अलग-अलग स्तर पर स्वाइन फ्लू के लक्षणों को जानना है जरूरी

रिपोर्ट: सभार

शुरुआत में स्वाइन फ्लू के सामान्य लक्षणों में बुखार, खांसी, सर्दी, गले में खराश, शरीर के विभिन्न अंगों एवं मांसपेशियों में दर्द के साथ थकान की शिकायत रहती है। 50 से 60 फीसदी लोगों में शुरूआती स्तर पर यही लक्षण दिखाई देते हैं, जिनके पता लगते ही डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। जो लोग सांस संबंधी रोगों से पहले ही ग्रस्त हैं, उनके लिए मध्यम स्तर पर दिखाई देने वाले लक्षण गंभीर हो सकते हैं। इस स्तर पर व्यक्ति को बहुत ज्यादा थकान लगती है तथा जरूरत से ज्यादा ठंड भी लगती है। सीओपीडी, फेफड़ों के रोग और सांस संबंधी अन्य रोगों के चलते जब यह वायरस व्यक्ति के शरीर में पहुंचता है तो रोगी की परेशानी पहले की अपेक्षा बढ़ जाती है। इस श्रेणी में 25-30 फीसदी रोगी इलाज के लिए डॉक्टरों के पास पहुंचते हैं। 

इस स्तर पर स्वाइन फ्लू से ग्रस्त व्यक्ति के रक्त में ऑक्सीजन का स्तर तेजी से गिरने लगता है। प्रथम स्तर के लक्षणों के अलावा इस स्थिति में रोगी को बार-बार उल्टियां आती हैं व दस्त भी लग जाते हैं। श्वसन की दिक्कत के साथ रोगी को एआरडीएस, एक्यूट लिवर इंजरी हो सकती है। करीब 5 फीसदी रोगी अस्पताल में इस स्तर पर इलाज के लिए पहुंचते हैं, जिनमें से कुछ को वेंटिलेटर पर भी रखा जाता है। शुरुआती लक्षणों के अलावा स्वाइन फ्लू की पुष्टि के लिए खून की जांच आवश्यक होती है। इसके लिए पीसीआर टेस्ट किया जाता है। रक्त में एच1एन1 वायरस की पुष्टि के अलावा रोगी के गले व नाक के द्रव्यों का भी टेस्ट किया जाता है।
स्वाइन फ्लू की पुष्टि के बाद 48 घंटे के भीतर इलाज शुरू हो जाए तो बेहतर है। शुरुआत में मरीज को पांच दिन का इलाज दिया जाता है, जिसमें टेमीफ्लू दी जाती है। दरअसल, एच1एन1 वायरस स्टील और प्लास्टिक में 24 से 48 घंटे और कागज में 8 से 12 घंटे तक जीवित रहता है। इसके कीटाणु टिश्यू पेपर में करीब 15 मिनट और हाथों में लगभग 30 मिनट तक जीवित रह सकते हैं, जिन्हें खत्म करने के लिए डिटर्जेंट, अल्कोहल, ब्लीच या साबुन आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है। शुरुआत में स्वाइन फ्लू के सामान्य लक्षणों में बुखार, खांसी, सर्दी, गले में खराश, शरीर के विभिन्न अंगों एवं मांसपेशियों में दर्द के साथ थकान की शिकायत रहती है। 50 से 60 फीसदी लोगों में शुरूआती स्तर पर यही लक्षण दिखाई देते हैं, जिनके पता लगते ही डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। जो लोग सांस संबंधी रोगों से पहले ही ग्रस्त हैं, उनके लिए मध्यम स्तर पर दिखाई देने वाले लक्षण गंभीर हो सकते हैं। इस स्तर पर व्यक्ति को बहुत ज्यादा थकान लगती है तथा जरूरत से ज्यादा ठंड भी लगती है। सीओपीडी, फेफड़ों के रोग और सांस संबंधी अन्य रोगों के चलते जब यह वायरस व्यक्ति के शरीर में पहुंचता है तो रोगी की परेशानी पहले की अपेक्षा बढ़ जाती है। इस श्रेणी में 25-30 फीसदी रोगी इलाज के लिए डॉक्टरों के पास पहुंचते हैं।इस स्तर पर स्वाइन फ्लू से ग्रस्त व्यक्ति के रक्त में ऑक्सीजन का स्तर तेजी से गिरने लगता है। प्रथम स्तर के लक्षणों के अलावा इस स्थिति में रोगी को बार-बार उल्टियां आती हैं व दस्त भी लग जाते हैं। श्वसन की दिक्कत के साथ रोगी को एआरडीएस, एक्यूट लिवर इंजरी हो सकती है। करीब 5 फीसदी रोगी अस्पताल में इस स्तर पर इलाज के लिए पहुंचते हैं, जिनमें से कुछ को वेंटिलेटर पर भी रखा जाता है। शुरुआती लक्षणों के अलावा स्वाइन फ्लू की पुष्टि के लिए खून की जांच आवश्यक होती है। इसके लिए पीसीआर टेस्ट किया जाता है। रक्त में एच1एन1 वायरस की पुष्टि के अलावा रोगी के गले व नाक के द्रव्यों का भी टेस्ट किया जाता है। स्वाइन फ्लू की पुष्टि के बाद 48 घंटे के भीतर इलाज शुरू हो जाए तो बेहतर है। शुरुआत में मरीज को पांच दिन का इलाज दिया जाता है, जिसमें टेमीफ्लू दी जाती है। दरअसल, एच1एन1 वायरस स्टील और प्लास्टिक में 24 से 48 घंटे और कागज में 8 से 12 घंटे तक जीवित रहता है। इसके कीटाणु टिश्यू पेपर में करीब 15 मिनट और हाथों में लगभग 30 मिनट तक जीवित रह सकते हैं, जिन्हें खत्म करने के लिए डिटर्जेंट, अल्कोहल, ब्लीच या साबुन आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है। बुखार के दौरान रोगी को घर का ताजा बना खाना ही खिलाएं। ताजे फल व हरी पत्तेदार सब्जियां अधिक लें। पतली दाल खाएं। तरल पदार्थों में दूध, चाय, फलों का जूस, छाछ, लस्सी का सेवन करें। स्वाइन फ्लू में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर हो जाती है। इसलिए आयुर्वेद के अनुसार आधा कप पानी में आधा चम्मच आंवला पाउडर मिलाकर दिन में दो बार पीने से इम्यूनिटी बढ़ती है। गिलोय बेल की डंडी को पानी में उबालकर या छानकर पिएं। इसके अलावा तुलसी के 5 या 6 पत्ते और काली मिर्च के 2-3 दाने पीसकर चाय में डालकर पीने से भी फायदा मिलता है। पर ध्यान रखें कि एक समय में एक ही उपचार करें।

 

 


Create Account



Log In Your Account