उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की स्केलिंग प्रणाली को सर्वोच्च न्यायालय ने बताया दोषपूर्ण

रिपोर्ट: Ramesh Pandey

 सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में वर्ष 2004 में  संयूक्त राज्य/उच्च अधीनस्थ सेवा के जरिये निकाली गई भर्तियों में सफल अभ्यर्थियों को राहत देते हुए उनकी नौकरी को बहाल रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य परीक्षा में आकलन के लिए इस्तेमाल होने वाली स्केलिंग प्रणाली को दोषपूर्ण और मनमाना बताया है। न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा मुख्य परीक्षा में इस्तेमाल होने वाले स्केलिंग प्रणाली को मनमाना बताने के फैसले को सही ठहराया है।  सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया है जिसमें कहा गया था कि सफल उम्मीदवारों की मेरिट लिस्ट दोबारा बनाई जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सफल उम्मीदवारों की दोबारा लिस्ट बनाने पर बड़ी संख्या में पूर्व में सफल हुए लोग बाहर हो सकते है। चूंकि वह पिछले दस वर्ष से काम रहे हैं, लिहाजा उनकी नौकरी बहाल रखनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि इन परीक्षाओं में किसी तरह की अनियमितता का आरोप नहीं है। परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों का कोई दोष नहीं है क्योंकि उत्तर प्रदेश सेवा आयोग ने परीक्षा में स्केलिंग प्रणाली का इस्तेमाल किया था।

मामले के मुताबिक, फरवरी, 2004 में संयुक्त राज्य/उच्च अधीनस्थ सेवा के जरिये भर्तियों के लिए आवेदन मांगाए गए थे। मुख्य परीक्षा 19 दिसंबर 2005 से तीन जनवरी, 2006 के बीच हुई। मुख्य परीक्षा में चार पेपर अनिवार्य थे जबकि दो वैकल्पिक विषय थे। इसके अलावा मई, 2004 में बैकलॉग पदों के लिए आरक्षित वर्ग के लोगों से आवेदन मांगे गए। इसकी मुख्य परीक्षा जून-जुलाई, 2006 में आयोजित हुई। मार्च 2007 में दोनों परीक्षाओं के परिणाम घोषित हुए। 

कुछ अभ्यर्थियों ने इन दोनों परिणामों को यह कहते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी कि मुख्य परीक्षा में अपनाई की स्केलिंग प्रणाली गैरकानूनी, दोषपूर्ण और मनमाना है। इन अभ्यर्थियों का कहना था कि स्केलिंग प्रणाली के कारण उनके अंक कम हो गए। हाईकोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए दोनों परीक्षाओं का रिजल्ट निरस्त करते हुए फिर से रिजल्ट जारी करने का निर्देश दिया। इस आदेश को यूपीपीएससी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 


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