कबीर को आचरण में उतारकर ही न्यू इंडिया बनाया जा सकता है: प्रधानमंत्री

रिपोर्ट: Ramesh Pandey

कबीरदास की 600 वीं जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मगहर में मौजूद कबीरदास की मजार पर चादर चढ़ाई। इसके बाद अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कबीर वाणी का जिक्र करते हुए कहा कि कबीर को आचरण में उतारकर ही न्यू इंडिया बनाया जा सकता है। प्रधानमंत्री के मगहर दौरे से पूर्व इंतजामों का जायजा लेने कबीर की मजार पर पहुंचे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फर की टोपी पहनने से इनकार कर दिया, जिसके बाद सियासी हलचल शुरू हो गयी|  गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री तब 2011 में उन्होंने सद्भावना उपवास किया था|  इस दौरान एक इमाम ने उन्हें मुस्लिम धर्मावलंबियों द्वारा पहनी जाने वाली टोपी दी। लेकिन, मोदी ने विनम्रता से इसे पहनने से इनकार कर दिया था।

अपने संबोधन में पीएम ने कहा कि उनकी सरकार को गरीबों के आवास की चिंता है जबकि विपक्ष को अपने बंगलों की। वह कबीर साहिब के आदर्शों चलते हुए शांति और विकास की बात करते हैं जबकि विपक्ष कलह और असंतोष का माहौल बनाने में लगा है। सपा-बसपा के गठबंधन पर प्रहार करते हुए कहा प्रधानमंत्री ने कहा कि संत कबीर कर्मयोगी थे। वह समाज को सशक्त बनाना चाहते थे, याचक नहीं। इसके बाद संत रैदास, महात्मा फूले, महात्मा गांधी आए। सबका जोर समाज का विकास रहा। बाबा साहेब ने देश के संविधान में सबको बराबरी का अधिकार दिया, लेकिन दुर्भाग्य से इनके नाम पर राजनीति करने वाली धारा समाज को तोड़ने का प्रयास कर रही है। कबीर और उनके दोहों का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा कि कुछ दलों को राजनीतिक लाभ के लिए विकास नहीं बल्कि उन्हें कलह और असंतोष चाहिए। ऐसे लोग जमीन से कट चुके हैं। उन्होंने अंदाजा नहीं है कि संत कबीर, संत रैदास और बाबा साहेब को मानने वाले क्या सोचते हैं। पीएम ने कहा कि अपने लोगों से मन लगाओ विकास का हरि मिल जाएगा लेकिन उनका मन तो बंगलों में लगा हुआ है। 

हाल में बंगला प्रकरण को लेकर चर्चा में रहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का नाम लिए बगैर पीएम मोदी ने हमला बोला। उन्होंने कहा कि पूर्व की सरकार ने गरीबों के घर की योजना में रुचि ही नहीं ली। केंद्र ने कई चिट्टियां लिखीं लेकिन उन्होंने इतनी भी जरूरत नहीं समझी कि बता दें यूपी में गरीबों के लिए कितना घर चाहिए। उनका मन बंगलों में ही लगा रहा। उन्होंने कहा कि श्रमजीवी कबीर मानवता, विश्वबंधुत्व और परस्पर प्रेम की बात करते हैं।

 


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