मेक इन इंडिया को परवान चढ़ाने में जुटी सरकारी कंपनियां

रिपोर्ट: साभारः

नई दिल्ली। मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी मेक इन इंडिया कार्यक्रम को परवान चढ़ाने के लिए केंद्र के सभी मंत्रालयों ने कमर कसनी शुरू कर दी है। खास तौर पर भारी भरकम पीएसयू चलाने वाले मंत्रालयों ने अपनी कंपनियों के जरिये लाखों करोड़ रुपये की परियोजनाएं लगाने की घोषणा की तैयारी कर ली है। सिर्फ बिजली व कोयला क्षेत्र की कंपनियां अगले छह से आठ महीने में एक लाख करोड़ रुपये का ऑर्डर देने वाली हैं। बिजली मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों को पिछले तीन वर्षों से कोई बड़ा ऑर्डर नहीं मिला है। ट्रांसफॉर्मर बनाने वाली जिन कंपनियों ने भारत में निर्माण इकाई लगाई हैं, उन्हें भी ऑर्डर नहीं मिल पा रहा है। निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों की तरफ से कोई नया आदेश निकलने की संभावना फिलहाल नहीं है। ऐसे में सरकारी कंपनी एनटीपीसी अगले कुछ महीनों में 50 हजार से 70 हजार रुपये का ऑर्डर विभिन्न स्तरों पर देगी। एनटीपीसी की मौजूदा बिजली उत्पादन क्षमता को अगले पांच वर्षों में दोगुना किया जाना है। पनबिजली कंपनी एनएचपीसी की कुछ अहम परियोजनाओं की राह की सभी अड़चनों के तीन महीने के भीतर दूर होने की संभावना है। इसके साथ ही एनएचपीसी की तरफ से 20 हजार करोड़ रुपये के नए ऑर्डर दिए जाएंगे। पावर ग्रिड कॉरपोरेशन की तरफ से भी 10 हजार करोड़ रुपये के नए ऑर्डर जल्द ही दिए जाने के आसार हैं। वैसे, ट्रांसमिशन व वितरण से संबंधित 40 हजार करोड़ रुपये के नए ऑर्डर एक वर्ष के भीतर दिए जा सकते हैं। कोयला मंत्रालय के तहत आने वाली देश की सबसे बड़ी कोयला कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड की तरफ से भी एक वर्ष के भीतर 40 हजार करोड़ रुपये के तमाम खनन उपकरणों का ऑर्डर दिए जाने की तैयारी हो रही है। इन उपकरणों का उपयोग कंपनी अपने 200 ऐसे कोयला खदानों में करेगी, जहां खनन पर उसने अभी तक ध्यान नहीं दिया है। सरकार को उम्मीद है कि एक बार 204 कोयला ब्लॉकों की सफलतापूर्वक नीलामी होने के बाद कोयला क्षेत्र में और नए ऑर्डर आएंगे। इससे कोयला क्षेत्र के लिए सुरक्षा, खनन व अन्य उपकरण बनाने वाली कंपनियों में मंदी का दौर खत्म होगा। नई पूंजी आएगी व हजारों नए रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। गौरतलब है कि तीन दिन पहले अपने मंत्रालयों के रिपोर्ट कार्ड पेश करते हुए बिजली, कोयला और नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि ऊर्जा क्षेत्र में सरकार की घोषणाओं का जल्द असर दिखना शुरू होगा। नए ऑर्डर आने से देश की औद्योगिक क्षेत्र की सुस्ती भी दूर होगी। मोदी सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद औद्योगिक क्षेत्र की रफ्तार अभी तक सुस्त बनी हुई है। 'मेक इन इंडिया' को सफल बनाने में जुटा पानीपत का उद्योग जगत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' योजना को सफल बनाने के अभियान में पानीपत का उद्योग जगत भी जुट गया है। यहां के उद्यमियों ने अपनी मेहनत के बलबूते कंबल उत्पादन में चीन को मात देनी शुरू कर दी है। पिछले चार पांच साल के दौरान देश में 80 प्रतिशत कंबल चीन से आयात किए जा रहे थे। इस वर्ष पानीपत में ही देश की खपत का 80 प्रतिशत कंबल बनना शुरू हो गया है। अगले साल तक 100 प्रतिशत कंबल देश में ही बनेगा। अब देश में चीन के स्थान पर पानीपत के कंबल को पंसद किया जा रहा है। पानीपत में बने कंबल जहां चीन के मुकाबले में सस्ते पड़ रहे हैं, वहीं क्वालिटी के स्तर पर भी ये चीन के कंबल पर भारी पड़ रहे हैं। 12 यूनिटों में एक लाख कंबल का उत्पादन पानीपत में 12 यूनिटें लगी हैं, जिनमें मिंक ब्लैंकिट्स का उत्पादन होता है। इन यूनिटों में एक लाख कंबल का उत्पादन प्रति दिन हो रहा है। वहीं अगले वर्ष तक 50 हजार कंबल प्रतिदिन और बनने शुरू हो जाएंगे। तीन लाख पोलर कंबल पानीपत ने देश को पोलर कंबल के उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया है। यहा तीन लाख पोलर कंबल प्रतिदिन बनते हैं, जो तोल के हिसाब से बिक रहे हैं। इस प्रकार से चीन से आने वाले 80 प्रतिशत कंबल अब पानीपत से सप्लाई होने शुरू हो चुके हैं। शहर में पोलर कंबल की 15 यूनिटे हैं, जबकि 10 यूनिट और लगाई जा रही हैं। इस प्रकार पानीपत मिंक तथा पोलर कंबल का हब बन चुका है। आने वाले समय में यहां के बढ़ते उत्पादन को देखते हुए देश को अन्य देशों से कंबल के आयात की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। इस प्रकार कंबल बनाने में देश आत्मनिर्भर होकर प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया के लक्ष्य को पूरा कर लेगा। इवोक इंडिया ब्रांड के कंबल निर्माता प्रीतम सचेदवा ने बताया कि पानीपत अब मिंक तथा पोलर कंबल का हब बन चुका है। परंपरागत शौडी कंबल की मांग कम होने के कारण यहां के उद्यमियों ने आधुनिक तकनीक अपनाते हुए मिंक तथा पोलर कंबल को बनाना शुरू किया है। अब चीन पर हमारा कंबल भारी पड़ रहा है।


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