SC/ST एक्ट के तहत मामला नहीं पाया गया तो अब मिल सकेगी अग्रिम जमानत

रिपोर्ट: रमेश पाण्डेय

सर्वोच्च न्यायालय ने संशोधित कानून SC/ST की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रथम दृष्टया अगर मामला एससी/एसटी एक्ट के तहत नहीं पाया गया तो आरोपी को अग्रिम जमानत मिल सकती है और एफआईआर रद्द भी हो सकती है। इस प्रकार के मामले में एफआईआर दर्ज कराने के लिए शुरुआती जांच या पुलिस के आलाधिकारी की स्वीकृति आवश्यक नहीं होगी| जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने सोमवार को इस मामले में 2-1 से फैसला दिया, यानी दो जज फैसले के पक्ष में थे और एक ने इससे अलग राय रखी। गौरतलब है कि देश में 17 प्रतिशत दलित वोट है| इस वोट बैंक का प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 150 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर पड़ता है|

20 मार्च 2018 : सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने स्वत: संज्ञान लेकर एससी/एसटी एक्ट में आरोपियों की शिकायत के फौरन बाद गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। शिकायत मिलने पर एफआईआर से पहले शुरुआती जांच को जरूरी किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- गिरफ्तारी से पहले शिकायतों की जांच निर्दोष लोगों का मौलिक अधिकार है। इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शनों के बाद 9 अगस्त 2018 केंद्र सरकार ने एससी/एसटी एक्ट में बदलावों को पुनः बहाल करने के लिए संसद में संशोधित बिल लेकर आई। इसके बाद अब  एफआईआर से पहले जांच जरूरी नहीं रह गई। जांच अफसर को गिरफ्तारी का अधिकार मिल गया और अग्रिम जमानत का प्रावधान हट गया।

 

 


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