जन्माष्टमी : जानिये वो पाँच कौन थे, भगवान श्रीकृष्ण के शत्रु!

रिपोर्ट: Ramesh Pandey

जन्माष्टमी 2018 विशेष : कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी इस बार दो दिन पड़ रही है| ब्राह्मणों के घरों और मंदिरों में 2 सितंबर को जन्‍माष्‍टमी मनाई जाएगी, जबकि वैष्‍णव सम्‍प्रदाय को मानने वाले लोग 3 सितंबर को जन्‍माष्‍टमी का त्‍योहार मनाएंगे| इस बार अष्टमी 2 सितंबर की रात 08:47 पर लगेगी और 3 तारीख की शाम 07:20 पर खत्म हो जाएगी| इस मौके हम आपको बताएंगे कि वे कौन हैं, जो श्री कृष्ण के शत्रु हैं| भगवान कृष्ण ने यूं तो कई असुरों का वध किया जिनमें ताड़का, पूतना, शकटासुर, कालिया, नरकासुर शामिल हैं| इन असुरों से कृष्‍ण की शत्रुता नहीं थी, लेकिन उनके दुश्‍मनों ने उन्‍हें भेजा| वहीं, कुछ ऐसे लोग भी थे, जो कृष्ण से सीधे-सीधे शत्रुता रखते थे| इन शत्रुओं में श्रीकृष्ण का मामा कंस भी शामिल था| यहां पर हम आपमो श्रीकृष्‍ण के पांच बड़े शत्रुओं के बारे में बता रहे हैं:

भगवान कृष्ण का मामा कंस था| कंस अपनी बहन देवकी से बहुत स्नेह रखता था, लेकिन एक दिन आकाशवाणी सुनाई पड़ी- 'जिसे तू चाहता है, उस देवकी का आठवां बालक तुझे मार डालेगा|' जिसके बाद कंस ने एक-एक करके देवकी के 7 बेटों को जन्म लेते ही मार डाला| कृष्ण के जन्म लेते ही माया के प्रभाव से सभी संतरी सो गए और जेल के दरवाजे अपने आप खुलते गए| वसुदेव मथुरा की जेल से शिशु कृष्ण को लेकर नंद के घर पहुंच गए| बाद में कंस ने कई चालें चलीं| कई असुरों को भेजा लेकिन सभी मारे गए| इसके बाद कंस ने एक समारोह रखा जहां, कृष्ण और बलराम को बुलाया गया| वहां कृष्ण ने उस समारोह में कंस को बालों से पकड़कर उसकी गद्दी से खींचकर उसे भूमि पर पटक दिया और इसके बाद उसका वध कर दिया|

कंस का ससुर था जरासंध| कंस के वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण को सबसे ज्यादा यदि किसी ने परेशान किया तो वह था जरासंध| वह बृहद्रथ नाम के राजा का पुत्र था| श्रीकृष्ण ने जरासंध का वध करने की योजना बनाई| योजना के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन ब्राह्मण के वेष में जरासंध के पास पहुंच गए और उसे कुश्ती के लिए ललकारा| लेकिन जरासंध समझ गया कि ये ब्राह्मण नहीं हैं| तब श्रीकृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया| कुछ सोचकर अंत में जरासंध ने भीम से कुश्ती लड़ने का निश्चय किया|

अखाड़े में राजा जरासंध और भीम का युद्ध कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से 13 दिन तक लगातार चलता रहा| 14वें दिन श्रीकृष्ण ने एक तिनके को बीच में से तोड़कर उसके दोनों भाग को विपरीत दिशा में फेंक दिया| भीम, श्रीकृष्ण का यह इशारा समझ गए और उन्होंने वहीं किया| उन्होंने जरासंध को दोफाड़ कर उसके एक फाड़ को दूसरे फाड़ की ओर तथा दूसरे फाड़ को पहले फाड़ की दिशा में फेंक दिया| इस तरह जरासंध का अंत हो गया, क्योंकि विपरित दिशा में फेंके जाने से दोनों टुकड़े जुड़ नहीं पाए|

एक बार कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया, सने मथुरा नरेश के नाम संदेश भेजा और कालयवन को युद्ध के लिए एक दिन का समय दिया| श्रीकृष्ण ने उत्तर में भेजा कि युद्ध केवल कृष्ण और कालयवन में हो| कालयवन ने स्वीकार कर लिया| बलराम ने उनको कालयवन से युद्ध करने के लिए मना किया| जिसके बाद कृष्ण ने कालयवन को शिव द्वारा दिए वरदान के बारे में बताया| कहा कि उसे कोई भी हरा नहीं सकता| अगर कोई मार सकता है तो वो राजा मुचुकुंद हैं| युद्ध शुरू होते ही कृष्ण गुफा की ओर भागे और कालयवन पीछे-पीछे निकल गए|
शिशुपाल 3 जन्मों से श्रीकृष्ण से बैर-भाव रखे हुआ था| एक यंज्ञ में सभी राजाओं को बुलाया गया| ये यज्ञ श्री कृष्ण और पांडवों ने रखा था| यज्ञ के दौरान शिशुपाल श्रीकृष्ण को अपमानित कर गाली देने लगा| ये सुनकर पांडव गुस्सा गए और उसे मारने के लिए खड़े हो गए| कृष्ण ने उन्हें शांत किया और यज्ञ करने को बोला| जिसके बाद भी शिशुपाल नहीं रुका और गालियां देने लगा| काफी देर बार तब श्रीकृष्ण ने गरजते हुए कहा, 'बस शिशुपाल! मैंने तेरे एक सौ अपशब्दों को क्षमा करने की प्रतिज्ञा की थी इसीलिए अब तक तेरे प्राण बचे रहे| अब तक सौ पूरे हो चुके हैं| शांत बैठो, इसी में तुम्हारी भलाई| है|' जिसके बाद शिशुपाल ने जैसे ही गाली दी तो श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया और पलक झपकते ही शिशुपाल का सिर कटकर गिर गया|

राजा पौंड्रक नकली चक्र, शंख, तलवार, मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि, पीले वस्त्र पहनकर खुद को कृष्ण कहता था| बहुत समय तक श्रीकृष्ण उसकी बातों और हरकतों को नजरअंदाज करते रहे, बाद में उसकी ये सब बातें अधिक सहन नहीं हुईं| उन्होंने प्रत्युत्तर भेजा, ‘तेरा संपूर्ण विनाश करके, मैं तेरे सारे गर्व का परिहार शीघ्र ही करूंगा|' युद्ध हुआ, जिसमें पौंड्रक ने शंख, चक्र, गदा, धनुष, वनमाला, रेशमी पीतांबर, उत्तरीय वस्त्र, मूल्यवान आभूषण आदि धारण किया था एवं यह गरूड़ पर आरूढ़ था| नाटकीय ढंग से युद्धभूमि में प्रविष्ट हुए इस ‘नकली कृष्ण’ को देखकर भगवान कृष्ण को अत्यंत हंसी आई| इसके बाद युद्ध हुआ और पौंड्रक का वध कर श्रीकृष्ण पुन: द्वारिका चले गए|श्री कृष्ण छिप गए और कालयवन को एक व्यक्ति सोता दिखा, उनको लगा कि ये कृष्ण है| उसने व्यक्ति को जोर से लात मारी| जैसे ही व्यक्ति ने उठकर देखा तो कालयवन के शरीर आग लग गई और उसकी मृत्यु हो गई| 


Create Account



Log In Your Account