यदि यूएई की मदद ठुकराना चाहती है केंद्र सरकार तो वह केरल के सहायतार्थ 2600 करोड़ दे : भाकपा

रिपोर्ट: साभार

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने आज कहा कि यदि केंद्र केंरल में बाढ़ राहत अभियान के लिए संयुक्त अरब अमीरात की 700 करोड़ रुपये की पेशकश ठुकराना चाहता है तो उसे इस दक्षिणी राज्य को 2600 करोड़ रुपये की अंतरिम सहायता देनी चाहिए।केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार के दूसरे सबसे बड़े घटक भाकपा के महासचिव सूरावरम सुधारक रेड्डी ने केंद्र पर राष्ट्रीय आपदा की घड़ी में विदेशी सहायता के मुद्दे पर ‘झूठी प्रतिष्ठा’ पर खड़े रहने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि जब किसी देश के सामने प्राकृतिक विपदा आती है तो यह सामान्य परिपाटी है कि दूसरे देश सहायता लेकर सामने आते हैं। उन्होंने याद किया कि भारत ने अतीत में ऐसी स्थितियों में नेपाल और बांग्लादेश की मदद की थी और पाकिस्तान को भी भूकंप के समय ऐसी पेशकश की थी।

रेड्डी ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में, हम यूएनओ और यूएई से (सहायता) स्वीकार कर सकते हैं.... जो भी बिना शर्त मदद करता है हमें उसे स्वीकार करना चाहिए। ’’ उन्होंने कहा कि केंद्र की भाजपा नीत राजग सरकार अनाधिकारिक रुप से कह रही है कि वह प्राकृतिक आपदाओं के समय विदेशी सहायता नहीं लेने की पिछली सरकार की नीति का पालन कर रही है। उन्होंने कहा, ‘‘संप्रग सरकार ने कई अच्छे निर्णय भी लिए जिनमें आंध्रप्रदेश के लिए विशेष दर्जा भी शामिल है। वह उसे क्यों नहीं दे रही है?’’ 

वाम नेता ने कहा, ‘‘न तो भारत सरकार वह देने को तैयार है जो केरल सरकार मांग रही है। उसने पूरे 20,000 करोड़ रुपये (वर्षा के कारण हुए अनुमानित नुकसान) नहीं मांगे हें। वह केवल 2600 करोड़ रुपये मांग रही है। केंद्र यदि संयुक्त अरब अमीरात की पेशकश ठुकराना चाहता है तो उसे 2600 करोड़ रुपये देना चाहिए, तभी वह कह सकता है कि भारत अपनी समस्याएं हल करने के लिए खुद ही तैयार है।’’

सरकार ने 14 साल पुराने नीतिगत फैसले के आधार पर विदेशी मदद को अस्वीकार किया

केंद्रीय मंत्री अल्फोन्स कन्नंतनम ने आज कहा कि केरल के बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास के लिए विदेशी मदद को 14 साल पहले के एक नीतिगत फैसले के आधार पर स्वीकार नहीं किया गया है। संयुक्त अरब अमीरात और थाईलैंड द्वारा केरल के लिए मदद की पेशकश को अस्वीकार करने के लिए केंद्र आलोचनाओं का सामना कर रहा है।

अल्फोंस ने कहा कि 2004 में विनाशकारी सुनामी के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विदेशी सहायता स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और वर्तमान सरकार ने उसी नीति के तहत यह फैसला किया है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “सुनामी के बाद दिसंबर 2004 में मनमोहन सिंह सरकार ने एक नीतिगत फैसला किया था और पिछले 14 वर्षों से यह नीति जारी है। हमने इसी नीति को अपनाया है।” इससे पहले केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने सहायता को स्वीकार नहीं करने को लेकर भाजपा नीत सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि बाढ़ प्रभावित दक्षिणी राज्य ने केंद्र से 2,200 करोड़ रुपये की मदद मांगी लेकिन उसने केवल 600 रुपये जारी किये।

अल्फोंस देश के अन्य हिस्सों को लगातार केरल की स्थिति के बारे में बता रहे हैं और सामान्य स्थिति की बहाली के लिए संघर्ष कर रहे लोगों की जरूरतों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। केंद्रीय पर्यटन मंत्री ने सभी देशवासियों से बहुत ‘बहुत अधिक धन’ से सहयोग करने की अपील की है। केरल में बारिश और बाढ़ से जुड़ी घटनाओं में आठ अगस्त से अब तक 230 से अधिक लोगों की जान गयी है।


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