सरकार ने शुरू की कॉरपोरेट जगत को टैक्‍स आतंकवाद से बचाने की मुहिम

रिपोर्ट: साभारः

नई दिल्‍ली। देश-विदेश की कंपनियों को मेक इन इंडिया का न्‍यौता दे रही मोदी सरकार ने टैक्‍स आतंकवाद से निजात दिलाने की मुहित शुरू कर दी है। इनकम टैक्‍स से जुड़े 3200 करोड़ रुपये के मामले में वोडाफोन के खिलाफ अपील नहीं करने का फैसला सरकार की इसी कोशिश का हिस्‍सा है। इसके अलावा भी केंद्र सरकार कई ऐसे कदम उठा रही है जो निवेशकों को मनमानी टैक्‍स डिमांड से बचाने का भरोसा दिलाएंगे। वोडाफोन के बाद वित्‍त मंत्रालय ने अन्‍य मामलों में भी इसी तरह की नरमी बरतने का फैसला किया है। वित्‍त मंत्रालय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय प्रत्‍यक्ष कर बोर्ड सीबीडीटी ने ट्रांसफर प्राइसिंग से जुड़े अन्‍य मामलों में भी वोडाफोन केस में अपनाई गई नीति को लागू करने के निर्देश दिए हैं। भारत में कारोबार कर रही विदेशी कंपनियों को मोदी सरकार की ओर से यह बड़ी राहत है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान नोकिया, वोडाफोन, आईबीएम और केडबरी जैसे कई मल्‍टीनेशनल कंपनियां भारत में टैक्‍स संबंधी उलझनों में फंस चुकी हैं। लॉ फर्म वैश्‍य एसोसिएट के पार्टनर हितेंद्र मेहता का कहना है कि 3200 करोड़ रुपये जैसी बड़ी रकम दांव पर लगने के बावजूद केंद्र सरकार ने वोडाफोन मामले में अपील नहीं करने का रास्‍ता चुना है। इस कदम को अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा के हाल के भारत दौरे का असर मान सकते हैं। उन्‍होंने देश की टैक्‍स व्‍यवस्‍था को सरल बनाने पर जोर दिया था। मोदी सरकार ने निवेशकों को उत्‍पीड़न से बचाने का संदेश देना शुरू कर दिया है। रॉयल्‍टी पेमेंट पर पाबंदी की मांग खारिज वोडाफाेन को राहत देने के बाद वित्‍त मंत्रालय ने मल्‍टीनेशनल कंपनियों के रॉयल्‍टी पेमेंट पर पाबंदियां लगाने की उद्योग मंत्रायल की मांग को भी नकार दिया है। भारत में कारोबार करने वाली मल्‍टीनेशनल कंपनियां की कमाई देश बाहर जाने पर रोक लगाने के लिए औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग डीआईपीपी ने रॉयल्‍टी पेमेंट पर कई तरह की पाबंदियां लगाने का प्रस्‍ताव रखा था। लेकिन वित्‍त मंत्रालय ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि इससे विदेशी निवेशकों में गलत संदेश जाएगा। इस तरह का कड़ा रुख देश में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश की नीति को उदार बनाने के विपरीत होगा। 15-18 फीसदी एफडीआई रॉयल्‍टी के जरिए वापस कई मल्‍टीनेशनल कंपनियां मशीनरी, ब्रांड और तकनीक के नाम पर पेरेंट या ग्रुप कंपनियां के साथ बढ़ा-चढ़ाकर लेन-देन करती हैं। जिससे टैक्‍स चुकाए बगैर मुनाफा ग्रुप कंपनियों को पहुंच जाता है। अनुमान के मुताबिक, एफडीआई के तहत आए निवेश को 15-18 फीसदी हिस्‍सा रॉयल्‍टी और टेक्‍नीकल सर्विस की फीस के नाम पर टैक्‍स चुकाए बगैर वापस चला जाता है। वर्ष 2009-10 से 2012-13 के दौरान रॉयल्‍टी पेमेंट 1.7 अरब डॉलर से बढ़कर 4.1 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। कंपनियों के बीच होने वाली इस तरह के लेन-देन यानी ट्रांसफर प्राइसिंग के मामलों में कई मल्‍टीनेशनल कंपनियां कानून मुश्किलों में फंसी हैं। इसके बावजूद वित्‍त मंत्रालय ने रॉयल्‍टी पेमेंट पर नई पाबंदियां लगाने से इंकार किया है। हालांकि, 2009 तक रॉयल्‍टी पेमेंट पर कई तरह की पाबंदियां लागू थीं। कंपनी के बड़े अधिकारियों को समन भेजने में जल्‍दबाजी नहीं टैक्‍स से जुड़े मामलों और रिकवरी के लिए कंपनी के बड़े अधिकारियों को अब तुरंत नोटिस या समन भेजना आसान नहीं होगा। केंद्रीय उत्‍पाद एवं सीमा शुल्‍क बोर्ड सीबीईसी ने पिछले सप्‍ताह एक सरकुलर जारी कर कंपनी के आला अधिकारियों को नोटिस या समन भेजने में जल्‍दबाजी नहीं दिखाने की हिदायत दी है। गत 20 जनवरी को जारी सरकुलर के मुता‍बिक, सिर्फ ऐसे मामलों में ही कंपनी के टॉप मैनेजमेंट में शामिल लोगों को नाेटिस भेजा जाना चाहिए जहां टैक्‍स चोरी में इन अधिकारियों की सीधी भूमिका हो। टैक्‍स अधिकारियों की मनमानी से छुटकारा दिलाने की मांग कर रहे उद्योग जगत को सरकार के इस कदम से बड़ी राहत मिल सकती है। फिक्‍की की प्रेसिडेंट ज्‍योत्‍सना सूरी ने पिछले दिनों वित्‍त मंत्री अरुण जेटली के साथ हुई बजट पूर्व चर्चा में टैक्‍स वसूली के टारगेट पूरे करने के लिए मनमानी टैक्‍स डिमांड निकालने का मुद्दा उठाया था।


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