काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थाेपक थे मदनमोहन मालवीय

रिपोर्ट: साभारः

नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बिहारी वाजपेयी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय को देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न देने का एलान हो गया है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ट्वीट कर यह जानकारी दी। इन दोनों नेताओं को यह सम्मान स्वतंत्रता दिवस यानी 26 जनवरी को दिया जा सकता है। मदन मोहन मालवीय का परिचय महामना मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर 1861 को हुआ था। वे भारत के पहले और अंतिम अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिये तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से ऊंचा कर सकें। महामना मदन मोहन मूल रूप से मालवा के रहने वाले थे, इसलिए मालवीय कहे गए। मालवीयजी का जन्म प्रयाग में हुआ, जिसे अब इलाहाबाद के नाम से जाना जाता है। मध्य के मालवा प्रान्त से प्रयाग आ बसे उनके पूर्वज भी मालवीय कहलाते थे। आगे चलकर यही जातिसूचक नाम उन्होंने भी अपना लिया। उनके पिता पण्डित ब्रजनाथजी संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। वे श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर अपनी आजीविका अर्जित करते थे। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना महामना मदन मोहन मालवीय ने 1916 में वसंत पंचमी के दिन काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। पं. मदनमोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रीगणेश 1904 ई. में किया, जब काशीनरेश महाराज प्रभुनारायण सिंह की अध्यक्षता में संस्थापकों की प्रथम बैठक हुई। 1905 ई. में विश्वविद्यालय का प्रथम पाठ्यक्रम प्रकाशित हुआ। जनवरी, 1906 में कुंभ मेले में मालवीय जी ने त्रिवेणी संगम पर भारत भर से आयी जनता के बीच अपने संकल्प को दोहराया।वहीं एक वृद्धा ने मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया। तत्कालीन शिक्षामंत्री सर हारकोर्ट बटलर के प्रयास से 1915 ई. में केंद्रीय विधानसभा से हिंदू यूनिवर्सिटी एक्ट पारित हुआ, जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंज ने तुरंत स्वीकृति प्रदान कर दी। 14 जनवरी 1916 वसंतपंचमी के दिन समारोह वाराणसी में गंगातट के पश्चिम, रामनगर के समानांतर महाराज प्रभुनारायण सिंह द्वारा प्रदत्त भूमि में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ।


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