प्रवासी श्रमिकों के मसले पर मीडिया में आ रही खबरों और मजदूरों की बदहाली पर मिल रही चिट्ठियों के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार व सभी राज्यों को नोटिस जारी कर गुरुवार तक जवाब देने का आदेश दिया है. गौरतलब है कि मुंबई और दिल्ली के 20 सीनियर वकीलों ने 25 मई को प्रवासी मजदूरों की समस्याओं के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट पर आपातकाल के दौर वाले रुख का प्रदर्शन करने का आरोप लगाया था। वकीलों ने अपने पत्र में कहा था कि सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के पलायन के बारे में कोर्ट को विरोधाभासी और गलत जानकारी दी. खत में वकीलों ने कहा, 'कोर्ट के हस्तक्षेप करने में नाकामी का नतीजा यह हुआ कि उस वक्त जब सिर्फ कुछ सौ ही कोरोना के मामले थे, तब लाखों मजदूर अपने-अपने गृहनगरों में जाने में असमर्थ हो गए। बिना किसी रोजगार या आजीविका और यहां तक कि भोजन के किसी निश्चित स्रोत के बिना ही उन्हें छोटे-छोटे दबड़ो जैसे कमरों या फुटपाथ पर रहने को मजबूर होना पड़ा। इस खत के बाद प्रवासियों के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था. वकीलों ने अपने खत में यह भी लिखा, 'जब मजदूरों को सड़क के जरिए ले जाने की व्यवस्था हुई तो उन्हें अक्सर गंतव्य वाले राज्यों की सीमा पर छोड़ दिया गया। खत में वकीलों ने लिखा, 'वास्तव में ऐसे तंग क्वॉर्टरों में रहने के लिए मजबूर इन गरीब मजदूरों के कोरोना संक्रमित होने का जोखिम बहुत ज्यादा हो गया। वहीं, सरकार के बयान साफ तौर पर तथ्यों से अलग हैं।
वकीलों ने खत में आरोप लगाया है कि शुरुआती दौर में जब कोविड-19 के केस सिर्फ कुछ सैकड़े में थे तब सुप्रीम कोर्ट की दखल देने में नाकामी की वजह से मई में बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों का पलायन हुआ। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मई के मध्य में हस्तक्षेप करने की विफलता के कारण इस स्थिति को जटिल बना दिया गया था, जब लाखों प्रवासी श्रमिकों ने पैदल या ट्रकों द्वारा घर की यात्रा शुरू की थी. ऐसे में गरीब वर्गों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ.' वकीलों ने अपने खत में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की निगरानी में विफलता के लिए सुप्रीम कोर्ट की भी आलोचना की. वकीलों ने कहा, 'पिछले 6 हफ्तों से बिना किसी रोजगार या मजदूरी के एक तरह से कैद कर दिए जाने से ऊब चुके मजदूरों ने आखिरकार फैसला किया कि घरों को लौटने की कोशिश करना ही बेहतर होगा। खास बात यह है कि तब तक देश में कोरोना संक्रमण के मामले 50 हजार को पार कर चुके थे और इन मजदूरों में से भी कई संक्रमित हो चुके थे। यहां तक कि इस चरण में भी सरकार ने शुरुआत में पैदल या ट्रकों से जा रहे मजदूरों की यात्रा/मूवमेंट को बाधित करने की सोची। बाद में सरकार बस और श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए मजदूरों के मूवमेंट के लिए राजी हुई।