखा जाएगा। इस दौरान भाजपा सांसदों ने ओवैसी के बयान पर आपत्ति जताई। नागरिकता बिल के विरोध में कांग्रेस, शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, सपा, बसपा, राजद, माकपा, एआईएमआईएम, बीजद और असम में भाजपा की सहयोगी अगप विधेयक का विरोध कर रही हैं। जबकि, अकाली दल, जदयू, अन्नाद्रमुक सरकार के साथ हैं। बिल का असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में भी विरोध है। ऐसे में मोदी सरकार के लिए बिल को संसद पास कराना चुनौती होगा।